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रुहेलखंड विवि का कुलगीत तैयार, दीक्षांत समारोह में गाया जाएगा

पहली बार रुहेलखंड यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में कुलगीत गाया जाएगा। विश्वविद्यालय ने दो महीने की कसरत के बाद विश्वविद्यालय का कुलगीत तैयार कर लिया है। कुलगीत में पांचाल संस्कृति और सभ्यता को...

रुहेलखंड विवि का कुलगीत तैयार, दीक्षांत समारोह में गाया जाएगा
हिन्दुस्तान टीम,बरेलीSun, 24 Sep 2017 08:08 PM
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पहली बार रुहेलखंड यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में कुलगीत गाया जाएगा। विश्वविद्यालय ने दो महीने की कसरत के बाद विश्वविद्यालय का कुलगीत तैयार कर लिया है। कुलगीत में पांचाल संस्कृति और सभ्यता को स्थान दिया गया है। पार्श्वनाथ से लेकर अहिच्छत्र तक और पार्श्वनाथ की तपस्थली को भी कुलगीत में जगह दी गई है। यह कुलगीत छह अक्तूबर को होने वाले दीक्षांत समारोह में राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष के सामने गाया जाएगा। रुहेलखंड विश्वविद्यालय के 40 वर्ष पुराने इतिहास में कुलगीत तैयार करने की कवायद 2013 में शुरू हुई थी। हालांकि तब यह कागजों पर ही फंसी रही। चार साल बाद 2017 में एक बार फिर कुलगीत की याद आई। कुलपति प्रो. अनिल शुक्ला ने बाकयदा कमेटी बनाकर लोगों से कुलगीत आमंत्रित किए। कमेटी ने करीब 100 प्रविष्ठियों में से बरेली के प्रशांत अग्रवाल के लिखे कुलगीत को विवि के गौरव के हिसाब से सही पाया। कमेटी की संस्तुति के बाद कुलपति ने भी इसपर मुहर लगा दी। साथ ही इसको संगीत और लयबद्ध करने का काम विश्वविद्यालय शिक्षा विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संतोष अरोड़ा को दिया गया। उधर दूसरी ओर दीक्षांत समारोह में दी जाने वाली वार्षिक रिपोर्ट में भी कुलगीत को शामिल किया जा रहा है। चार मिनट और 23 सेकेंड का है यह कुलगीत प्रशांत अग्रवाल के लिखे कुलगीत को संगीत और लयबद्ध करने के बाद तैयार गीत 4 मिनट और 23 सेंकेंड का है। इसे 20 दिन के अंदर संगीत और लयबद्ध किया गया है। कुलगीत को गीत की शक्ल देने के लिए बीएड, एमएड और बीटेक की 7 ऐसी छात्राओं का चुनाव किया गया जो गाने में अच्छी थी। इसके बाद इसमें सात छात्राओं ने अपनी आवाज देकर कुलगीत को शानदार बना दिया। यह सात छात्राएं 6 अक्तूबर को दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित और राज्यपाल रामनाइक की मौजूदगी में पहली बार कुलगीत गाएंगी। कुलगीत गौरवशाली है अतीत, यह धरा बड़ी उर्वर पावन। शौर्य गाथाओं से सदा हुआ इसका सिंचन।। द्रुपद-सुता-सी श्रेष्ठ नारियों की जननी यह वसुंधरा। रणभेरी और शंखनाद में रची बसी है परंपरा।। पार्श्वनाथ की तपस्थली ये, अहिच्छत्र के वासी हम। उपनिषदों की सृजन भूमि ये, राजा जिसके थे ऋषि सम।। पांडव कुलगुरु आरुणी के गुरु धौम्य ऋषि की धरती ये। हम वासी पांचाल देश के, गर्व हमें इस मिट्टी पे।। विद्यापीठ बरेली नि:सृत सरस्वती की नवधारा। निर्मल मंगल ज्ञान से प्लावित कर देगी यह जग सारा।। विद्या जिसमें सत्य प्रेम हो, हम उसके ध्वजावाहक है। निश्छलता से पूरित हो उर, हम उसके आराधक हैं।। यही चेतना सारे जग में, कण कण में फैलाएंगे। करते दृढ संकल्प आज हम, अमृत बेला लाएंगे।। नहीं रुकेंगे नहीं थकेंगे, खुद को स्वयं जगाएंगे। चरैवेति चरैवेति हम आगे बढ़ते जाएंगे।। आगे बढ़ते जाएंगे हम आगे बढ़ते जाएंगे।

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