UP: गोरखनाथ का ऐसा खप्पर, जो लाखों टन खिचड़ी से भी नहीं भरा
हाल में खिचड़ी को राष्ट्रीय व्यंजन घोषित करने की चर्चा चली तो इंटरनेट पर इसे बनाने की विधियां जमकर सर्च...
त्रेता युग से है यहां खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा
हाल में खिचड़ी को राष्ट्रीय व्यंजन घोषित करने की चर्चा चली तो इंटरनेट पर इसे बनाने की विधियां जमकर सर्च की जाने लगीं। लेकिन खिचड़ी को लेकर देश की सबसे बड़ी कहानी गोरखपुर के प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर और शिवावतारी गुरु गोरक्षनाथ से जुड़ी है।
- -15 जनवरी को मकर संक्रांति पर गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने जुटेगी भारी भीड़
- -त्रेता युग से है यहां खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा
- -खिचड़ी को नेशनल डिश बनाने की चर्चाओं के बीच गोरखनाथ मंदिर में उमड़ेगा आस्था का सैलाब
मान्यता है कि त्रेता युग में हिमांचल के कांगड़ा स्थित ज्वाला देवी मंदिर से भ्रमण करते यहां आए गुरु गोरक्षनाथ का चमत्कारी खप्पर लाखों टन खिचड़ी चढ़ाने पर भी नहीं भरा। सदियों से चली आ रही इस परम्परा में शामिल होने के लिए गोरखपुर में श्रद्धालुओं का तांता लगने लगा है। 15 जनवरी को मकर संक्रांति के मौके पर बड़ी तादाद में देश-विदेश के लोग गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाएंगे।
कांगड़ा में आज भी हो रहा इंतजार
गुरु गोरक्षनाथ का खप्पर भरने और उनके लौटने का इंतजार हिमांचल के कांगड़ा में आज भी हो रहा है। ज्वाला देवी स्थान पर आज भी अदहन खौल रहा है। दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक त्रेता युग में गुरु गोरक्षनाथ भ्रमण करते हुए कांगड़ा के ज्वाला देवी स्थान पर पहुंचे थे। माता ज्वाला ने उनका स्वागत किया और भोजन का आमंत्रण दिया लेकिन देवी स्थान पर वामाचार विधि से पूजन-अर्चन होता था। वहां मद्य और मांस युक्त तामसी भोजन पकता था जिसे गुरु गोरक्षनाथ ग्रहण नहीं करना चाहते थे। माता ज्वाला के आमंत्रण को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि वह खिचड़ी ही खाते हैं वह भी भिक्षा मांग कर।
अगली स्लाइड में पढ़ें -ऐसे शुरू हुई खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा
ऐसे शुरू हुई खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा
इन बातों को सुनकर ज्वाला देवी ने खुद भी खिचड़ी खाने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने गुरु गोरखनाथ को भिक्षा मांगकर लाने भेज दिया और खुद अदहन गरम करने लगीं। इधर, गुरु गोरखनाथ भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर तक आ पहुंचे। पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि तब यहां चारों तरफ जंगल और बेहद रमणीक दृश्य थे। गुरु गोरखनाथ यहीं एक स्थान पर ध्यान लगाकर बैठ गए। वहीं बगल में उनका खप्पर रखा था। ध्यान में लीन तपस्वी को देख लोग उनके खप्पर में खिचड़ी चढ़ाने लगे। लेकिन चाहे जितनी खिचड़ी चढ़ती वह खप्पर भरता न था। मान्यता है कि आज तक वह खप्पर नहीं भरा। कांगड़ा में ज्वाला माता का अदहन आज भी खौल रहा है। गुरु गोरक्षनाथ के तपबल, हठयोग और चमत्कारों की ख्याति देश-विदेश में है। हर साल मकर संक्रांति पर दूर-दूर से लोग यहां खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। इस मौके से शुरू होकर मंदिर परिसर में एक महीने तक मेला चलता है।
नेपाल राजवंश की जरूर चढ़ती है खिचड़ी
गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के दिन हर साल नेपाल राजवंश की खिचड़ी जरूर चढ़ती है। यह परम्परा राजवंश के संस्थापक पृथ्वीनारायण शाह देव के समय से चली आ रही है। उन्होंने 46 छोटी-छोटी रियासतों को संगठित कर नेपाल की स्थापना की थी। नेपाल की करेंसी और राजवंश के मुकुट पर गुरु गोरखनाथ की चरण पादुका और उनका नाम अंकित है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी चढ़ाए जाने के बाद मंदिर की ओर से रोट का प्रसाद नेपाल राजमहल भेजा जाता है।
ऐसे प्रकट हुए थे गुरु गोरखनाथ
गुरु गोरखनाथ के जन्म की कहानी भी किसी चमत्कार से कम नहीं। उन्हें आदिनाथ भगवान शिव का अवतार माना जाता है। उनके गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की उत्पत्ति मछली के पेट से हुई थी। मान्यता है कि मत्स्येन्द्रनाथ भिक्षाटन करते हुए सरस्वती नाम की एक माता के दरवाजे पर पहुंचे। माता को दु:खी देख मत्स्येन्द्रनाथ ने कारण पूछा तो उन्होंने कोई संतान न होने की वजह बताई। इस पर मत्स्येन्द्रनाथ ने उन्हें भभूत का प्रसाद दिया। कहा कि इसे ग्रहण कर लेना। 12 वर्ष बाद वह फिर उसी माता के दरवाजे पर गए और अपने भभूत के प्रसाद के फल के बारे में पूछा। माता ने उन्हें बताया कि पड़ोस की महिलाओं ने उन्हें शंका में डाल दिया था इसलिए उन्होंने भभूत झाड़ियों में फेंक दी। इस पर मत्स्येन्द्रनाथ नाराज हो गए। उन्होंने माता से वह स्थान दिखाने को कहा। माता के साथ उस स्थान पर पहुंचकर उन्होंने जोर से ‘अलख निरंजन’ का उद्घोष किया। तब वहां 12 वर्ष के बालक के रूप में गोरखनाथ प्रकट हुए जिन्हें मत्स्येन्द्रनाथ अपने साथ लेते गए।