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ISF से गठबंधन पर कांग्रेस में घमासान, मगर लेफ्ट नहीं है परेशान, जानें कैसे ओवैसी और TMC के लिए है बड़ी टेंशन

पश्चिम बंगाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) से गठबंधन पर कांग्रेस में मचे घमासान को लेकर वामदल जरा भी परेशान नहीं है। वामदलों का कहना है कि यह कांग्रेस का अंदरुनी मामला है, लेकिन उनका गठबंधन...

ISF से गठबंधन पर कांग्रेस में घमासान, मगर लेफ्ट नहीं है परेशान, जानें कैसे ओवैसी और TMC के लिए है बड़ी टेंशन
मदन जैड़ा,नई दिल्लीWed, 03 Mar 2021 05:41 AM
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पश्चिम बंगाल में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) से गठबंधन पर कांग्रेस में मचे घमासान को लेकर वामदल जरा भी परेशान नहीं है। वामदलों का कहना है कि यह कांग्रेस का अंदरुनी मामला है, लेकिन उनका गठबंधन मजबूत हो चुका है। कांग्रेस की अंदरुनी नाराजगी का इस गठबंधन पर कोई असर नहीं होगा। यह न सिर्फ एआईएमआईएम को राज्य में जमीन तैयार करने से रोकेगा बल्कि तृणमूल कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में भी सेंध लगाने में सफल रहेगा।

फुरफुरा शरीफ के मौलाना अब्बास सिद्दकी के नेतृत्व वाले इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) से गठबंधन को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने सवाल उठाए हैं। भाजपा ने भी इस गठबंधन को कट्टरपंथी करार देते हुए कांग्रेस पर सवाल उठाए थे। लेकिन वामपंथी नेताओं ने कांग्रेस नेता के बयान को जहां उनका अंदरुनी मामला बताकर टाल दिया। वहीं माकपा के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि यह गठबंधन पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है तथा आईएसएफ में जमाइते इस्लामी, पीडीएफ तथा वेल्फेयर पार्टी जैसे कोई कट्टरपंथी संगठन नहीं है। येचुरी के अनुसार भाजपा की चिंता होना स्वभाविक है क्योंकि लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन इन चुनावों में प्रमुखता से उभर रहा है।

पश्चिम बंगाल में 100-110 सीटों पर मुस्लिम वोटों की भूमिका बेहद अहम है। पिछले दो चुनावों में ज्यादातर मुस्लिम मतों का रुझान तृणमूल की तरफ रहा है लेकिन इस बार कांग्रेस एवं वामदलों के गठबंधन ने तृणमूल के विरोध अब्बास सिद्दीकी को साथ मिलाकर उसमें सेंध लगाने की कोशिश की है। हालांकि कांग्रेस के भीतर उठ रहे असहमति के सुरों का इस गठबंधन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि कांग्रेस के पश्चिम बंगाल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी यह स्पष्ट भी कर दिया है।

वामदलों के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि एआईएमआईएम जिस प्रकार से पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने के लिए एंट्री मार रहा था और फुरफुरा शरीफ तक पहुंच चुका था, उसके मद्देनजर यह कदम उठाना और भी जरूरी हो गया था। आईएसएफ का एआईएमआईएम के साथ जाने से वाम-कांग्रेस गठबंधन को नुकसान होता। उनका दावा है कि मौजूदा स्थितियों में एआईएमआईएम के लिए अब पश्चिम बंगाल में कुछ खास नहीं बचा है।

कौन हैं अब्बास सिद्दिकी
फुरफुरा शरीफ के मौलाना अब्बास सिद्दीकी बंगाल की राजनीति में खासा प्रभाव रखते हैं। फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने इस बार चुनावी राजनीति में उतरने का फैसला लिया है, तभी  से वह सुर्खियों में हैं। दरअसल, बंगाल में करीब 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं और फुरफुरा शरीफ दरगाह का असर 100 से अधिक सीटों पर माना जाता है। यही कारण है कि अब्बास सिद्दीकी के हर कदम पर हर किसी की नजरें बनी हुई हैं। हालांकि, विवाद की वजह अब्बास सिद्दीकी के कट्टरता और महिला विरोधी बयान हैं, जिनके चलते वह सुर्खियों में बने रहते हैं। यही कारण है कि उनसे गठबंधन के बाद कांग्रेस दो फाड़ नजर आ रही है।

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