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मोह, माया और मोर्चा

तीसरी ताकत के तंबू का सपना कोई नया नहीं है। एक विचार के तौर पर यह स्थापना काफी आकर्षित भी करती है कि देश में एक ऐसा मंच बने जो उन सारी व्याधियों से मुक्त हो जिसके लिए कांग्रेस सकल जग में जानी जाती...

 मोह, माया और मोर्चा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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तीसरी ताकत के तंबू का सपना कोई नया नहीं है। एक विचार के तौर पर यह स्थापना काफी आकर्षित भी करती है कि देश में एक ऐसा मंच बने जो उन सारी व्याधियों से मुक्त हो जिसके लिए कांग्रेस सकल जग में जानी जाती है। साथ ही उसकी आभा में भाजपा की तरह संघ और सांप्रदायिकता की कोई छाया भी न दिखाई पड़े। कांग्रेस और भाजपा भारतीय राजनीति की दो ऐसी हकीकत हैं, जिनके आस-पास ही पिछले कुछ साल से भारतीय राजनीति का ध्रुवीकरण हुआ है। तीसरी ताकत की कल्पना इन दोनों से अलग एक सुहाना संसार रचने की है। जाहिर है कि इसके लिए जो क्षत्रप, महारथी, पीर, भिश्ती और बावर्ची आएंगे वे किसी स्वर्ग से नहीं उतरंगे। वे आखिर में इन दोनों ही ध्रुवों के आस-पास भटकती-अटकती ताकतों के होंगे, जो दिल्ली की सत्ता में अपनी हिस्सेदारी या अपने जुगाड़ तलाश रहे होंगे। ऐसे भी होंगे जो वक्त जरूरत किसी के साथ भी जा सकते हैं। बात इतनी ही होती तब भी आप इसके एक स्वरूप की आप कल्पना कर सकते थे। तीसरी मोर्चे के ताकतवर बनने की कल्पना की मूल सोच यही है कि जब चुनाव नतीजे आएंगे तो कांग्रेस और भाजपा इतने कमजोर हो चुके होंगे कि वे अपनी सरकार बनाने की बात सोच भी न सकें। ऐसे में जिसके पास भी मुट्ठी भर अनाज है, वह लालकिले पर झंडा फहराने वाला पंसारी बनने का सपना पाले बैठा है। इसलिए तीसर मोर्चे की गाड़ी में ईंधन डालने और हवा भरने वाले जितने लोग हैं, उतने ही इसे पंक्चर करने वाले भी हैं। यह सब तीसर मोर्चे को व्यंग्य का विषय ही बनाता आया है। इस सबके बावजूद तीसरा मोर्चा भारतीय राजनीति की एक ठोस हकीकत भी है। मोर्चा सरकारों के युग में यह हकीकत इसलिए भी बड़ी और महत्वपूर्ण हो गई है कि देश की चुनावी राजनीति भी बदल चुकी है। अब वह चुनाव पूर्व की राजनीति और चुनाव बाद की राजनीति में बंट गई है। चुनाव से पहले ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल करने के समीकरण बनाना और छोटे से क्षेत्रीय दल होने के बावजूद अपनी एक राष्ट्रीय हवा बनाना अब काफी अहम है। यह उस समय और जरूरी हो जाता है जब भाजपा और कांग्रेस के पक्ष में कोई हवा कहीं भी बहती न दिख रही हो। बाकी वामपंथी दल भले ही विचारधारा के तर्क से तीसर मोर्चे की वकालत कर रहे हों, लेकिन उन्हें भी पता है कि भाजपा और कांग्रेस के समर्थन के बिना तीसर मोर्चे की सरकार बनाना कतई मुमकिन नहीं है।

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