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अल्लाह की बारगाह में मुल्क की तरक्की को उठे लाखों हाथ

ईद की सुबह का नजारा मुबारक था। हर दिन से बदला-बदला था। ईदगाह में सजदे को जाते लाखों मुस्लिम। सफेद लिबास पहने अमन-ओ-अमान का संदेश। सफें बिछाकर अपने अल्लाह की इबादत में मशगूल नजर आए। क्या बच्चे और क्या...

अल्लाह की बारगाह में मुल्क की तरक्की को उठे लाखों हाथ
हिन्दुस्तान टीम,मुरादाबादMon, 26 Jun 2017 08:35 PM
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ईद की सुबह का नजारा मुबारक था। हर दिन से बदला-बदला था। ईदगाह में सजदे को जाते लाखों मुस्लिम। सफेद लिबास पहने अमन-ओ-अमान का संदेश। सफें बिछाकर अपने अल्लाह की इबादत में मशगूल नजर आए। क्या बच्चे और क्या बुजुर्ग। हर किसी में एक सी बेताबी। माह-ए-रमजान की कारगुजारी ईद की शक्ल में सबके सामने थी। मन में बेचैनी होना लाजिमी था। ईदगाह में 8 बजकर 30 मिनट से नमाज का ऐलान था। दूर-दराज से नमाजियों का सैलाब सुबह 7 बजे से ही ईदगाह का रुख करता नजर आया। हर किसी के मन में पहली सफ में जगह पाने की लालसा थी। 8 बजकर 25 मिनट तक ईदगाह और इसके आसपास का सारा इलाका नमाजियों से भरा नजर आने लगा। ईदगाह के बाहर दूर-दूर तक सफें बिछ गईं थीं। आलम ये हो गया कि सड़कों पर भी नमाजी सफें बिछाते नजर आए। फिजा में सफेद रंग घुल रहा था। हर हाथ इबादत में उठ रहा था। हर सिर सजदे में झुक रहा था। 8 बजकर 30 मिनट पर ईदगाह में नमाज शुरू की गई। अफसरों की रही मौजूदगी ईदगाह में ईद की नमाज के दौरान जिलाधिकारी राकेश कुमार सिंह के साथ ही एसएसपी मनोज तिवारी, एडीएम सिटी एके श्रीवास्तव, नगर-आयुक्त अवनीश कुमार शर्मा, एमएलसी डॉ. जयपाल सिंह व्यस्त के साथ ही सरदार गुरविंदर सिंह, पादरी पॉल सारस्वत आदि समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे। तपिश को मात देता उत्साह सूरज की तपिश भी नमाजियों के उत्साह को कम न कर सकी। सफें बिछाकर बैठने वाले हजारों नमाजी इबादत में मशगूल नजर आए। पूरी शिद्दत के साथ अल्लाह का नाम लेकर मुल्क की तरक्की की दुआ की। ईद की नमाज का उत्साह सूरज की तपिश को मात दे रहा थ। शहर इमाम सैयद मासूम अली आजाद ने दुआ कराई। नन्हे नमाजियों में रहा उत्साह नन्हे नमाजी अपने परिवार के बड़ों के साथ आए थे। सभी में ईद की खुशी साफ नजर आ रही थी। रंग-बिरंगे कुर्ते-पायजामा पर लखनवी अंदाज की टोपी लगाए ये नन्हे नमाजी भी हर किसी को ईद की मुबारकबाद देते नजर आए। पीले लिबास में खिदमतगार पीले लिबास में सिविल डिफेंस के स्वयंसेवक पूरी शिद्दत से नमाजियों की सेवा में लगे नजर आए। ईदगाह व आसपास के इलाकों में इन्होंने स्वयंसेवा की। सिविल डिफेंस के लोग नमाज शुरू होने से पहले ही अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद नजर आए। एडीएम सिटी एके श्रीवास्तव के निर्देश पर