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सियासी सफर: घर की दहलीज लांघ सीधे राजभवन पहुंचीं राबड़ी

ग्रामीण परिवेश से निकली वह एक सामान्य गृहिणी थीं। घर-परिवार और रसोई संभालती थीं, लेकिन एक बार जब उन्होंने घर की डेहरी लांघीं तो सीधे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने राजभवन पहुंचीं। बिहार के सीएम की कुर्सी...

सियासी सफर: घर की दहलीज लांघ सीधे राजभवन पहुंचीं राबड़ी
पटना। हिन्दुस्तान ब्यूरोTue, 15 Sep 2020 04:22 PM
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ग्रामीण परिवेश से निकली वह एक सामान्य गृहिणी थीं। घर-परिवार और रसोई संभालती थीं, लेकिन एक बार जब उन्होंने घर की डेहरी लांघीं तो सीधे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने राजभवन पहुंचीं। बिहार के सीएम की कुर्सी पर बैठने वाली ये महिला हैं राबड़ी देवी। रातोंरात यह बदलाव 25 जुलाई, 1997 को हुआ। उस दिन इस गृहिणी ने जब सीएम पद की शपथ लेने के लिए राजभवन का रुख किया, सभी चकित रह गए। 

सीएम पद की शपथ लेने वाली राबड़ी देवी राज्य के किसी सदन की सदस्य भी नहीं थी। उनके पति व तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को चारा घोटाले में चार्जशीट के बाद जेल जाना पड़ा तो पार्टी के संसदीय दल ने उन्हें अपना नेता चुन लिया। इसी के साथ राबड़ी देवी बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री बन गईं। बाद में पार्टी ने विधान परिषद के लिए नामित किया। राबड़ी देवी की राजनीति में कोई रूचि नहीं थी। सत्ता पाने के लिए उन्होंने संघर्ष भी नहीं किया। तब उनकी बड़ी पहचान यही थी कि उस जमाने में बिहार के सबसे मजबूत नेता लालू प्रसाद की वह पत्नी थी। शुरुआत में तो वह लालू प्रसाद के इशारे पर ही सत्ता का संचालन करती रहीं, लेकिन बाद में वह राजीतिक रंग में ऐसी डूबीं कि लालू प्रसाद उनकी सलाह के बिना एक कदम नहीं रखते। लिहाजा पार्टी से जुड़े फैसलों में अब भी उनका बड़ा हस्तक्षेप है।  

तीन बार सीएम की कुर्सी पर बैठीं  
विरासत में मिली मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वह तीन बार बैठीं। बिहार में जनता दल और बाद में राजद के 15 साल के  शासनकाल में आठ वर्ष तक वही मुख्यमंत्री रहीं। लालू प्रसाद को सात साल तक सीएम रहने का मौका मिला। राबड़ी देवी का पहला कार्यकाल सिर्फ दो साल का रहा। दूसरी बार वह नौ मार्च, 1999 और तीसरी बार 11 मार्च, 2000 को वह मुख्यमंत्री पद के लिए चुनी गईं। 

मात्र एक चुनाव ही जीत पाईं
अपने पूरे राजनीतिक जीवन में वह मात्र एक चुनाव ही जीत पाई हैं। उन्होंने पांच साल तक राघोपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व विधानसभा में किया, लेकिन शेष काल में विधान परिषद के लिए ही चुनी जाती रहीं। इस अवधि में वह विधान परिषद में प्रतिपक्ष की नेता भी बनीं जो अब तक हैं। चुनावी राजनीति में वह पहली बार वह वर्ष 2005 में राघोपुर विधानसभा क्षेत्र में उतरीं और चुनाव जीतीं। लेकिन 2010 में वह राघोपुर और सोनपुर दोनों जगहों से चुनाव लड़ीं और दोनों की सीट से हार गईं। बाद में फिर उन्हें विधान परिषद के लिए चुना गया। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने सारण से अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन हार गईं। 

विरोधी उस दौर को आज भी मुद्दा बनाते हैं
बिहार की मुख्यमंत्री रहते हुए उन पर दफ्तर न जाने और विधानसभा में सवालों का जवाब न देने का आरोप लगता रहा है। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में ही उनके दो भाइयों-साधु यादव और सुभाष यादव का सत्ता में बड़ा हस्तक्षेप था। उस दौरान राज्य में घटी आपराधिक घटनाओं से लालू राज पर बदनामी का जो लेप चढ़ा वह आज तक मिटा नहीं है। विरोधी उस दौर को आज भी मुद्दा बनाते हैं।  

टिप्पणी को लेकर किरकिरी हुई
15वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव प्रचार के दौरान एक आम सभा में राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जनता जदयू के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी की। मीडिया में इसको लेकर उनकी खूब किरकिरी हुई। उसके बाद ललन सिंह ने पटना कोर्ट में राबड़ी देवी के खिलाफ 13 अप्रैल 2009 को मानहानि का मुकदमा दायर किया। राबड़ी के खिलाफ आदर्श चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप भी लगा।

पारिवारिक जीवन 
राबड़ी देवी का जन्म 1 जनवरी 1956 गोपालगंज के शिवप्रसाद चौधरी के घर हुआ था। उन्होंने 8 वीं कक्षा तक स्कूली शिक्षा हासिल की है। 17 साल की उम्र में उनका विवाह सन् 1973 में लालू प्रसाद यादव के साथ हुआ। अपने पति लालू प्रसाद से वह 11 साल छोटी हैं। उनके पिता समृद्ध व्यक्ति थे और लालू प्रसाद गरीब परिवार के युवक थे। लेकिन, राबड़ी देवी के पिता की इच्छा थी, पढ़े-लिखे युवक से शादी करने की। लिहाजा चाचा के विरोध के बाद भी लालू और राबड़ी देवी परिणय सूत्र में बंध गए। उनकी सात बेटियां और दो बेटे हैं। खाना बनाने का उनका पुराना शौक है। लेकिन, उन्हें सादा खाना ही पसंद है। धर्म में भी उनकी पूरी आस्था है। दो साल पहले तक वह हर साल छठ खुद करती थीं। 

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