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बिहार रिजल्ट से पहले ही कांग्रेस को सताने लगा ये डर , पटना पहुंचे सुरजेवाला

बिहार चुनाव परिणाम से ठीक पहले चुनाव प्रबंधन की जिम्मेवारी संभालने वाले कांग्रेसी नेता फिर बिहार पहुंचने लगे हैं। अब कांग्रेस के ये राष्ट्रीय नेता चुनाव परिणाम के साथ सरकार के गठन तक बिहार में...

बिहार रिजल्ट से पहले ही कांग्रेस को सताने लगा ये डर , पटना पहुंचे सुरजेवाला
हिन्दुस्तान ब्यूरो ,पटना Mon, 09 Nov 2020 09:42 AM
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बिहार चुनाव परिणाम से ठीक पहले चुनाव प्रबंधन की जिम्मेवारी संभालने वाले कांग्रेसी नेता फिर बिहार पहुंचने लगे हैं। अब कांग्रेस के ये राष्ट्रीय नेता चुनाव परिणाम के साथ सरकार के गठन तक बिहार में ही मोर्चा संभाले रहेंगे। पटना पहुंचने के साथ ही राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने समन्वय की जिम्मेवारी दी है। उसे ही पूरा करने आया हूं।

परिणाम के बाद अगर किसी को बहुमत नहीं मिला तो कांग्रेस को अपने विधायकों को संभालने रखना बड़ी चुनौती होगी। राजस्थान की सियासी घटना बिहार में भी न दुहराई जा सके, इस लिहाज से चुनाव कराकर लौट चुके राष्ट्रीय नेताओं को पार्टी हाईकमान ने फिर बिहार भेज दिया है। पटना पहुंचने के साथ ही राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने समन्वय की जिम्मेवारी दी है। उसे ही पूरा करने आया हूं। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राज्य में हमारी सरकार बनेगी।  सदाकत आश्रम पहुंचकर उन्होंने बैठक की। इसमें प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा, राजस्थान के मंत्री राजेन्द्र यादव और रघु शर्मा के अलावा झारखंड के मंत्री बन्ना गुप्ता हरिद्वार के विधायक काजी निजामुद्दीन और सुबोधकांत सहाय भी शामिल हुए। ये सभी नेता कांग्रेस के संकट मोचक माने जाते हैं। सोमवार की सुबह स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडेय भी पटना पहुंचेंगे। बिहार के प्रभारी अजय कपूर भी पटना आएंगे। ये सभी नेता 10 तारीख को होने वाले चुनाव परिणामों पर नजर रखेंगे। साथ ही, यदि पार्टी को इस दौरान किसी प्रकार के मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी तो वह भी देंगे। मतगणना में गड़बड़ी की आशंका और परिणाम घोषित होने के बाद खरीद-फरोख्त से विधायकों को बचाने में इनकी भूमिका अहम होगी।  इसकी रणनीति बननी शुरू हो गई है। 

चुनाव परिणाम तय करेंगे असम, बंगाल में कांग्रेस की रणनीति

बिहार चुनाव के परिणाम भविष्य में कांग्रेस की रणनीति तय करेंगे। इस चुनाव में पार्टी ने कई प्रयोग किए हैं, जिनका चुनावी राजनीति पर असर का आकलन परिणाम के बाद ही होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस ने अपनी छवि बदलने की कोशिश की। गुजरात विधानसभा चुनाव में मुसलमान पार्टी के एजेंडे से बाहर रहे। इसके बाद हुए कई दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर दूरी बनाती हुई नजर आई। हालांकि, 2019 के चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया।


बिहार चुनाव में कांग्रेस ने अपने परंपरागत वोट बैंक सवर्ण, मुस्लिम और दलित पर फोकस किया। वहीं, धुव्रीकरण के डर से पार्टी ने मुस्लिम मुद्दों को नहीं छोड़ा। चुनाव से ठीक पहले यूपी में डॉ कफील खान की रिहाई के लिए चलाई गई मुहिम हो या बिहार में जिन्ना विवाद से जुड़े मशकूर अहमद उस्मानी को टिकट देना। इसके साथ कई मुस्लिम प्रचारकों को भी मैदान में उतारा है।
चुनाव प्रचार के दौरान कई बार धुव्रीकरण से जुड़े बयान आए, पर इसका चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ा। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी के निदेशक डॉ संजय कुमार कहते हैं ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि राजद और कांग्रेस ने पहले ही चुनाव का एजेंडा तय कर दिया था। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान दोनों पार्टियों ने प्रचार को रोजगार पर केंद्रित रखा। असम में कांग्रेस इस बार मौलाना बदरुद्दीन अजमल की यूडीएफ के साथ चुनावी गठबंधन की तैयारी कर रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूडीएफ के साथ यह कहते हुए गठबंधन ने इनकार कर दिया था कि इससे भाजपा को सांप्रदायिक धुव्रीकरण करने में आसानी होगी। इस बार पार्टी यूडीएफ और दूसरी पार्टियों के साथ चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।
 

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