VIDEO: बहराइच के बौंडी में घाघरा की लहर लील रही गृहस्थी
घाघरा का जलस्तर घटने से बौंडी इलाके में कटान और तेज हो गई है। कटान करती नदी तेजी से गांव की ओर बढ़ रही है। शनिवार को दो मकान व 10 बीघे खेत को घाघरा की लहरों ने निगल लिया। लोग गृहस्थी का सामान लेकर...
घाघरा का जलस्तर घटने से बौंडी इलाके में कटान और तेज हो गई है। कटान करती नदी तेजी से गांव की ओर बढ़ रही है। शनिवार को दो मकान व 10 बीघे खेत को घाघरा की लहरों ने निगल लिया। लोग गृहस्थी का सामान लेकर गांव से पलायन कर रहे हैं। अभी भी यहां के तीन गांवों में बाढ़ का पानी भरा हुआ है। शाम पांच बजे घाघरा खतरे के निशान से 53 सेमी नीचे बह रही थी।
महसी तहसील क्षेत्र के बौंडी इलाके में घाघरा का जलस्तर लगातार घट रहा है। जिससे कटान और तेज हो गई है। गोलागंज, जर्मापुर, कायमपुर, चुरईपुरवा व पचदेवरी में लहरों का तांडव जारी है। इन गांवों के 10 बीघे खेत तथा गोलागंज निवासी प्रकाश व मन्नू के घरों को घाघरा की लहरों ने निगल लिया। शनिवार को शाम पांच बजे घूरदेवी स्पर पर घाघरा का जलस्तर खतरे के निशान से 112.150 मीटर के सापेक्ष 111.620 मीटर रिकार्ड किया गया। अभी भी यहां के नगेसरपुरवा, कायमपुर व जर्मापुर में बाढ़ का पानी भरा हुआ है।
600 घरों पर मंडरा रहा खतरा
बहराइच के चुरईपुरवा निवासी पूर्व प्रधान तेज नारायण सिंह ने लाखों रुपए खर्च कर मकान बनवाया था। यह मकान घाघरा की कटान के मुहाने पर पहुंच गया है। घाघरा की लहरें इस मकान की नींव तक हिलोरें ले रही हैं। पूर्व प्रधान ने बताया कि पिछले साल सिंचाई विभाग ने यहां पर क्यूपाइन की व्यवस्था की थी, जिससे उनका घर व गांव बच गया था। इस बार विभाग की ओर से कोई पहल नहीं की गई है। यदि कटान इसी रफ्तार से चलती रही तो गांव के 6 सौ मकान घाघरा की लहरों में समा जाएंगे।
भारी मन से अपना आशियाना उजाड़ रहे कटान पीडि़त
कई वर्षों की कड़ी मेहनत व पसीने की कमाई से जिन लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपना आशियाना बनवाया था, वे कटान के भय से अपने हाथों खुद के आशियानों को उजाड़ रहे हैं। गोलागंज व कायमपुर में अब तक आधा दर्जन से अधिक आशियाने घाघरा की भेंट चढ़ चुके हैं। जिनके आशियाने घाघरा में समा रहे हैं, उन्हें कोई सुरक्षित स्थान ढूंढे नहीं मिल रहा है। प्रशासन की ओर से इन्हें बसाने के लिए अभी तक कोई स्थान चिह्नित नहीं किया गया है। ये कटान पीड़ित सड़क के तटबंधों पर अपना बसेरा बना रहे हैं। दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद बनाए गए छप्पर व खड़ी की गई दीवार को घरों के बूढ़े व बच्चे उजाड़ कर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में जुटे हुए हैं। अपने घरों पर हथौड़े चलाते हुए उनकी आंखें भर आती हैं।