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18 माह में तीन तो ढाई माह में 4 किलोमीटर सफाई कैसे हो

अस्सी से राजघाट तक सात किलोमीटर ओल्ड ट्रंक (शाही) नाले की सफाई जलनिगम की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रही है। पिछले डेढ़ साल में अब तक तीन किलोमीटर सफाई की गई है। जबकि पिछले दिनों मंडलायुक्त नितिन रमेश...

18 माह में तीन तो ढाई माह में 4 किलोमीटर सफाई कैसे हो
वाराणसी। अमरीष सिंह Sun, 20 Aug 2017 11:13 PM
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अस्सी से राजघाट तक सात किलोमीटर ओल्ड ट्रंक (शाही) नाले की सफाई जलनिगम की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रही है। पिछले डेढ़ साल में अब तक तीन किलोमीटर सफाई की गई है। जबकि पिछले दिनों मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण ने दिसंबर तक चार किलोमीटर नाले को साफ करने का निर्देश दिया है। सूत्रों के मुताबिक मार्च 2018 से पहले किसी भी हाल में सफाई नहीं हो पाएगी।  

जायका के तहत 7.1 किमी तक लंबे नाले की सफाई की जिम्मेदारी अगस्त 2015 में जलनिगम गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई को दी गई थी। जल निगम ने जनवरी 2016 से सफाई कार्य शुरू कराया। दिसंबर में काम पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित है, परंतु अब तक 2.8 किलोमीटर ही नाले की सफाई का कार्य पूरा हो पाया है। सफाई के दौरान पानी के डायवर्जन के लिए शहर में कई जगहों पर सड़कों पर मोटी-मोटी पाइपें लगा दी गई हैं। इससे शहर में आए दिन जाम लगता है। लहुराबीर से गोदौलिया के बीच लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है।

पिछले दिनों मंडलायुक्त के साथ समीक्षा बैठक में कार्यदायी संस्था के परियोजना अधिकारियों को हिदायत दी गई कि दिसंबर तक काम पूरा करें, नहीं तो सामान खुद पैक कर लें। 

शाही नाले की सफाई का कार्य तेजी पर है। अस्सी से गिरिजाघर चौराहे तक का काम पूरा कर लिया गया है। मंडलायुक्त के निर्देश पर दिसंबर तक कार्य पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। 
- संजय सिंह, महाप्रबंधक, जलनिगम गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई 

साढ़े सात फीट से भी ज्यादा है व्यास
कार्यदायी संस्था जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन एजेंसी (जायका) के प्रोजेक्ट मैनेजर संदीप कुमार ने बताया कि शाही नाले को मजबूत ईंटों से बनाया गया है। 7.56 फीट व्यास में पानी गुजरने के लिए नाला बना है। पांच से छह लेयर में ईंटों का इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने बताया कि अभी 70 फीसदी नाले में सिल्ट जमा होने से पानी का बहाव न के बराबर होता था।

1912 में ब्रिटिश इंजीनियर ने बनाया शाही नाला 
अस्सी से राजघाट स्थित वसंत कॉलेज तक शहर की घनी आबादी के बीच जमीन के अंदर साढ़े तीन मीटर से सात मीटर गहराई में सात किलोमीट तक ट्रंक सीवर का निर्माण 1891 में ब्रिटिश इंजीनियर एजे ह्यूज ने शुरू कराया था। 1912 में सीवरेज सिस्टम लागू हुआ। बीएचयू के आईटी विशेषज्ञ एसएन उपाध्याय ने बताया कि शहर की आबादी कम होने के कारण तब सीवर की व्यवस्था नहीं थी। मुगलकाल में औरंगाबाद से गोदौलिया होते हुए दशाश्वमेध घाट तक शाही नाले का निर्माण कराया गया था। 

शाही नाला एक नजर में
लंबाई : अस्सी से राजघाट तक 7.172 किलोमीटर में विस्तार 
रूट : अस्सी, शिवाला, रेवड़ी तालाब, गिरजाघर चौराहा, बेनियाबाग, कोनिया, राजघाट 
अनुमानित धनराशि : 71.88 करोड़ रुपये 
चौड़ाई : अधिकतम 7.56 फीट व्यास में पानी का बहाव 

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