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टैगोर जयंती : गुरुदेव के लिए साहित्य साधना का केंद्र बना इलाहाबाद

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर देश के उन श्रेष्ठ साहित्यकारों में शामिल रहे जिन्होंने विश्व स्तर पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। साहित्य और कला के सिद्धहस्त इस शख्सियत ने शब्दों और रागों में ऐसी बहुआयामी तान छेड़ी...

टैगोर जयंती : गुरुदेव के लिए साहित्य साधना का केंद्र बना इलाहाबाद
ईश्वर शरण शुक्ल,इलाहाबादSun, 07 May 2017 09:25 AM
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गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर देश के उन श्रेष्ठ साहित्यकारों में शामिल रहे जिन्होंने विश्व स्तर पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। साहित्य और कला के सिद्धहस्त इस शख्सियत ने शब्दों और रागों में ऐसी बहुआयामी तान छेड़ी कि उसकी झंकार पूरे विश्व में फैलती गई।

इलाहाबाद की साहित्यिक माटी का ही असर है कि गुरुदेव ने भी अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षण यहां बिताए। साथ ही यहीं पर उनकी कालजयी कृति 'गीतांजलि' समेत अधिकांश पुस्तकों का प्रकाशन हुआ और साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिलने का मार्ग तय हुआ।

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इंडियन प्रेस में छपी गीतांजलि
गुरुदेव की गीतांजलि समेत कई पुस्तकों के शब्दों को सजाने का कार्य इलाहाबाद में हुआ। 1909 से 1914 के बीच इंडियन प्रेस से गुरुदेव की 87 पुस्तकें प्रकाशित हुई। इसमें गीतांजलि का पहला संस्करण 1910 में प्रकाशित हुआ और जिस पर उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला। 

सुप्रीक घोष के अनुसार, टैगोर की कृतियों को इंडियन प्रेस में प्रकाशित किए जाने का अनुबंध पत्र (एग्रीमेंट) आज भी प्रेस में सुरक्षित रखा है। साहित्यकार अनुपम परिहार के मुताबिक, इंडियन प्रेस में टैगोर की पुस्तकों का प्रूफ संबंधी कार्य नयन भट्टाचार्य देखते थे। उन्हें टैगोर ने नियुक्त किया था।

इलाहाबाद से रहा है गहरा नाता
इविवि रसायन विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. महेश चंद्र चट्टोपाध्याय बताते हैं कि इलाहाबाद गुरुदेव की साहित्य साधना का केंद्र रहा। यहां वे पहली बार भतीजे सुरेन्द्र नाथ के साथ नवंबर 1900 में आए। सबसे पहले केपी कॉलेज के प्रधानाचार्य रामानंद चट्टोपाध्याय, एंग्लो बंगाली स्कूल के प्रधानाचार्य नेपाल राय और इंडियन प्रेस के संस्थापक चिंतामणि घोष से मिले। दूसरी बार 1909 में साहित्यकार नगेन्द्र गुप्ता के घर रुके। साथ ही जार्जटाउन स्थित बैरिस्टर प्यारे मोहन बनर्जी के घर पर रुककर कई रचनाएं लिखीं। 

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गुरुदेव की स्मृति में लगा शिलालेख गायब 
टैगोर की स्मृतियों से जुड़ा जार्जटाउन स्थित बैरिस्टर प्यारे मोहन का मकान अब खंडहर में तब्दील हो गया है। यहां तक कि गुरुदेव की स्मृति में लगा शिलालेख भी गायब हो गया। कई बीघे में फैले इस परिसर में कुछ वर्ष पहले टैगोर का स्मारक बनाने की मांग हुई थी लेकिन स्मृतियों को सहेजने का सार्थक प्रयास नहीं हुआ।

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