कजली महोत्सव को लेकर अफसर हुए संजीदा
835 साल पुराने ऐतिहासिक व चन्देलकालीन कजली महोत्सव के आयोजन को लेकर डीएम समेत जिले के सभी अधिकारी अब संजीदा हो गए हैं। अफसरों की बैठकें भी होने लगी है। समाज सेवियों से सुझाव भी मांगे जा रहे हैं। आपस...
835 साल पुराने ऐतिहासिक व चन्देलकालीन कजली महोत्सव के आयोजन को लेकर डीएम समेत जिले के सभी अधिकारी अब संजीदा हो गए हैं। अफसरों की बैठकें भी होने लगी है। समाज सेवियों से सुझाव भी मांगे जा रहे हैं। आपस में राय शुमारी हो रही है। महोत्सव को अबकी बार भव्य रूप देने की योजना है। 11 फरवारी 1995 को महोबा को जिले का दर्जा हासिल हुआ था। इससे पहले महोबा हमीरपुर जिले में शामिल था। 835 साल पहले ऐतिहासिक कजली मेले की शुरूआत हुई तब से लगातार हर वर्ष मेले का आयोजन होता चला आ रहा है। रक्षा बंधन के दिन से इसकी शुरूआत होती है। महोबा शहर में रक्षा बंधन का पर्व एक दिन बाद मनाए जाने की पुरानी परम्परा है। क्योंकि उसी वीर आल्हा और वीर ऊदल की विजय मिली थी और युद्ध में दिल्ली के नरेश पृथ्वीराज चौहान को भागना पड़ा था। कजली महोत्सव में बाहर से आने वाले दुकानदारों को समिति द्वारा भूमि आवंटित की जाती है। जिससे कि उन्हें किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो। सरकारी तौर पर तो यह महोत्सव पांच दिन का होता है। जिसमें रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन रात में होता है। महोत्सव में लाखों की भीड़ जुटती है लेकिन कजली मेला एक सप्ताह तक चलता है। गोखारगिरि और हवेली दरवाजे पर भी एक-एक दिन और शेष कीरत सागर तट पर इसका आयोजन चलता है। समाज सेवी और आल्हा परिषद के अध्यक्ष शरद तिवारी उर्फ दाऊ तिवारी कीरत सागर तट पर बने आल्हा मंच में अलग से अपने कार्यक्रमों का आयोजन कराते है। कजली महोत्सव के पहले दिन पूरे शहर में भव्य व आलीशान झांकियां निकाली जाती है और कजरियों का विसर्जन कीतर सागर में होता है। मेले में शान्ति और सुरक्षा के लिए अस्थाई पुलिस चौकी भी बनाई जाती है जिसकी निगरानी स्वयं एसपी भी करते है। आयोजन को लेकर तैयारियां शुरू है।