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उत्तराखंड में बाढ़ और बड़े भूकंप का खतरा, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में बड़ी आपदा का खतरा मंडरा रहा है। अब तक कई ऐसे स्थान चिन्हित किए गए हैं, जहां पर नदियों से बाढ़ का खतरा है। वहीं भूकंप के लिहाज से पूरे...

उत्तराखंड में बाढ़ और बड़े भूकंप का खतरा, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी
Thakur.negiदेहरादून, कार्यालय संवाददाताSat, 22 Jul 2017 01:01 PM
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वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तराखंड में बड़ी आपदा का खतरा मंडरा रहा है। अब तक कई ऐसे स्थान चिन्हित किए गए हैं, जहां पर नदियों से बाढ़ का खतरा है। वहीं भूकंप के लिहाज से पूरे प्रदेश को अति संवेदनशील माना गया है। ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए वैज्ञानिक पिछली आपदाओं का डाटा एकत्र कर रहे हैं, ताकि बचाव के उपाय किए जा सकें। 

देहरादून में शुक्रवार को यूएनडीपी और उत्तराखंड सरकार की ओर से जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन और पुनर्वास पर आयोजित कार्यशाला में यह तथ्य सामने आए हैं। कार्यशाला में डिजास्टर रिस्क एसेसमेंट स्टडी एंड रिवर मॉर्फोलॉजी, उत्तराखंड के वैज्ञानिक डॉ. गिरीश चंद्र जोशी ने शोधपत्र प्रस्तुत किया। बताया कि डिजास्टर रिस्क एसेसमेंट स्टडी के तहत डाटा बेस तैयार किया जा रहा है। प्रदेश में जो भूस्खलन क्षेत्र चिन्हित किए जा रहे हें, उनकी पूरी जानकारी जल्द सार्वजनिक की जाएगी, ताकि इसकी रोकथाम के लिए जनता को भी इसकी जानकारी दी जा सके।

गढ़वाल में 1803 में आया था विनाशकारी भूकंप

बताया कि भूकंप के लिहाज से प्रदेश में सर्वे का काम भी चल रहा है। भूकंप को लेकर सिस्मिक गैप की मैपिंग भी कराई जा रही है। उन्होंने बताया कि हिमालयी क्षेत्र में जो ऊर्जा संचित होती है, वह करीब 200 सालों में बड़े भूकंप के रूप में बाहर आती है। इसलिए उत्तराखंड समेत पूरा हिमालयी क्षेत्र हाई रिस्क पर है। 
1803 में गढ़वाल क्षेत्र में सबसे बड़ा भूकंप आया था। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 8.5 थी। इस भूकंप को गढ़वाल अर्थक्वेक के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड में इस तीव्रता का भूकंप इसके बाद रिकार्ड नहीं किया गया है। 1991 में उत्तरकाशी और 1999 के चमोली के भूकंपों को इस लिहाज से छोटा बताया जाता है। श्रीनगर, चमोली, उत्तरकाशी, धारचूला में भूकंप आए, लेकिन उनकी तीव्रता कम थी। 1991 में उत्तरकाशी में आए भूकंप की तीव्रता 6.8 आंकी गई थी। हालांकि इससे उत्तरकाशी और आसपास के क्षेत्र में काफी नुकसान हुआ था। 1803 का भूकंप बताता है कि इस भूभाग में दोबारा कभी भी इतनी क्षमता का भूकंप आ सकता है।

उत्तराखंड में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र किए जा रहे चिन्हित 

डा. जोशी ने कहा कि उत्तराखंड की चार नदियों अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी और काली नदी में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र चिन्हित किए जा रहे हैं। अब तक 45 ऐसे स्थान चिन्हित किए जा चुके हैं, जिनमें कभी भी बाढ़ आ सकती है। खतरों का डाटा बेस तैयार किया जा रहा है, ताकि बचाव के उपाय किए जा सकें। 2050 तक इन क्षेत्रों में कितनी बार बाढ़ की आशंका है, इसपर भी काम किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि अध्ययन समाप्त होने तक बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों की संख्या बढ़ सकती है। डा. गिरीश जोशी ने बताया कि दिसंबर 2017 तक प्रोजेक्ट पूरा कर इसकी विस्तार से जानकारी ऑनलाइन जारी की जाएगी।

समय–समय पर वैज्ञानिक जारी करते रहे हैं चेतावनी

भूगर्भ से जुड़े वैज्ञानिक समय–समय पर उत्तराखंड में बड़े भूकंप और अन्य दूसरी आपदाओं की चेतावनी जारी करते रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि लंबे समय से उत्तराखंड के इलाके में बड़ा अर्थक्वेक नहीं आया है, जिसके चलते उत्तराखंड खतरे में बना हुआ है। वैज्ञानिक यह मानते हैं कि यह क्षेत्र बड़े भूकंप से निपटने के लिए तैयार नहीं है। 

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