बापू बोले बाप...! और शुरू हो गई संगीत मंडली
रविवार की सुबह। करीब नौ बजे का वक्त। खिली धूप काशी की प्राकृतिक घाट दीर्घा की शोभा नित्य की भांति बढ़ा रही है। सनातन संस्कृतिक की संवाहिका गंगा की धारा के पश्चिम में महाश्मशान मणिकर्णिका। पूरब में...
रविवार की सुबह। करीब नौ बजे का वक्त। खिली धूप काशी की प्राकृतिक घाट दीर्घा की शोभा नित्य की भांति बढ़ा रही है। सनातन संस्कृतिक की संवाहिका गंगा की धारा के पश्चिम में महाश्मशान मणिकर्णिका। पूरब में मानस-मसान की व्याख्या के लिए स्थापित व्यास पीठ। व्यासपीठ पर विराजमान मानस शिल्पी मोरारी बापू और उनके सम्मुख विराजमान हैं हजारों की संख्या में नर-नारी जुट चुके हैं।
उधर गंगा किनारे अस्सी, केदारघाट, दशाश्वेध, मणिकर्णिका, गायघाट और राजघाट की ओर से मोटर बोटों की कतारें पंचगंगा घाट ठीक सामने बनाए गए जेटी की ओर बढ़ रही हैं। देश-दुनिया से जुटे हजारों लोग काशी के अनुपम र्सोदर्य को निहारते हुए कथा स्थल की ओर अग्रसर हैं। बोट से उतर कर बुजुर्ग ई-रिक्शा के सहारे तो युवा और अधेड़ चहलकदमी करते हुए मुख्य पंडाल की ओर लगातार बढ़ते आ रहे हैं। सौ मीटर लंबे और साठ मीटर चौड़ा पंडाल 70 फीसदी भर चुका है। कथास्थल के पश्चिमी हिस्से में बनी हरिशचंद्र घाट और अस्सी घाट दीर्घा में बैठे लोगों की नजर दक्षिण की ओर से आते लग्जरी वाहनों के काफिले पर पड़ते ही सभी सजग हो गए हैं। कोई अपने बैग से ठाकुर जी की मूर्ति निकाल कर उसे सजाने लगा तो कोई मानस की पोथी सहेजने लगा है। सुबह के ठीक 09:29 बजे मोरारी बापू कथा स्थल पर आ चुके हैं। मंच पर आकर व्यास पीठ की परिक्रमा करने के बाद दोनों हाथ जोड़े निर्विकार भाव से अपनी गर्दन 180 अंश पर घुमा रहे हैं। इस दौरान वह समग्र भीड़ को समभाव से अपलक देख रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है राम कथा में भीड़ में उपस्थित हनुमान की तलाश कर रहे हों। लगभग तीस सेकेंड तक श्रोताजन को निहारने के बाद बापू अब व्यास पीठ पर आसीन हो चुके हैं। आदतन बापू के मुख से पहला शब्द बाप...! ही फूटा। यह बाप शब्द जहां श्रोताओं के लिए सामूहिक संबोधन है वहीं मंच पर बाईं ओर बैठी संगीत मंडली के लिए इशारा। यह इशारा पाते ही संगीत मंडली ने कथा विस्तार से पूर्व श्रीराम नाम संकीर्तन की धुन छेड़ दी है।