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चाय की चौपाल से परिवार तक 'तीन तलाक'

मुस्लिम पर्सनल लॉ, शरीयत व संवैधानिक प्रावधानों के बीच उलझे 'ट्रिपल' तलाक को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक करार दिये जाने के बाद इसे लेकर चर्चा तेज हो गयी है। खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में इसे...

चाय की चौपाल से परिवार तक 'तीन तलाक'
हिन्दुस्तान टीम,बलियाTue, 22 Aug 2017 11:39 PM
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मुस्लिम पर्सनल लॉ, शरीयत व संवैधानिक प्रावधानों के बीच उलझे 'ट्रिपल' तलाक को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक करार दिये जाने के बाद इसे लेकर चर्चा तेज हो गयी है। खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में इसे लेकर पूरे दिन बातचीत का दौर चलता रहा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर जहां आम लोगों में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिली वहीं मुस्लिम समुदाय की राय भी जुदा-जुदा नजर आयी। कोई सर्वोच्च अदालत के फैसले को सही ठहराता दिखा तो कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्हें ये फैसला नागवार लगा। किसी ने न्यायालय के फैसले को शरीयत कानून में अनावश्यक दखलंदाजी बतायी तो कोई वर्तमान सामाजिक ताने-बाने के परिपे्रक्ष्य में सही करार देता दिखा। मुस्लिम समुदाय में सालों से चला आ रहा तीन तलाक का मुद्दा हमेशा ही विवादों के घेरे में रहा है। मई में ट्रिपल तलाक पर सुनवायी पूरी करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश को सुरक्षित कर लिया था। इस बीच गाहे-बगाहे राजनीतिक दलों के बयान ने भी इस मसले को चर्चाओं में रखने का काम किया। केन्द्र सरकार भी इस मामले पर अपनी प्रतिक्रियाएं जाहिर कर चुका है। मंगलवार को पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने जैसे ही तीन तलाक को तीन-दो से खारिज करने का फैसला सुनाया, चाय की चौपालों से लेकर चौराहे तक फैसले को लेकर बहस छिड़ गयी। सर्वोच्च अदालत के फसले के बाद विभिन्न लोगों के बीच पहुंची 'हिन्दुस्तान' की टीम को भी अलग-अलग राय देखने व सुनने को मिली। कोई कुरान, हदीस और शरीयत के ईद-गिर्द घूमता रहा तो कोई प्रगतिशील समाज में महिला समानता का पक्ष लेता नजर आया। कोर्ट का फैसला संतुलित व सराहनीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला न सिर्फ संतुलित है बल्कि सराहनीय भी। कोर्ट ने राजनीतिक दलों के पाले में तीन तलाक का मुद्दा डालकर सबकी भावनाओं का कद्र किया है। इस सम्बंध में कानून बनाने से पहले पूर्व की व्यवस्थाओं पर भी गौर करना होगा। कुरान व हदीस में तीन तलाक की कोई व्यवस्था नहीं है। तीन तलाक को लेकर वर्तमान में प्रचलित तरीका इस्लाम के विरुद्ध है। महिला सुरक्षा का जहां तक सवाल है तो ऐसा नहीं लगता कि परम्परा और रुढ़ियों में जकड़ा हुआ समाज महिलाओं के प्रति नजरिया बदलेगा। फिर भी अदालत के फैसले से महिलाओं के उत्पीड़न पर रोक लगने की उम्मीद की जा सकती है। डॉ. एम एलियास तलाक में कोर्ट का हस्तक्षेप ठीक नहीं हिन्दुस्तान विविध संस्कृतियों का देश है। इसमें हर धर्म का न सिर्फ सम्मान सुरक्षित रखने की व्यवस्था की गयी है बल्कि धार्मिक परम्पराओं व मान्यताओं के अनुसार आचरण व व्यवहार की भी स्वतंत्रता है। तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का एहतराम करते हैं, लेकिन कोर्ट का इसमें हस्तक्षेप करना इस्लाम के विरुद्ध है। तीन तलाक बेशक गुनाह है लेकिन इस पर विचार करने का अधिकार मुस्लिम पर्सनल लॉ व शरियत से जुड़ा हुआ मुद्दा है। मुस्लिम समाज में महिलाओं