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आओ राजनीति करें : सिर्फ वोट डालने की नहीं, फैसले लेने में भी हो पूरी हिस्सेदारी

'हिन्दुस्तान' के लोकप्रिय मतदाता जागरूकता अभियान 'आओ राजनीति करें' की इस बार की थीम 'अब नारी की बारी' के तहत सोमवार को गुरुग्राम कार्यालय में आयोजित संवाद में कामकाजी महिलाओं...

गुरुग्राम ऑफिस में राजनीति पर चर्चा के लिए पहुंचीं विभिन्न क्षेत्रों की महिलाएं। (हिन्दुस्तान)
1/ 2गुरुग्राम ऑफिस में राजनीति पर चर्चा के लिए पहुंचीं विभिन्न क्षेत्रों की महिलाएं। (हिन्दुस्तान)
गुरुग्राम ऑफिस में राजनीति पर चर्चा करतीं विभिन्न क्षेत्रों की महिलाएं। (हिन्दुस्तान)
2/ 2गुरुग्राम ऑफिस में राजनीति पर चर्चा करतीं विभिन्न क्षेत्रों की महिलाएं। (हिन्दुस्तान)
गुरुग्राम। हिन्दुस्तान टीम Tue, 09 Apr 2019 07:09 PM
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'हिन्दुस्तान' के लोकप्रिय मतदाता जागरूकता अभियान 'आओ राजनीति करें' की इस बार की थीम 'अब नारी की बारी' के तहत सोमवार को गुरुग्राम कार्यालय में आयोजित संवाद में कामकाजी महिलाओं आधी आबादी को पूरे अधिकार देने की बात कही। उन्होंने कहा कि नीचे से लेकर ऊपर तक संख्या के हिसाब से भागीदारी मिलनी चाहिए ताकि वे लोकतंत्र में सिर्फ वोट देने की भूमिका तक न रहे बल्कि फैसलों में भी उनकी सहभागिता हो।...

करीब 23 साल पहले गुरुग्राम आईआईएम गुड़गांव की संस्थापक लतिका ठुकराल ने संवाद की शुरुआत करते हुए कहा कि बतौर कामकाजी महिला वह महसूस करती हैं कि इस शहर में बाहर से आने वाले प्रवासियों की दिक्कतें दूर की जानी चाहिए। ठुकराल ने कहा कि कामकाजी महिलाएं तब बाहर निकल पाती है जब उनके दूसरी जिम्मेदारियों को देखने वाला कोई होता है, हमें ड्राइवर, नौकर और सुरक्षाकर्मी तो चाहिए, तो उनकी दिक्कतें भी दूर करनी होगी। ठुकराल ने कहा आज इन तबके के लोगों के ईडब्ल्यूएस फ्लैट का प्रावधान है, लेकिन इन्हें मिल ही नहीं पाते हैं। ये खाली पड़े हैं। उन्होंने कहा कि इस शहर में एक ईडब्ल्यूएस फ्लैट का रेट 15 लाख से 25 लाख तक है। यही स्थिति स्कूलों में दाखिले की है। उन्होंने कहा दूसरी बड़ा मुद्दा है कि शहर कतई सुरक्षित नहीं है। इतने सालों बाद वह सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। स्ट्रीट लाइट्स शहर में नहीं हैं। अगर हैं तो वे जलती नहीं है सार्वजनिक परिहवहन की काफी कमी है। इन मोर्चों पर जब तक काम नहीं किया जाएगा तब तक शहर न तो कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित होगी न ही दूसरो के लिए।

