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VIDEO: चोपता कौथिग शुरू, पहले दिन दिखा धर्म, संस्कृति और विज्ञान का अनूठा संगम

श्री सिद्धपीठ राजराजेश्वरी गिरिजा भवानी चोपता चौंरी में गाजे-बाजों की थाप और विधिवत पूजा अर्चना के साथ कौथिग शुरू हो गया है। पहले दिन मेले में धर्म, संस्कृति और विज्ञान का अनूठा संगम देखने को मिला।...

VIDEO: चोपता कौथिग शुरू, पहले दिन दिखा धर्म, संस्कृति और विज्ञान का अनूठा संगम
हिन्दुस्तान टीम,नारायणबगड़Mon, 20 Nov 2017 06:50 AM
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श्री सिद्धपीठ राजराजेश्वरी गिरिजा भवानी चोपता चौंरी में गाजे-बाजों की थाप और विधिवत पूजा अर्चना के साथ कौथिग शुरू हो गया है। पहले दिन मेले में धर्म, संस्कृति और विज्ञान का अनूठा संगम देखने को मिला। मंदिर में जहां जोत प्रज्जवलन के साथ हरियाली डाली गई। वहीं धार्मिक मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम और विज्ञान प्रदर्शनी ने इसके सामाजिक महत्व को भी बढ़ा दिया। 

पिंडरघाटी की आस्था के केंद्र सिद्धपीठ चोपता चौंरी में नौ दिनों तक चले वाला मेला शुरू हो गया है। मेले में हर दिन धार्मिक, सांस्कृतिक एवं खेलों का आयोजन होगा। बड़ी संख्या में लोगों की मौजदूगी में जिला पंचायत अध्यक्ष मुन्नी देवी शाह ने मेले का उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि मेला क्षेत्र के समृद्ध संस्कृति और इतिहास को संजोने का काम कर रहा है। उन्होंने स्थानीय लोगों के प्रयासों सराहना की। इस दौरान महिलाओं और स्कूली बच्चों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। पंडित अरुण सती ने बताया कि सुबह सबसे पहले माता की प्रतिमा को गांव से शोभायात्रा के साथ मंदिर में लाया गया।

देवताओं का आह्वान कर मेले के सकुशल संपन्न होने की कामना की गई। सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन सरोप सिंह सिनवाल और दलवीर सिंह रावत ने किया। इस मौके पर मंदिर कमेटी के अध्यक्ष अवतार सिंह सिनवाल, विद्यायक प्रतिनिधि सरस्वती देवी कनेरी, ज्येष्ठ उपप्रमुख गम्भीर सिंह नेगी, ग्राम प्रधान ऊषा रावत, महिला मंगल दल अध्यक्ष आशा देवी, युवक मंगल दल अध्यक्ष मुकेश रावत, लीलानंद सती, रमेश प्रसाद, दिनेश प्रसाद सती, रणजीत सिंह रावत, सुनील, आशीष, भवानी लाल, बलवीर सिंह, दिगपाल सिंह, गजपाल सिंह नेगी, सोबन सिंह आदि मौजूद रहे। 

घराट-पवन चक्की के मॉडल रहे आकर्षण का केंद्र

मेले के पहले दिन मॉडल प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इसमें क्षेत्र के स्कूलों ने हिस्सा लिया। कन्य जूनियर हाईस्कूल चोपता के बच्चों के वर्किंग मॉडल आकर्षण का केंद्र रहे। बच्चों ने घराट, पवन चक्की, सॉलर लाइट का वर्किंग मॉडल दिखाकर सबको अपनी ओर खींचा। राजकीय आदर्श प्राथमिक स्कूल चोपता के बच्चों का प्रदर्शन भी अच्छा रहा। राजकीय इंटर कॉलेज चोपता के छात्रों ने भी मॉडल के जरिये विज्ञान को आसानी से समझाने का प्रयास किया। 

जानिए मेले का धार्मिक महत्व 

शिक्षक गजपाल सिंह नेगी बताते हैं कि इस सिद्धपीठ को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं। एक दंत कथा के अनुसार द्वापर युग में जब राजा दक्ष के दरबार में माता सती यज्ञ कुंड में कूद गईं तो क्रोधित भोलेनाथ विलाप करते हुए दक्ष राज्य पहुंचे। उन्होंने माता सती के क्षत विक्षत शरीर को कंधे में उठाकर कैलाश को प्रस्थान किया। यह देखकर देवताओं में चिंता व्याकुल हो उठी कि यदि कैलाश पति ऐसे ही विलाप करते रहेंगे तो सृष्टि का क्या हेागा। यह देख भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के क्षत विक्षत शरीर को काटना शुरू कर दिया। जहां-जहां माता रानी के शरीर के टुकड़े गिरे, वहां-वहां सिद्धपीठ की स्थापना हुई। सिद्धपीठ कहलाए जाने वाले चोपता चौंरी में भी माता सती के शरीर का एक हिस्सा पड़ा है।

बुजुर्ग माता की कहानी भी काफी प्रचलित

दूसरी दंत कथा के अनुसार जब आदि गुरु शंकराचार्य ने मठ एवं चारधामों की स्थापना की तो धार्मिक यात्राओं का दौर शुरू हुआ। इन्हीं यात्राओं में एक यात्रा थी बदरीनाथ की। मां राजराजेश्वरी गिरिजा भवानी भी इस यात्रा के लिए निकलीं। वह एक वृद्ध महिला के भेष धारण करके आईं। माता जब नंदकेसरी होते हुए चलियापानी खाल पहुंची तो शाम होने को गई। माता को थकान महसूस हुई। उन्होंने अरखंडा गांव के नीचे एक गुफा में थोड़ी देर विश्राम किया। शाम हो आई थी, माता को सामने एक बड़ा गांव दिखाई दिया। माता ने गांव की ओर प्रस्थान किया। इस गांव का नाम था ‘चोबाटा’ यानी चार रास्ते वाला गांव इस गांव का नाम बाद में चोपता पड़ा। मां रात्रि में इस गांव में पहुंची। गांव वालों ने मां की खूब आवभत की भोजन के बाद माता ने थोड़ी देर विश्राम किया। माता विश्राम के बाद यात्रा पर चलने लगी। गांव वालों ने आग्रह किया कि रात्रि यहीं विश्राम करें, प्रात: काल चली जाइए। लेकिन माता ने कहा मुझे यह यात्रा रातों रात पूरी करनी है। गांव वालों ने माता के लिए मशाल की व्यवस्था की। थोड़ी दूरी जहां अब मंदिर है, वहां पहुंचते ही मशाल टूट गई और माता अंदरध्यान हो गईं। अब वहीं पर विशाल मंदिर बनाया गया है। जहां मशाल गिरी थी वहां अब गुरु गोरखनाथ की धुनी है। जिस घर में माता की आवभगत हुई थी, वहां भी भव्य मंदिर है।

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