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राज्यों की लापरवाही से संकट में उद्योग

उद्योगों को निवेश के लिए अपने यहां आमंत्रण करते वक्त सिंगल विडों स्वीकृति के अलावा कई सब्जबाग दिखाने वाली राज्य सरकारों की लापरवाही तथा लेट लतीफी के कारण अब कई बड़े उद्योग संकट में फंस गये...

 राज्यों की लापरवाही से संकट में उद्योग
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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उद्योगों को निवेश के लिए अपने यहां आमंत्रण करते वक्त सिंगल विडों स्वीकृति के अलावा कई सब्जबाग दिखाने वाली राज्य सरकारों की लापरवाही तथा लेट लतीफी के कारण अब कई बड़े उद्योग संकट में फंस गये हैं। देश के विभिन्न राज्यों में मात्र 18 उद्योगों की स्थापना में हो रही देरी के कारण जहां 2,44,125.5 करोड़ रु. का निवेश रुक गया है, वहीं इन उद्योगों के समय पर शुरु न हो सकने के कारण 1 लाख 64 हाार लोगों का स्थाई तथा करीब 2 लाख 70 हाार के अप्रत्यक्ष रोजगार पर अड़ंगा लग गया है। ‘एसोचेम’ इको पल्स द्वारा जुटाये गये तथ्यों में उक्त जानकारी देते हुए कहा गया है कि इनमें से अधिकतर औद्योगिक परियोजनायें सरकारी लापरवाही से जमीन के अधिग्रहण में देरी तथा पर्यावरण व वन संबंधी क्लीयरंस न मिलने आदि कारणों से रुके पड़े हैं। एसोचेम के अध्यक्ष व उद्योगपति सज्जन जिन्दल ने बताया कि संगठन के ‘रिसर्च ब्यूरो’ ने अपने सव्रेक्षण में पाया कि रीयल इस्टेट, पावर, स्टील, ऑटो तथा धातु एवं खनन से जुड़ी 18 परियोजनाओं ने 2003-04 में राज्य सरकारों के साथ समझौता पत्रों पर हस्ताक्षर कर लिए थे पर वर्ष 2008 तक भी ये परियोजनायें कागजों में ही भटक रही हैं। इन कारगुजारियों में झारखंड, उत्तराखंड तथा पं बंगाल तथा उड़ीसा सबसे बदनाम हैं। झारखंड में आरसेलर-मित्तल स्टील, टाटा स्टील, एस्सार स्टील, जिंदल स्टील। उत्तराखंड में हीरो होंडा, महेंन्द्रा व अशोक लेलैंड तथा प. बंगाल में डीएलएफ, इंफोसिस तथा विप्रो जसी नामी कम्पनियों को इन समस्याओं से जुझना पड़ रहा है।

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