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हेपेटाइटिस है अशांत करने वाला शांत संक्रमण

भारत में हेपेटाइटिस-बी के रोगियों की संख्या हर साल बढ़ रही है। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र (एनसीडीसी) द्वारा कराए गए एक सर्वे के मुताबिक साल 2012 में भारत में हेपेटाइटिस वायरल के करीब 1,19,000...

हेपेटाइटिस है अशांत करने वाला शांत संक्रमण
हिन्दुस्तान फीचर टीम।,नई दिल्लीMon, 31 Jul 2017 05:41 PM
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भारत में हेपेटाइटिस-बी के रोगियों की संख्या हर साल बढ़ रही है। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र (एनसीडीसी) द्वारा कराए गए एक सर्वे के मुताबिक साल 2012 में भारत में हेपेटाइटिस वायरल के करीब 1,19,000 मामले दर्ज किये गये। इन मामलों की तेजी से बढ़ती संख्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज एक साल के भीतर मामलों की संख्या बढ़ कर 2,90,000 तक पहुंच गयी। अनुमान है कि मौजूदा समय में यह आंकड़ा बढ़ कर 5 लाख से ऊपर पहुंच गया है।

यही नहीं, हेपेटाइटिस को एड्स से ज्यादा घातक बीमारी माना जाता है, क्योंकि एड्स से मरने वालों की तुलना में हेपेटाइटिस से मरने वालों की संख्या 10 गुना अधिक बताई जाती है। 

हमारे देश में इस बीमारी के फैलने के सबसे महत्वपूर्ण कारण हेपेटाइटिस-ई वायरस (एचईवी) और हेपेटाइटिस-ए वायरस (एचएवी) है, जो सामान्य तौर पर बच्चों में पाया जाता है, जबकि महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान हेपेटाइटिस का प्रमुख कारण एचईवी है।  

विशेषज्ञों के अनुसार जब कोई हेपेटाइटिस संक्रमित व्यक्ति अपनी पुरानी (क्रॉनिक) हेपेटाइटिस अवस्था से अनजान होता है तो वह दूसरों को लंबे समय तक प्रसारण के जरिये संक्रमित कर सकता है, जिसकी वजह से लिवर की गंभीर बीमारी के साथ-साथ लिवर फेल या कैंसर तक हो सकता है। बीते साल को इस वायरस के उन्मूलन के लिए काफी विशेष माना गया है। डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों ने वर्ष 2030 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे के तौर पर हेपेटाइटिस को समाप्त करने के लक्ष्य के साथ पहली उन्मूलन रणनीति अपनाने का संकल्प लिया है। इसमें पहली बार कई देशों की सरकारें भी शामिल हुई हैं।

क्या है हेपेटाइटिस
हेपेटाइटिस कई प्रकार का होता है या कहिये यह हेपेटाइटिस संक्रामक बीमारियों का एक समूह है, जिसे हम अमूमन हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई के रूप में जानते हैं। भारत में इसके सभी रूप देखने को मिलते हैं। हेपेटाइटिस दो प्रकार का होता है, एक्यूट (तीक्ष्ण) और क्रॉनिक (जीर्ण)। मोटे तौर पर हेपेटाइटिस एक प्रकार की लिवर की सूजन है, जिसे लिवर के ऊतकों (टिशूज) में सूजन वाली कोशिकाओं (सेल्स) की मौजूदगी से पहचाना जाता है। एक्यूट हेपेटाइटिस छह महीनों तक रहता है, जबकि क्रॉनिक लंबे समय तक।

कैसे फैलता है
विशेषज्ञों के अनुसार हेपेटाइटिस-डी, एक डेल्टा वायरस है, जो बी के साथ मिलता है तथा ए और ई का संक्रमण दूषित खान-पान और प्रदूषित पानी पीने से होता है। इसके अलावा अपने आसपास ठीक ढंग से साफ-सफाई और ठीक से हाथ न धोने की वजह से इस रोग का जोखिम और बढ़ जाता है। बी और सी का संक्रमण कई वजहों से रक्त के जरिये होता है, जैसे इंजेक्शन द्वारा नशीले पदार्थों का सेवन, सुई से लगी चोट, हेपेटाइटिस संक्रमित किसी व्यक्ति के रक्त के संपर्क में आना है। इसके अलावा संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल की गयी किसी चीज जैसे उसका टूथब्रश इस्तेमाल कर लेना, टैटू बनवाना, संक्रमित व्यक्ति का रेजर इस्तेमाल कर लेना, उसकी कोई निजी वस्तु शेयर करना, जिससे उसकी शारीरिक क्रियाएं जुड़ी हों या असुरक्षित यौन संबंध से भी इस रोग का खतरा बढ़ जाता है।

बरसात के मौसम में बढ़ता है असर
बारिश के मौसम में हेपेटाइटिस का खतरा काफी बढ़ जाता है, क्योंकि यह वायरस से फैलने वाला रोग है। हेपेटाइटिस-ए (एचएवी) एक प्रकार का वायरल संक्रमण है, जो बरसात के कारण संक्रमित भोजन से होता है। बारिश के मौसम में वैसे भी कहा जाता है कि पानी जरा देखभाल कर पिएं। इससे हमारा लिवर प्रभावित होता है। बरसात का ही मौसम हेपेटाइटिस-ई के खतरे को और बढ़ा देता है। वैसे तो हेपेटाइटिस ई साल में कभी भी हो सकता है, लेकिन बरसात के दौरान और बरसात के बाद इसका प्रकोप अधिक रहता है। 

