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साधकों ने देवी कूष्मांडा से मांगी सर्वसिद्धी

शारदीय नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर देवी के भक्तों ने देवी के कूष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन किया। कूष्मांडा स्वरूप में देवी नगर के दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर में विराजमान हैं। रविवार को भोर में ही...

साधकों ने देवी कूष्मांडा से मांगी सर्वसिद्धी
वाराणसी। प्रमुख संवाददाताMon, 25 Sep 2017 03:21 PM
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शारदीय नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर देवी के भक्तों ने देवी के कूष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन किया। कूष्मांडा स्वरूप में देवी नगर के दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर में विराजमान हैं। रविवार को भोर में ही देवी के दर्शन के लिए मंदिर के बाहर कतार लग गई थी।

देवी दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप के दर्शन-पूजन का क्रम रात्रि में मंदिर बंद होने तक जारी रहा। दुर्गा मंदिर में सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त भी किए गए थे। पं. विष्णुपति त्रिपाठी के अनुसार, नवरात्र के चौथे दिन साधक का मन ‘अदाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अंड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है। इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजी भी कहलाईं। 

इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कोहड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कोहड़े को संस्कृत में कूष्मांड कहते हैं इसलिए देवी को कूष्मांडा। यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। यह देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं।

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