सभी स्वयंसेवक ईदगाह चौराहा, भूड़े का चौराहा, गलशहद, डबल फाटक आदि प्वाइंट पर तैनात किए गए थे। नवीन नारंग, अशोक गुप्ता आदि समेत बड़ी संख्या में स्वयंसेवक अपनी ड्यूटी करते नजर आए। हाजिरी को दिखा जज्बा ईद का त्योहार सुकून से भरा रहा। तीस दिन तक रोजा रखने के बाद हर नमााजी इबादत के साथ ही अल्लाह की बारगाह में हाजिदी दर्ज कराने को बेताब दिखा। रोजेदारों के ईदगाह में पहुंचने के बाद शहर इमाम सैयद मासूम अली आजाद ने अफवाहों से दूर रहकर मुल्क की तरक्की की बात कही। कौमी एकता की हिदायत का असर भी ईद पर खूब दिखा। अमन के जज्बे का मुजाहिरा राहें भले अलग थीं। मंजिल सबकी एक थी। राहों पर बढ़ते कदमों अनुशासन झलक रहा था। चारों ओर से ईदगाह को बढ़ते नमाजियों के कदम अमन के जज्बे का मुजाहिरा कर रहे थे। हर नमाजी में मुल्क के लिए प्यार और अपने सभी भाइयों के लिए दिलों में नफासत नजर आई। सबकी आंखों में इबादत का नूर नजर आया। फिजा में महका जन्नतुल फिरदौस नमाज के वक्त इत्र की महक रूह को पाकीजा करने में मददगार होती है। इत्र का खास महत्व होता है। इस तरह की मान्यता के चलते इत्र फरोश नमाज में इत्र की महक के साथ ही पहुंचे। जन्नतुल फिरदौस नमाजियों की रूह को महकाता नजर आया। इसके अलावा मुंबई का असील और हयाती भी नमाजी खूब लगाए नजर आए। लखनवी टोपी का खासा क्रेज रहा। मरहबा ए रोजेदारो मरहबा! इतनी शदीद गरमी में आप हुक्म-ए-खुदाबंदी बजा लाए और उसकी रजा के लिए अपनी तमाम ख्वाहिशात को खुदा की राह में कुर्बान कर दिया। अल्लाह आपको रहमतों से नवाजे। सभी मस्जिदों में इबादत ईदगाह की नमाज के साथ ही शहर की अन्य मस्जिदों में भी ईद की नमाज अदा की गई। हर कहीं समय अलग-अलग थे। मुख्य रूप से जामा मस्जिद, सुल्तान साहब की मस्जिद, किले वाली मस्जिद, शाही मस्जिद, मरकस वाली मस्जिद, हाफिज साहब वाली मस्जिद, मुकम्मल शाह वाली मस्जिद, पहलवान साहब वाली मस्जिद, बुलाकी साहब वाली मस्जिद, असालतपुरा बड़ी मस्जिद आदि समेत हर कहीं इबादत के सुर गूंजे। पूरे नियम के साथ नमाज अमन-चैन के साथ अदा की गई। आपसी सौहार्द पर आधारित खबरें धागों से बुनते रिश्तों में नजर आते ईश्वर-अल्लाह फोटो:=मोहम्मद इकराम अरसा बीत गया। रामचंद्र हों या फिर माता सीता। भगवान कृष्ण हों या फिर राधा। शिवजी की बात हो या फिर पार्वती। कोई ऐसे देवी-देवता नहीं जिन्हें अपने हाथ से सीकर कपड़े पहनाने का नसीब हासिल न हुआ हो। हमारे लिए तो रिश्तों धागों से बुनते रिश्तों में ईश्वर और अल्लाह का स्वरूप नजर आता है। इन्हीं रिश्तों की तासीर से हम ईद मनाते हैं। ये कहना है, मोहम्मद इकराम का। बजार गंज में पंजाब ट्रंक हाउस वाली गली में मोहम्मद इकराम भगवान के चोले सीने में मसरूफ नजर आते हैं। बातचीत करने पर कहते हैं कि माह-ए-रमजान की कारगुजारी का हासिल ही ईद है। यकीन कीजिए, पच्चीस साल से हमें इस बात का अहसास छू भर तक