क्या होते हैं लक्षण 
अपने समूह में हेपेटाइटिस-बी (एचबीवी) सबसे खतरनाक है, क्योंकि यह एक शांत संक्रमण है। यह संक्रमित मां से गर्भ में पल रहे उसके शिशु को हो सकता है। अधिकतर लोग इसके संक्रमण से अनजान रहते हैं। इसी अनजाने में दूसरे लोग भी उनसे संक्रमित हो जाते हैं। भूख न लगना, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, पेट दर्द और हल्का बुखार, तीव्र संक्रमण के लक्षण हैं। हालांकि कई मामलों में इन लक्षणों से भी इस संक्रमण की ठीक से पहचान नहीं हो पाती। इसके अलावा जी मिचलाना, उल्टी, फूला हुआ पेट या आंखों एवं त्वचा का पीला पड़ना, कुछ ऐसे गंभीर लक्षण हैं, जिनके बाद तुरंत डॉक्टर के पास जाना जरूरी हो जाता है। हेपेटाइटिस ए और ई के लक्षण 2 से 4 हफ्तों में दिखाई देने लगते हैं। 

क्या है उपचार  
उपचार की प्रक्रिया तब शुरू की जाती है, जब यह पता चल जाए कि कौन सा हेपेटाइटिस है। विशेषज्ञ ये भी देखते हैं कि संक्रमण एक्यूट है या क्रॉनिक। ए और बी के ज्यादातर मामलों में लक्षणों के आधार पर इलाज किया जाता है। हेपेटाइटिस-ए के उपचार के लिए स्वस्थ पौष्टिक आहार और शुद्ध पानी पीने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा एचएवी टीके की सलाह भी दी जाती है। हेपेटाइटिस-बी की रोकथाम के लिए महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान परीक्षण कराने की सलाह दी जाती है तथा एचबीवी टीके की सलाह भी दी जाती है। सी, डी और ई के लिए हाईजीन पर ज्यादा जोर दिया जाता है। सी और ई के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है, जबकि डी के लिए विभिन्न मामलों में एचडीवी टीके की सलाह दी जाती है। 
कुछ अन्य मामलों में बुखार और पेट दर्द के लिए अलग से दवा दी जाती है, जबकि क्रॉनिक मामलों (बी और सी) से ग्रस्त मरीजों का इलाज एंटी वायरल दवाओं से किया जाता है। इससे लिवर सिरोसिस और लिवर कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है। बी या सी के कारण लिवर की गंभीर बीमारियों में लिवर ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। रोकथाम के उपायों के मद्देनजर ए और बी के टीके पहले से ही लगवाने की सलाह भी दी जाती है। खून की एक साधारण सी जांच से ये पता चल जाता है कि आप संक्रमित हैं या नहीं। अधिकतर मामलों में ये भी देखा गया है कि वयस्क लोग बिना किसी दवा के केवल कुछ सावधनियां बरतने से जल्द ही ठीक हो जाते हैं।

खान-पान और साफ-सफाई
आपको संक्रमण नहीं है, बावजूद इसके अपने आसपास साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें।  खान-पान के दौरान बहुत गर्म और तेज मसालेदार भोजन से परहेज करें। जहां तक हो सके, शाकाहारी भोजन करें। फल खाएं। आम, अंगूर और बादाम खाने से फायदा होगा। अधिक मात्रा में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ, सरसों का तेल, मैदा, पेस्ट्री, चॉकलेट, कोल्ड ड्रिंक्स, हींग, मटर जैसी चीजों के सेवन से बचें।  चावल, गेहूं का आटा, आंवला, टमाटर, सूखे खजूर, इलायची, नींबू, केला आदि का सेवन करें। धूप में ज्यादा न निकलें, जरूरत से ज्यादा तनाव न लें और अत्याधिक कसरत से भी बचें। शराब और तंबाकू का सेवन न करें।  

शिशु का ख्याल
हेपेटाइटिस बी और सी आमतौर पर संक्रमित रक्त, शारीरिक संबंध बनाने और संक्रमित मां से बच्चे को हो सकता है। लेकिन अगर इस स्टेज पर शिशु को 24 घंटे के भीतर हेपेटाइटिस और हेपेटाइटिस बी इम्यूनोग्लोबुलिन टीकाकरण कर दिया जाए तो इस बीमारी को रोका जा सकता है। हेपेटाइटिस सी और हेपेटाइटिस बी दोनों ही मामलों में रक्त चढ़ाने या इंजेक्शन के दौरान खास ध्यान रखकर इन बीमारियों से बचा जा सकता है।

(इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी विभाग के  वरिष्ठ सलाहकार डॉ. संजय सिक्का व साकेत स्थित मैक्स हॉस्पिटल के लिवर, बिलियरी साइंसेज के अध्यक्ष डॉ. सुभाष गुप्ता और समाधान गैस्ट्रो एंड डेंटल क्लिनिक के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. श्रीराम अग्रवाल से की गई बातचीत पर आधारित) 

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