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लक्ष्मण में धर्म के चारों चरण : रामभद्राचार्य

लखनऊ। निज संवाददाता लक्ष्मण में धर्म के चारों चरण तप, सत्य, दया व दान है। धर्म जहां होता है वहां राम होते हैं। इसी लिए जहां लक्ष्मण वहां राम व जहां राम वहां लक्ष्मण होते हैं। यह बात बात श्रीरामकथा...

लक्ष्मण में धर्म के चारों चरण : रामभद्राचार्य
हिन्दुस्तान टीम,लखनऊSun, 18 Jun 2017 09:26 PM
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लखनऊ। निज संवाददाता लक्ष्मण में धर्म के चारों चरण तप, सत्य, दया व दान है। धर्म जहां होता है वहां राम होते हैं। इसी लिए जहां लक्ष्मण वहां राम व जहां राम वहां लक्ष्मण होते हैं। यह बात बात श्रीरामकथा आयोजन समिति की ओर से वरदान खण्ड गोमतीनगर में आयोजित रामकथा के पांचवे दिन स्वामी रामभद्राचार्य ने कही। उन्होंने राम-सीता के विवाह का प्रसंग सुनाते हुए देखो देखो आज दूल्हा चितचोर सखियां, इन्हें देख मनवा है विभोर सखियां गाया तो सभी भक्त झूम उठे। स्वामी रामभर्दार्चा ने कहा कि मनु स्मृति में धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं। रामचरित मानस में लक्ष्मण-परशुराम राम संवाद का चित्रण दस दोहे में किया गया है। एक-एक दोहे में लक्ष्मण में धर्म के एक-एक लक्षण का वर्णन किया गया है। परशुराम ने जब पूछा कि यह धनुष किसने तोड़ा है तो लक्ष्मण ने व्यंग करते हुए कहा कि एहि धनु पर ममता केहि हेतू। लक्ष्मण के वचन को सुनकर परशुराम ने जब फरसा से लक्ष्मण का सिर काट गु डिग्री ऋण को चुकाने की बात कही तो लक्ष्मण ने फिर व्यंग करते हुए कहा कि माता-पिता के ऋण से उऋण हो चुके। गु डिग्री का ऋण किसी दूसरे का सिर काटकर नहीं बल्कि अपना सिर चरणों में काटकर रखने से अर्थात अपना अभिमान त्यागने से होता है। अर्थ की क्रिया सेवा, काम की क्रिया तपस्या, धर्म की क्रिया श्रद्धा व मोक्ष की क्रिया भक्ति है। सीता भक्ति, माण्डवी तपस्या, उर्मिला मोक्ष व श्रुतिकीर्ति सेवा की प्रतीक हैं। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि जब भक्त का मन ईश्वर में रम जाता है तो उसको सोने में ईश्वर के सपने आते हैं, जिसको तुल्या अवस्था कहते हैं। आजकल लोग डाक्टर व इंजीनियर बनने को विद्या मानते हैं लेकिन वेद कहा गया है कि आत्म तत्व का चिन्तन व अध्यन्न ही विद्या है। सही विद्या आध्यात्म है जो मनुष्य को ईश्वर तक पहुंचाती है। विश्वामित्र धर्म के साथ मोक्ष जाने के लिए राम व लक्ष्मण का साथ ले गये। मोक्ष तो रावण को भी मिला लेकिन धर्म के साथ नहीं। विश्वामित्र ने ताड़का का वध होने के बाद श्रीराम को सारी विधाएं दी क्योंकि अविद्या का नाश होने के बाद भी विद्या आती है। ताड़का अविद्या का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति को एक साथ कहीं देखना हो तो रामचरित मानस को देखा जाना चाहिए। स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा कि "लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार, गु डिग्री वशिष्ट तेहि राखा लक्ष्मण नाम उदार।" तुलदीदास ने इस दोहे से बता दिया कि उदार व्यक्ति की राम को प्रिय हो सकता है। राम को पाने के लिए अहम को त्यागना होगा। राम को पाने के लिए अमीर-गरीब की खाई को पाटना होगा। मनकामेश्वर की महंता दिव्यागिरी सहित काफी संख्या में भक्त मौजूद थे। --------------------------------------------- सबसे बड़ा धन है गाय लखनऊ। निज संवाददाता माधव मन्दिर डालीगंज में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन रविवार को लालता प्रसाद शास्त्री ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण गोपाल बनकर गायों का यह महत्व बढाते है कि परमात्मा द्वारा मनुष्य को दिया हुआ गाय दिव्य रत्न है । उन्होंने कहा कि विज्ञान भी यह सिद्धि करता है कि गो दुग्य में समस्त रोगो के समन की शक्ति है, गोदुग्ध सेवन करने वाले को कोई रोग नही हो सकता नन्द बाबा के घर नौ लाख गाये है जो सबसे बडा धन है आचार्य द्वारा माखन चोरी लीला के दौरान श्री राधे गोविन्दा मन भजले हरि का नाम है....... राधे- राधे जपो चले आएगे बिहारी...... राधा का नाम अनमोल बोलो राधे राधे.....गाकर भक्तो आनन्दमय कर दिया। ------------------------------- ईश्वर दर्शन ही मनुष्य का उदे्श्य लखनऊ । ईश्वर को प्राप्त करने के लिये मन में व हृदय में प्रभु प्राप्ति की व्याकुलता होनी चाहिए। यह बात रामकृष्ण मठ, निरालानगर में रविवार को आयोजित प्रवचन में स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि भगवान को प्राप्त करने के लिए तड़प होनी चाहिए। वह तड़प व व्याकुलता न तो कर्म करने से और न ही ज्ञान होने से आयेगी। बल्कि भगवत भजन और संतों की कृपा से आयेगी। उन्होंने कहा कि संतों की जब कृपा मिलती है तो असम्भव काम भी सम्भव हो जाते है। स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज ने कहा कि ईश्वर दर्शन ही मनुष्य का उद्ेश्य है। हम संतो के पास इसी लिये जाते हैं कि भगवान के दर्शन हो जाये। उन्होंने कहा कि भगवान के दर्शन के लिये सभी कर्म, तप, साधना कर रहे है। भूल कहा हो रही है भूल हो रही है मन में व्याकुलता न होना। यदि हमारे मन के भीतर व्याकुलता है सच्ची प्रार्थना, पुकार कर रहे हैं तो ईश्वर अवश्य दर्शन देंगे। अंत में स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज ने प्रभु के ‘हरिओम राम कृष्णा‘ नाम का संकीर्तन कराते हुये प्रवचन समाप्त किया।

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