की सुरक्षा पहले भी सर्वोपरी थी और आज भी है। अशरफ रजा (मौलाना, विशुनीपुर मस्जिद) मुस्लिम समाज में प्रचलित कानून का रखें ध्यान तीन तलाक के मुद्दे को बेवजह राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला हजारों सालों से चले आ रहे शरीयत कानून के खिलाफ है। बेशक कोर्ट ने तीन तलाक पर छह माह का रोक लगाते हुए संसद को कानून बनाने को कहा है लेकिन राजनीतिक दलों को इस सम्बंध में नई व्यवस्था कायम करने से पहले मुस्लिम समाज में सालों से प्रचलित कानून को भी ध्यान में रखना होगा। धार्मिक भावनाओं के आधार पर राजनीति करने में माहिर कुछ दल सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने पर आमादा है। एडवोकेट मुश्ताक अहमद महिलाओं की स्थिति में आयेगा सुधार तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सराहनीय है। समाज में तीन तलाक के नाम पर फैली विकृति को रोकने में कोर्ट का फैसला कारगर साबित होगा। आज के प्रगतिशील समाज में महिलाओं को लेकर फैली भ्रांतियां भी इस निर्णय से कम होंगी। तीन तलाक की व्यवस्था स्वयं द्वारा इजाद की गयी दुस्परम्परा थी, जिस पर कोर्ट ने चोट कर महिलाओं को जाहिली से छुटकारा प्रदान कर दिया है। अब महिलाओं को भी समाज में समानता का दर्जा मिल सकेगा। एडवोकेट कमरुद्दीन खां धार्मिक मान्यताओं में हस्तक्षेप ठीक नहीं सर्वोच्च न्यायालय का फैसला शरियत के खिलाफ है। इस्लाम संवैधानिक व्यवस्थाओं की कद्र करता है लेकिन धार्मिक मान्यताओं में किसी का हस्तक्षेप भी कूबूल नहीं करता। शरीयत के हिसाब से सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही नहीं माना जा सकता। यह एक प्रकार का धर्म में दखलनदाजी है। मुस्लिम समाज में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर प्रोपेगंडा फैलाया जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि इस्लाम औरतों की सूरक्षा को लेकर सदैव ही गंभीर रहा है। एडवोकेट आरिफ अहमद फैसला आईना दिखाने वाला सुप्रीम कोर्ट का फैसला रुढ़िवादी और परम्परावादी समाज को आईना दिखाने वाला है। समय के साथ धार्मिक व्यवस्थाओं में भी परिवर्तन होना चाहिए। तीन तलाक के मसले पर कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है। इससे समाज में महिलाओं का उत्पीड़न बढ़ा था। अब कोर्ट के फैसले के अनुरुप संसद को बीच का रास्ता निकालना चाहिए ताकि संविधान का भी पालन हो और धार्मिक मान्यता का भी मान मर्दन न हो। एडवोकेट सफदर अली महिलाओं की स्थिति में आयेगा बदलाव तीन तलाक के सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला काबिल-ए-तारिफ है। समाज में व्याप्त कुरीतियों को रोकने में मदद मिलेगी। इस्लाम में तीन तलाक का कहीं जिक्र नहीं मिलता है। समाज के तथाकथित लोगों ने इसको अधार बनाकर न सिर्फ महिलाओं का उत्पीड़न किया है बल्कि इससे मर्यादाओं को भी आघात पहुंचा है। समानता की बात करने वाले समाज को कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए। तलाक की व्यवस्था खत्म होने से महिलाओं की स्थिति में निश्चित ही बड़ा सकारात्मक बदलाव आयेगा। एडवोकेट फहीम अख्तर दूर होगी असुरक्षा की भावना सामाजिक संस्कारों में तीन तलाक की व्यवस्था कभी स्वीकार्य नहीं रही। न्यायालय को तीन तलाक का हथियार बनाकर महिलाओं पर अत्याचार करने वालों के खिलाफ भी सख्त कदम उठाना चाहिए। अन्यथा महिलाओं को इससे वास्तविक आजादी नहीं मिल सकेगी। सवार्ेच्च न्यायालय का फैसला स्वागत योग्य है। इससे परिवार व समाज में महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी तथा उनके मन से असुरक्षा का भाव भी काफी हद तक खत्म होगा।

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