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शौर्य दिवस: भयानक था वह मंजर... शरीर के पार होते थे बम के स्प्लिंटर

करगिल युद्ध में पूर्वांचल के जांबाज सैनिकों ने अहम भूमिका निभाई। उनमें से एक हैं बीआरडी मेडिकल कालेज के रेडियोथेरेपी विभाग के विभागाध्यक्ष मेजर डॉ. एमक्यू बेग। उन दिनों डॉ. बेग सेना की तीन पंजाब...

शौर्य दिवस: भयानक था वह मंजर... शरीर के पार होते थे बम के स्प्लिंटर
मनीष मिश्र, गोरखपुरThu, 27 Jul 2017 11:30 PM
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करगिल युद्ध में पूर्वांचल के जांबाज सैनिकों ने अहम भूमिका निभाई। उनमें से एक हैं बीआरडी मेडिकल कालेज के रेडियोथेरेपी विभाग के विभागाध्यक्ष मेजर डॉ. एमक्यू बेग। उन दिनों डॉ. बेग सेना की तीन पंजाब यूनिट में बतौर रेजीडेंट मेडिकल ऑफिसर के तौर पर तैनात थे। यह यूनिट बटालिक की 15 हजार फीट उंची पहाड़ियों पर मोर्चा संभाले हुए थी।  

करगिल विजय दिवस
कारगिल युद्ध के दौरान बटालिक में तैनात थे मेजर डॉ. एमक्यू बेग
तीन पंजाब यूनिट में रेजीडेंट मेडिकल ऑफिसर पद पर हुई थी तैनात
बटालिक की पहाड़ियों पर तैनात थी यूनिट

डॉ. बेग ने बताया कि उनकी उसी वर्ष शादी हुई थी। 12 दिन की छुट्टी लेकर घर आया था। टेलीग्राम से सूचना मिली कि 'छुट्टी रद्द वापस आओ'। वहां पहुंचा तो यूनिट में तनाव का माहौल मिला। अगले दिन से ही सामने की पहाड़ियों से भारी मशीनगनों से फायरिंग शुरू हो गई। हम लोग सुरक्षा के लिए बने नालों में छिप गए। पहाड़ की चोटी पर बनाए गए अस्थायी घरों की दीवारों को मशीनगन की गोलियां सुराख बना रही थी। एक कमरे में मेरा समान भी रखा था। उसमें एक बैग में शादी में सिलाए गए कई कपड़ों रखे थे। फायरिंग की जद में आने के बाद तो  कपड़ों में गोलियों के सुराख बने गए। 
जवानों की जान ले रहे रहे थे बमों के स्प्लिंटर
बटालिक में पहाड़ की कई चोटियां हैं। पाकिस्तान के सैनिक ऊंची चोटियों पर थे और भारतीय सैनिक नीचे की चोटियों पर। इसके कारण पाकिस्तानी मशीनगन के साथ ही ग्रेनेड से गोलीबारी कर रहे थे। बम धमाके के दौरान निकलने वाले छर्रे(स्प्लिंटर) सैनिकों को ज्यादा घायल करते। लड़ाई के दौरान चार डॉक्टरों पर सैनिकों के इलाज का जिम्मा रहा। बमों के छर्रे से रोजाना दर्जनों सैनिक घायल होते। सुरक्षा के लिए बने छोटे नालों में घायल सैनिकों को लिटाकर इलाज किया जाता था। गंभीर घायलों को हेलीकाप्टर की मदद से बेस कैंप भेजा जाता। कुछ दिन बाद वहां बिहार और गढ़वाल रेजीमेंट भी पहुंच गई। उनके सैनिकों का भी इलाज करते रहे। 
कमांडिंग ऑफिसर के नाम पर पड़ा ऑपरेशन विजय
बकौल मेजर डॉ. बेग करगिल की लड़ाई शुरू होने से करीब छह महीने पहले ही पंजाब यूनिट बटालिक में तैनात हुई। यूनिट निचली उंचाई की चोटी पर तैनात थी। यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल विजय बख्शी थे। कर्नल को चरवाहे से सूचना मिली कि पास की उंची चोटी पर काले लिबास में कुछ लोग भारी हथियारों से लैस होकर घूम रहे हैं। कर्नल ने सूचना की तस्दीक के लिए लखनऊ के रहने वाले लेफ्टिनेंट गौड़ की अगुआई में 15 सैनिकों की टीम को भेजा।

इस एडवांस टीम पर चोटी से फायरिंग हुई। जिसके बाद सेना को चोटी पर आतंकियों के होने का संदेह हुआ। कर्नल ने यूनिट के ब्रिगेडियर सुरेन्द्र सिंह को पूरी जानकारी दी। ब्रिगेडियर ने आतंकियों के खात्में के लिए कर्नल के नाम पर ही इसका नाम ऑपरेशन विजय रखा। ऑपरेशन की शुरूआत में सैनिक जिसे आतंकी समझ रहे थे बाद में वह पाकिस्तानी सैनिक निकले। 

 
 

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