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सियासी सफर: मंजिल की चाह में रास्ते बदलते रहे उपेंद्र कुशवाहा

वैशाली के एक छोटे से गांव से आने वाले उपेन्द्र कुशवाहा की सियासी महत्वाकांक्षा ने उनको राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई। उपेंद्र कुशवाहा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र...

सियासी सफर: मंजिल की चाह में रास्ते बदलते रहे उपेंद्र कुशवाहा
पटना राजकुमार शर्माMon, 21 Sep 2020 09:41 PM
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वैशाली के एक छोटे से गांव से आने वाले उपेन्द्र कुशवाहा की सियासी महत्वाकांक्षा ने उनको राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई। उपेंद्र कुशवाहा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी करीबी रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उनकी नजदीकियां रहीं तो अब कांग्रेस से भी उनके मधुर रिश्ते हैं। यूं तो वे राज्य से केंद्र तक की राजनीति में विभिन्न पदों पर रहे, लेकिन मंजिल की तलाश अभी खत्म नहीं हुई है। 

यही कारण है कि मंजिल को पाने की चाह में वे बार-बार रास्ता बदलते रहे हैं। वे इस बात को खुले दिल से स्वीकारते भी हैं। लोकदल से अपना सियासी सफर शुरू करने वाले उपेंद्र कुशवाहा की फिलवक्त राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के नाम से अपनी पार्टी है। राजनीति में आने से पहले वे शिक्षक थे और इस क्षेत्र से उनका लगाव आज भी है। कहते हैं राजनीति में मेहनत के साथ-साथ किस्मत की भी बड़ी भूमिका है। सो इस मामले में भी उपेंद्र कुशवाहा भाग्य के बुलंद रहे हैं। समाजवादी सोच वाले कुशवाहा राज्य विधानसभा से लेकर वे लोकसभा और उच्च सदन राज्यसभा के भी सदस्य रह चुके हैं।

कर्पूरी से प्रभावित होकर किया राजनीति का रुख
उपेंद्र कुशवाहा के पिता के कर्पूरी ठाकुर से बड़े अच्छे संबंध थे। जब उपेन्द्र छोटे थे तो कर्पूरी जी उनके घर आया करते थे। उनके यहां कर्पूरी जी आते तो गांव-जवार के और भी लोग जुट जाते। गरीब-गुरबा, शोषितों-वंचितों के हितों को लेकर चर्चा होती। इन्हीं सब बातों से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला लिया।

35 साल का राजनीतिक सफर
वर्ष 1985 में उन्होंने शिक्षण कार्य करते हुए ही राजनीति में कदम रखा। वर्ष 1988 तक वे युवा लोकदल के राज्य महासचिव रहे और 1988 से 1993 तक राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी संभाली। 1994 में समता पार्टी का महासचिव बनने के साथ ही उन्हें बिहार की राजनीति में महत्व मिलने लगा। वे लालू यादव की सामाजिक राजनीति के प्रशंसक थे। लालू की ज्यों-ज्यों कांग्रेस से नजदीकी बढ़ी, उपेंद्र उनसे दूर होते गए।

पार्टी में हुई टूट
रालोसपा जिस तेजी के साथ बिहार और देश के राजनैतिक फलक पर उभरी थी, उसी तेजी से वह नीचे भी उतरी। वर्ष  2018 में उपेंद्र जब एनडीए से अलग हुए तो पार्टी भी टूट गई। जहानाबाद से रालोसपा सांसद रहे अरुण कुमार ने राष्ट्रीय समता पार्टी (सेकुलर) के नाम से अलग पार्टी बना ली। सीतामढ़ी से सांसद रहे रामकुमार शर्मा जदयू के साथ चले गए। पार्टी के तीनों विधायकों ने भी बगावत करके खुद के मूल पार्टी होने का दावा कर दिया। 

व्यक्तिगत जीवन
उपेंद्र कुशवाहा का जन्म छह फरवरी 1960 को वैशाली के जावज गांव में सामान्य किसान परिवार में हुआ। उन्होंने बिहार यूनिर्वर्सिटी से राजनीति शास्त्र में एमए किया। वर्ष 1985 में जन्दाहा के समता कॉलेज में लेक्चरर बने। पिता का नाम मुनेश्वर्र ंसह है। वर्ष 1982 में विवाह हुआ। पत्नी का नाम स्नेहलता है। परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री है।

रालोसपा ने लगाया था  पहली गेंद पर छक्का
उपेंद्र कुशवाहा ने वर्ष 2013 में नई पार्टी रालोसपा का गठन किया। भाग्य की बुलंदी यह रही कि एक साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा बनकर उनकी पार्टी को बिहार में तीन सीटें मिलीं। यह सीटें थी काराकाट, सीतामढ़ी और जहानाबाद। मोदी लहर पर सवार रालोसपा का रिजल्ट शत-प्रतिशत रहा। पार्टी ने तीनों सीटों पर जीत हासिल की।

खाने में नेनुआ की सब्जी व रोटी पसंद
यूं तो उपेंद्र कुशवाहा नॉनवेज भी खाते हैं लेकिन उन्हें सर्वाधिक प्रिय हरी सब्जी और रोटी है। उसमें भी सबसे ज्यादा पसंद नेनुआ की सब्जी है। कुर्ता-पायजामा उनका पसंदीदा परिधान है। वहीं बच्चों को पढ़ाना उनका सबसे प्रिय शौक है। वे गांव में जब भी खुद को समय मिलता है तो खुद भी पढ़ाते हैं।

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