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यूपी के इन 23 गांवों में 99 सालों से था ऐसी दिवाली का इंतजार

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के पांच और महराजगंज के 23 वनटांगियां गांवों में रहने वाले लगभग पांच हजार वनटांगियों को इस दिवाली का इंतजार 99 साल से था। अंग्रेजों के जमाने में...

यूपी के इन 23 गांवों में 99 सालों से था ऐसी दिवाली का इंतजार
अजय कुमार सिंह,गोरखपुरThu, 19 Oct 2017 02:13 PM
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यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर के पांच और महराजगंज के 23 वनटांगियां गांवों में रहने वाले लगभग पांच हजार वनटांगियों को इस दिवाली का इंतजार 99 साल से था। अंग्रेजों के जमाने में इनके पूर्वजों ने बेतहाशा जुल्म सहे। साखू के घने जंगल लगाये। बदले में इन्हें ऐसा वनवास मिला जो आजाद भारत में भी जारी रहा। आज दिवाली के दिन मुख्यमंत्री के रूप में उनके बीच आ रहे योगी आदित्यनाथ उनके गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा देकर यह वनवास खत्म करेंगे। 

वह वनग्राम तिनकोनिया में आयेंगे जहां पिछले दो हफ्तों से सफाई का काम चल रहा है। सुबह से शाम तक दस्ते उस कच्चे रास्ते के गड्ढों को भरने के साथ जंगल के बीचोंबीच गांव के पास की खाली जगह को साफ करने में जुटे रहते हैं।

सांसद के रूप में दिवाली पर यहां आते रहे योगी आदित्यनाथ वनटांगियों के बच्चों के लिए ड्रेस, कॉपी-किताब, खिलौने और ऐसे कई तोहफे लाते थे। लेकिन इस बार वह जो तोहफा इन्हें देने जा रहे हैं वो अब तक मिले तोहफों में सबसे खास होगा। राजस्व ग्राम का दर्जा पाने के लिए वनटांगियों ने बहुत कुछ झेला है। लाठियां-गोलियां खाते हुए लम्बा संघर्ष किया है।

1918 से शुरू हुई जुल्म की दास्तां  
टांगिया मजदूरों पर जुल्म की 1918 में शुरू हुई कहानी देश की आजादी के बाद भी चलती रही। आजाद भारत में भी टांगियों का अपना कोई वजूद नहीं बन पाया। सरकारी कागजों में उनकी कोई पहचान कहीं भी दर्ज नहीं हुई। आजादी के बाद कई दशकों तक प्रशासन इनसे काम लेता रहा लेकिन न इन्हें नागरिक माना, न कोई पहचान पत्र दिया।
लिखापढ़ी में न इनके गांवों का कोई वजूद था और न ही इन्हें अपना प्रधान या प्रतिनिधि चुनने का कोई अधिकार। राशन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड और जॉब कार्ड का तो सवाल ही नहीं उठता था। इसीलिए सीएम के हाथों से राजस्व ग्राम का प्रमाण पत्र मिलने की सूचना ने वनटांगियों को ऐसी खुशी से भर दिया है जिसे सिर्फ वे ही महसूस कर सकते हैं।

ऐसे बने टांगिया मजदूर : 
बात 20 शताब्दी की शुरुआत की है। देश में टांगिया पद्धति से जंगल लगाने की शुरुआत हुई। उन दिनों देश में रेलवे का विस्तार किया जा रहा था। पटरियां बिछाने के लिए बड़े पैमाने पर मजबूत लकड़ियों की जरूरत थी। जंगलों से बड़े पैमाने पर साखू लकड़ी की कटाई होने लगी। तब ब्रिटिश सरकार ने साखू के नये जंगल लगाने का फैसला किया। बताते हैं कि अंग्रेज अधिकारियों का एक दल बर्मा गया हुआ था। वहां उन्होंने टांगिया पद्धति से जंगल लगाने का काम देखा और वापस आकर भारत में मजदूरों को प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया। अंग्रेज, मजदूरों के अलग-अलग जत्थे बनाते। उन्हें जंगल लगाने के लिए अलग-अलग स्थानों पर अस्थाई रूप से बसा देते।

मजदूरों के एक जत्थे के हिस्से 30 हेक्टेअर जमीन आती थी। साखू के पौधे लगाने के बाद पांच साल तक मजदूरों को उसी जमीन पर पौधों की देखरेख करनी होती थी। इसके लिए वे उन पौधों के आसपास ही रहते थे। पौधों के बीच मजदूरों को खेती के लिए जमीन मिलती थी जिसमें वे एक फसल उगा सकते थे। बताते हैं कि पौधरोपण और उनकी सुरक्षा करने की टांगिया पद्धति का पालन अंग्रेज अधिकारी बड़ी सख्ती और निर्दयता से कराते थे। मजदूरों को तपती दुपहरिया, बारिश और ठंड के दिनों में समान रूप से काम करना पड़ता था। छोटी-मोटी गलती पर भी उन्हें सख्त सजा दी जाती थी। यह एक तरह की बंधुआ मजदूरी थी।

पांच साल में जब साखे के पौधे तैयार हो जाते थे वनटांगियों को नई जमीनों पर इसी काम के लिए भेज दिया जाता था। आजादी के बाद भी गोरखपुर और महराजगंज सहित उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में 80 के दशक की शुरुआत तक टांगिया मजदूरों से काम लिया जाता रहा लेकिन इसके बाद वन विभाग और वनटांगिया मजदूरों के बीच संघर्ष होने लगा। वन विभाग, टांगियों को अतिक्रमणकारी मानते हुए जंगल से बाहर करने पर तुल गया। उधर, टांगियों का कहना था कि पीढ़ियों से यही काम करने के चलते उनके पास जंगल और खेती के अलावा और कुछ है ही नहीं।

van tangia

 

वनटांगिया मजदूर एक नज़र में 
- 05 गांव गोरखपुर में हैं वनटांगियों के 
- 23 वनटांगिया गांव महराजगंज में हैं 
- 4573 वनटांगिया परिवार रहते हैं इन गांवों में 
- 05 गांव गोरखपुर के राजस्व ग्राम में होने वाले हैं तब्दील 
- 635 एकड़ जमीन है इन गांवों में, 654 परिवारों के नाम होगी

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