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पूर्व में राष्ट्रीय महिला आयोग और वर्तमान में हरेरा से जुड़ी लीगल एक्सपर्ट डॉ. गीता राठी ने कहा कि महिलाओं को पूरी प्रक्रिया में हिस्सेदारी मिलनी चाहिए, उनकी भूमिका सिर्फ वोट देने तक क्यों होनी चाहिए? उन्हें बूथ लेवल पर पोलिंग एजेंट भी बनाया जाना चाहिए। मेनिफेस्टो में क्या होना चाहिए। इस बारे में उनकी राय और सुझाव लिए जाएं। इतना ही नहीं उन्हें इस कमेटी में जगह भी मिलनी चाहिए। राठी ने पूछा कि अगर महिलाएं आधी आबादी हैं तो आखिर उन्हें कब पूरी हिस्सेदारी कब मिलेगी? राठी ने कहा कि ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए ताकि महिलाएं खुद फैसले लें, चाहे वह शादी ये जुड़ा हो या फिर मां बनने और नौकरी करने और छोड़ने का हो। उन्होंने कहा कि इसमें सरकार और जनप्रतिनिधियों को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। 'राइट टू चूज' सुनिश्चित होना चाहिए।

कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में एचआर और सलाहकार की भूमिका निभा चुकी वर्तमान में लीडरशिप कोच नीना भट्टाचार्जी ने संवाद में कई उदाहरण देकर अपनी बात रखी। उन्होंने महिलाएं ज्यादा राष्ट्र निर्माण में भागीदारी रखें इसके लिए जरूरी है कि कार्यस्थल पर उनकी सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए। उन्होंने कहा ऐसा होगा तो महिलाएं बाहर निकलने में नहीं डरेंगी। उन्होंने कहा कि वह अपने अनुभव से कहती हैं कि उन्हें काफी दिक्कतें होती हैं और आपेक्षित सहयोग नहीं मिलता है। उन्हें दबाया नहीं जाना चाहिए। इसके उन्होंने कहा कि श्रम नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित हो, ताकि उन्हें समान वेतन मिले। कम्प्लाइअन्स सही में होनी चाहिए। गोल्ड सुक में ज्वैलरी डिजाइनर मोनिका कपूर ने कहा कि शहर लोगों को पता ही नहीं है कि वह शिकायत लेकर कहां जाएं? शिकायतों के निस्तारण की पुख्ता व्यवस्था हो, उन्होंने जेनपैक्ट पर बन रहे राउंड एबाउट का उदाहरण दिया। कहा कि यहां आए दिन हादसे होते हैं लेकिन इन्हें रोकने की पुख्ता व्यवस्था नहीं है। काम भी बहुत दिनों से चल रहा है।

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मैक्स गुरुग्राम में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीषा अरोड़ा ने कहा कि सिम्पैथी की बजाए इमपैथी की जरूरत है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि माइंडसेट में बदलाव लाए जाए। इसके लिए स्वच्छ भारत जैसी पहल होनी चाहिए। अरोड़ा ने भी कामकाजी महिलाओं के हॉस्टल होने का समर्थन किया। उन्होंने कहा इस पर काम होना चाहिए, ये न सिर्फ रहने योग्य हों बल्कि सुरक्षित भी हों। अरोड़ा ने कहा कि बच्चों को नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए। पेश से इंटीरियर डिजाइनर और डीएलएफ फेस-1 की निवासी विजेयता चंडोला ने कहा कि शहर की सड़कें बिल्कुल सुरक्षित नहीं है न वे पैदल चलने वालों के अनकूल हैं न ही महिलाओं और साइकिल से चलने वालों के लिए। चंडोला ने कहा आरडब्लूए अपने स्तर काफी अच्छी कोशिश कर रही हैं, प्रशासन और जनप्रतिनिधि भी प्रोत्साहन दें। लीगल एक्सपर्ट सुखम गिरन ने कहा कि जनप्रतिनिधि आधी आबादी के सशक्तीकरण के लिए मजबूती से काम करे। वह महिलाओं के न सिर्फ हक दिलवाए बल्कि कानूनी प्रावधानों के अगवत कराने की व्यवस्था भी करे। इसके साथ सरकारी तंत्र को बेहद संवेदनशील बनाए। जो नियम और गाइंडलाइंस हैं उनके अनुपालन की निगरानी करे। महिलाएं अधिक संख्या में कामकाजी बनें इसके लिए और बेहतर माहौल की जरूरत है। इसकी जिम्मेदारी सरकारी तंत्र की और उनकी निगरानी का जिम्मा जनप्रतिनिधि पर होता है। 

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