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देश को कोई राजनीतिक दल उदारता के रास्ते से भटका नहीं सकता

उप्र विधानपरिषद के नामित सदस्य और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त  शायर जाहिद हसन वसीम बरेलवी ने कहा कि हमारा देश इसलिये विश्व गुरु कहलाता है क्योंकि हमारे पास पांच हजार साल पुरानी आपसी भाईचारे की...

देश को कोई राजनीतिक दल उदारता के रास्ते से भटका नहीं सकता
राजीव दत्त पाण्डेय,गोरखपुरSun, 22 Oct 2017 09:53 AM
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उप्र विधानपरिषद के नामित सदस्य और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त  शायर जाहिद हसन वसीम बरेलवी ने कहा कि हमारा देश इसलिये विश्व गुरु कहलाता है क्योंकि हमारे पास पांच हजार साल पुरानी आपसी भाईचारे की संस्कृति है। सहनशीलता है। हमारी एक विचारधारा है।  इतनी भाषाओं, मजहब, अलग-अलग संस्कृति के बावजूद हम एक थे, एक हैं और हमेशा एक रहेंगे। हिन्दुस्तान की राजनीति देश को उदारता के रास्ते से भटका नहीं सकती।
बोले उप्र विधानपरिषद के नामित सदस्य जाहिद हसन वसीम बरेलवी 

शनिवार को गोरखपुर में कुटुम्ब साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के कार्यक्रम शामिल होने आए वसीम बरेलवी ने हिन्दुस्तान के साथ बातचीत में देश समाज और राजनीति से जुड़े अपने विचारों और उसे रेखांकित करने वाले शेरों को साझा किया । इस क्रम में उन्होंने अपना शेर कुछ यूं पढ़ा।‘कल एक गांव की बुढ़िया मेरी कार से टकराई, बोली तोहरा दोष नाही, हमीं को दिखत नाही।’ वसीम कहते हैं कि यह बड़प्पन अपने मुल्क को छोड़ दुनिया में किसी के पास नहीं है। 


पश्चिमी संस्कृति के परिवारों पर पड़ते प्रभाव की चर्चा करते हुए वे कहते हैं कि सभी को एक दूसरे का ध्यान रखना होगा। अपनी गजल से वे इसे कुछ यूं समझाते हैं,‘उसूलों पर जहां आंच आए टकराना ज़रूरी है, जो जिन्दा हों तो फ़िर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है, नयी उम्रों की खुद-मुख्तारियों को कौन समझाए, कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है।’ वे कहते हैं कि शाम को जब बच्चे-ड्यूटी से परिवार के सदस्य लौटे तो घर की महिलाओं को उन्हें संभालना चाहिए। कहते हैं,‘ थके हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटे, सलीकामंद शाखों का लचक जाना ज़रूरी है।’ 


परिवारिक-सामाजिक एकता के लिए आपसी समझ जरूरी
वसीम बरेलवी कहते हैं कि घर का पतन उसी दिन शुरू होता है जिस दिन परिवार का कोई सदस्य  खुद को मुख्तार समझने लगता है। इसे अपने शेर में कुछ यूं बयां किया ,‘उसी को तोड़ रहा है जिसे बनाना है/ वो जानता ही नहीं कैसे घर चलाना है। वे कहते हैं कि ये बातें घर ही नहीं देश और समाज के लिए भी लागू होती हैं। इसी कड़ी में उन्होंने एक और नज्म पढ़ी। ‘अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएं कैसे, तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आएं कैसे। घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है, पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएं कैसे।’ वो कहते हैं कि घर, समाज हो या देश उसे  बचाने के लिए आपसी समझदारी-करुणा के साथ बड़प्पन जरूरी है।

समाज पहली प्राथमिकता
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उनके लिए पहली प्राथमिकता समाज है। समाज को चलाने वाली सरकारें तो आती जाती रहती हैं लेकिन समाज को जिंदा रखने के लिए हिन्दुस्तान की सदियों पुरानी विचारधारा में यकीन रखने वाली ताकतों को मजबूत बनाना होगा। उन्होंने कहा कि हमारा मुल्क अगर इतना सहनशील नहीं होता तो इतनी भिन्न-भिन्न सस्कृतियां एक साथ समाहित न हो पातीं।

और गोरखपुर के रास्ते में लिख डाली ताजमहल पर ताजा नज्म
इन दिनों लोगों को विवादों से चर्चा में आए ताजमहल पर प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी ने त्वरित नज्म लिख डाली। गोरखपुर के लिए ट्रेन पकड़ने निकले तो रास्ते में उन्होंने नज्म लिखी। उन्होंने इसमें ताजमहल की न केवल पीड़ा व्यक्त की बल्कि सवाल भी खड़ा किया। गोरखपुर पहुंचे वसीम बरेलवी ने ‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत के दौरान ताजमहल का तसव्वुर करते हुए अपनी नज्म पढ़ी...प्यार की बात जहां आई दिखाया मुझको, चाहतों का बड़ा सरताज बताया मुझको, कौन दुनिया से देखने नहीं आया मुझको। भारतीय होने का एहसास मेरे काम आया, विश्व के सात अजूबों में मेरा नाम आया। बैठे-बैठे ये हुआ क्या कि रुलाते हो मुझे, अपने ही देश में परदेश दिखाते हो मुझे। मुझको नजरों से गिराते हो तुम्हें क्या मालूम, अपने ही कद को घटाते हो तुम्हें क्या मालूम। गैर आंखों ने तो पलकों पर बिठाया मुझको, कैसे अपना हो के कहते हो पराया मुझको। प्यार की बात जहां आई दिखाया मुझको।।, इस दौरान इस विवाद पर उनका दुख स्पष्ट दिखाई दे रहा था। 
 

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