नहीं गया कि मजहब क्या है और हमारा काम क्या है। हमारा काम ही तो हमारा धर्म है। हर मजहब भी यही सिखाता है। आज इन्हीं धागों से बुने रिश्तों से घर चल रहा है। ईद मन रही है। इस दुनिया में इंसान केवल इंसान बनकर रहे, तो सारी कायनात मुस्कुराएगी। ईद यही संदेश देती है। ईद पर रह-रहकर याद आए शमशाद फोटो:=सिटी फोल्डर मुरादाबाद। शहर का चंद्रनगर इलाका। यहां पर अरसे पहले एक शख्स आया। 1992 की बात है। सिंह मंडप के पास अपना छोटा-सा खोखा सजाया और शुरू ही हेयर कटिंग सैलून की दुकान। इनको लोग शमशाद हुसैन के नाम से जानने लगे। आज भी नाई की दुकान ही चर्चा की जगह होती है। यहां फुर्सत में बैठकर हर शख्स इंसानियत की, राजनीति की और जीवन से जुड़ी तमाम बातें करता है। शमशाद हुसैन के संग भी यही हुआ। हर कोई बाल कटवाने आता। अपनी बात सुनाता और शमशाद की बात सुनता। ये सिलसिला कब भाईचारे में बदल गया, पता ही नहीं चला। सबके अपने शमशाद अब शमशाद सबके हो चले थे और हर कोई शमशाद का। अपरिहार्य कारणों से खोखा हटाने का फरमान आ निकला। इलाके में जैसे मायूसी छा गई। मदन लाल सामने आए। चंद्र्रनगर में ही जमीन दिलाई गई। यहीं हिन्दू बाहुल्य इलाके में शमशाद ने अब अपनी हेयर कटिंग सैलून की दुकान खोल ली। मदन लाल और शमशाद हुसैन के परिवार में ऐसा अपनापन हो गया कि शमशाद ने अपने बच्चों के बारे में कोई फैसला बिना मदन लाल के लेना ही छोड़ दिया। चार बच्चों के पिता जिनमें दो बेटी और दो बेटे हैं। बेटियों की शादी कर चुके शमशाद के बेटे रजा और सलमान भी अब पैरों पर खड़े हैं। शमशाद ने बेटियों की शादी से लेकर बच्चों की तालीम तक हमेशा अपने बड़े भाई मदन लाल की सलाह जरूर ली। वैसा ही किया। हमारी होली-ईद में कोई फर्क नहीं हमारी होली हो या फिर शमशाद की ईद, हमने हमेशा साथ मनाई। मदन लाल कहते हैं कि अबकि ईद ऐसी आई कि शमशाद की गैर मौजूदगी से सिवईं की मिठास भी फींकी-सी लगी। दरअसल, 11 जून को शमशाद हुसैन का इंतकाल हो गया। पत्नी अनीसा बेगम अभी शोक में हैं। दुकान की खाली कुर्सियां और आईनों का अक्स शमशाद हुसैन को पुकारता नजर आता है। दुकान पर एक ताला लटका है जो खुलने के इंतजार में है। हर कोई बताता शमशाद का पता सामने की दुकान पर बैठे मोहन लाल हों या फिर इलाके का कोई भी हिन्दू, हर कोई शमशाद हुसैन के परिवार के सदस्यों के नाम से लेकर उनके बारे में सबकुछ बताने को आतुर नजर आता है। बाकायदा उनकी दुकान तक छोड़ता है। नीचे दुकान और ऊपर ही रिहायश है। शमशाद के दामाद डॉ नफीस अहमद कहते हैं कि शमशाद हुसैन की कमी के चलते इलाके का हर शख्स गमजदा है। यहीं रहने वाले अनिल ममगई कहते हैं कि शमशाद ने कम समय में हर किसी को अपना बना लिया था। कभी ऐसा अहसास तक नहीं हो सका कि वो मुस्लिम हैं। यही वजह रही कि उनके इंतकाल पर इलाके का हर शख्स गमजदा था।

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