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मिसाल: सहारनपुर की इन बेटियों ने बनवाए 1500 से ज्यादा टॉयलेट

टॉयलेट एक प्रेम कथा में एक शौचालय बनवाने के लिए खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय कुमार को कड़ा संघर्ष करते दिखाया गया है। लेकिन सहारनपुर की बेटियां तो पिछले दो साल से अपने प्रयासों से जिले के 11 ब्लॉकों में...

मिसाल: सहारनपुर की इन बेटियों ने बनवाए 1500 से ज्यादा टॉयलेट
निशांत कौशिक,उत्तर प्रदेशSun, 27 Aug 2017 12:22 PM
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टॉयलेट एक प्रेम कथा में एक शौचालय बनवाने के लिए खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय कुमार को कड़ा संघर्ष करते दिखाया गया है। लेकिन सहारनपुर की बेटियां तो पिछले दो साल से अपने प्रयासों से जिले के 11 ब्लॉकों में 1500 से अधिक शौचालयों का निर्माण करा चुकी हैं और उनका संघर्ष जारी है। उनका प्रयास है कि वे पूरे जिले को खुले में शौच से मुक्त करा सकें। उनकी यह पहल आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान के सम्मान समारोह के माध्यम से सभी के सामने आई।
 
हर घर में शौचालय बनवाना प्रदेश और केन्द्र सरकार का सपना है जिसके लिए अनेक सरकारी एजेंसियां काम कर रही हैं। लेकिन सहारनपुर में स्वच्छता सिपाहियों का एक ऐसा ग्रुप भी है जो बिना किसी सरकारी मदद के गांवों में शौचालय बनवाने का काम कर रहा है। इस ग्रुप को चला रही रश्मि टांक, रामेश्वर, संतोष, निर्भय जैन, सरोज आदि ने बताया कि उन्होंने सितंबर 2015 से गांवों में शौचालय बनवाने के लिए काम करना शुरू किया था। उस समय वह सिर्फ 11 लोग थे और अब 110 स्वच्छता सिपाही उनके साथ काम कर रहे हैं। 

जिले में अभी तक वह 1500 से अधिक शौचालयों का निर्माण करा चुके हैं और 45 गांवों को खुले में शौच से मुक्त करा चुके हैं। उनका प्रयास है कि वह पूरे जिले को खुले में शौच से मुक्त करा सकें। उन्होंने यह अभियान बिना किसी सरकारी मदद के शुरू किया था, लेकिन अब वह स्वच्छ भारत मिशन से जुड़ गए हैं।

जिला स्वच्छता समिति के सलाहकार देव भास्कर पांडे ने बताया कि जिले में एक लाख 90 हजार घर अभी भी ऐसे हैं, जहां शौचालयों का निर्माण किया जाना है। शासन ने जिला प्रशासन को जिम्मेदारी दी है कि 29 अक्टूबर 2018 तक जिले को हर हाल में खुले में शौच से मुक्त करना है। शहर के कमिश्नर दीपक अग्रवाल का कहना है कि इन लड़कियों के काम को सभी के सामने लाने के लिए हिन्दुस्तान का धन्यवाद। इन लड़कियों का काम पूरे प्रदेश में सबसे अलग है। वह इनके काम को शासन से भी सम्मानित कराने का प्रयास करेंगे।

राहत शिविरों की बजाय बहलखाना में पड़े रहे चलंत शौचालय
 

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