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परवरिश: बच्चे बड़े होकर बाहर जाएं पढ़ने तो ऐसे स्वीकारें नए बदलाव को

बच्चे बड़े होते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी दूसरे शहर निकल जाते हैं। पीछे छोड़ जाते हैं, खाली घर। जहां माता-पिता को एक नए सिरे से अपनी जिंदगी से सामंजस्यता बिठानी पड़ती है। कैसे इस...

परवरिश: बच्चे बड़े होकर बाहर जाएं पढ़ने तो ऐसे स्वीकारें नए बदलाव को
स्वाति गौड़,नई दिल्ली Sat, 25 Aug 2018 02:04 PM
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बच्चे बड़े होते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किसी दूसरे शहर निकल जाते हैं। पीछे छोड़ जाते हैं, खाली घर। जहां माता-पिता को एक नए सिरे से अपनी जिंदगी से सामंजस्यता बिठानी पड़ती है। कैसे इस मुश्किल काम को करें आसान, बता रही हैं स्वाति गौड़

बच्चे की किलकारी हर माता-पिता के लिए सबसे मधुर संगीत होती है। उसे उंगली पकड़ कर चलना सिखाना, उसकी तोतली जबान में बातें सुनकर उसे लाड करना, सब बेहद सुखद होता है। लेकिन, यह भी सच है कि बच्चे के जन्म के बाद मां की जिंदगी का केंद्रबिंदु वही बन जाता है। वह सोती अपने बच्चे के लिए है और जागती अपने बच्चे के लिए है। बच्चे के जन्म के बाद उसके लालन-पालन की जिम्मेदारियां मां की सारी ऊर्जा को कहीं-न-कहीं पूरी तरह से निचोड़ लेती है। 
यह तो हुई जन्म से लेकर स्कूल के दिनों तक की बात। लेकिन जब वह बच्चा स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद,  घर से बाहर अपनी नयी दुनिया बनाने निकलता है, तो अक्सर अभिभावक के लिए इसे सहजता से ले पाना मुश्किल हो जाता है। बच्चे के बिना खाली घर अभिभावक को इतना ज्यादा परेशान करता है, जितना बच्चे की शैतानियां भी नहीं करती थीं। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि परिवर्तन संसार का नियम है, इसलिए बेहतर यही है कि आप अपने जीवन में आये इस नये बदलाव को स्वीकारें और सहज रहने की कोशिश करें। 

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बच्चे के लिए महत्वपूर्ण हैं आप
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करना इस बात का सूचक है कि अब आपका नन्हा बड़ा हो चुका है और उसे अब आपकी उंगली पकड़ कर चलने की जरूरत नहीं है, लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि उसके जीवन में आपका महत्व कम हो गया है। इस बात को खुले दिल से स्वीकारें कि यह आपकी ही अथक मेहनत और लगन का नतीजा है कि आज आपका बच्चा अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बन पाया है। इसलिए बच्चे की सफलता में खुद की सफलता का जश्न भी मनाएं। बच्चे की सफलता इस बात का प्रमाण है कि अपनी तमाम परेशानियों और दिक्कतों के बावजूद आप अपने बच्चे को बेहतर परवरिश देने में कामयाब रही हैं। इससे उसमें भी यह अहसास जगेगा कि 
आप उसकी खुशी में बराबर से शरीक हैं। 

स्वीकारें कि अब वह बच्चा नहीं रहा
जब बच्चा बड़ा होने के बाद पहली बार बाहर की दुनिया में कदम रखता है, तो वो हर नया अनुभव लेना चाहता है। ऐसे में संभव है कि वह आपके साथ ज्यादा समय न बिता पाये। यह भी हो सकता है कि उसके जीवन पर किसी अन्य व्यक्ति का विशेष प्रभाव पड़ रहा हो। लेकिन ऐसे समय में घबराने के बजाए या असुरक्षित महसूस करने के बजाए संयम से काम लें। बेशक अपने बच्चे को लायक और काबिल बनाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान आपका ही है, लेकिन जब बच्चा आत्मनिर्भर होना शुरू करता है, तो बहुत से नये लोगों के संपर्क में आता है, जिनमें से कुछ उसके जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित भी करते हैं। ऐसी स्थिति में उससे बहस करने के बजाए इस बात को मानें कि अब वह व्यस्त हो रहा है और उसकी पसंद-नापसंद का अधिकार उसके पास है।

यह सही है कि आपने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अपने बच्चे की परवरिश में पूरी ईमानदारी से लगा दिया। पर, अब इस बात को खुशी से स्वीकारें कि आपके पास अपने लिए और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए पूरा-पूरा समय है। यह भरोसा रखिये कि आपका बच्चा अपने लिये जीवन में आगे का रास्ता खुद ढूंढ़ लेगा, क्योंकि अब वह इतना छोटा नहीं है कि बात-बात में उसे आपकी मदद की जरूरत पड़े। इसलिए इस बात की ग्लानि अपने अंदर न रखें कि आप उसके लिए हर वक्त मौजूद नहीं हैं।  

बदलिये अपना नजरिया
गिलास आधा खाली है या आधा भरा, यह तय करना आपकी सोच और जीवन के प्रति आपके नजरिये को व्यक्त करता है। तो क्यों न इस बदलाव को पूरी तरह सकारात्मक रूप में लिया जाए। बेशक आपका बच्चा इतने साल आपके जीवन की धुरी बना रहा, लेकिन अब जरा अपनी सोच और जीने के तरीके में बदलाव लाइये। आप चाहें तो कोई हॉबी क्लास ज्वाइन कर सकती हैं। बरसों से किसी मित्र से नहीं मिलीं हैं, तो उससे मिलने का समय निकालिये। दोस्तों संग बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाइये। या फिर लिखने-पढ़ने का शौक है, तो उसे पूरा कीजिए। कहने का मतलब है कि उम्र के इस पड़ाव पर अकेलापन महसूस करने और दुखी होने के बजाए इस बात की खुशी मनाइये कि आपको एक बार फिर से अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने का मौका मिला है। अगर आप ऐसा करेंगी तो यकीन मानिये आपके बच्चे को भी इससे बहुत खुशी मिलेगी और जिंदगीभर आप उसके लिए एक आदर्श और मिसाल बनकर रहेंगी कि जिंदादिली के साथ कैसे जिया जाता है। 
(काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट गुरलीन खोखर 
से बातचीत पर आधारित)

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