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आखिर क्यों डर जाती हैं महिलाएं  

हिसार के एक जाट परिवार में जन्मी कृष्णा नौ साल की थीं, जब उनकी मां चल बसीं। इसके बाद दादी और पापा ने उनकी देखरेख की। गांव में बेटियों को पढ़ाने-लिखाने का खास रिवाज नहीं था। हालांकि परिवार ने कभी...

आखिर क्यों डर जाती हैं महिलाएं  
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 07 Jan 2017 10:26 PM
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हिसार के एक जाट परिवार में जन्मी कृष्णा नौ साल की थीं, जब उनकी मां चल बसीं। इसके बाद दादी और पापा ने उनकी देखरेख की। गांव में बेटियों को पढ़ाने-लिखाने का खास रिवाज नहीं था। हालांकि परिवार ने कभी उन्हें पढ़ने से नहीं रोका। वह गांव के स्कूल में पढ़ने लगीं। 

स्कूल जाने से पहले घर के काम निपटाने पड़ते थे। दादी चाहती थीं कि बेटी घर के कामकाज में होशियार हो, ताकि ससुराल में दिक्कत न आए। गांव में पापा की दूध-डेयरी थी, जिसमें करीब 70 गाय-भैंसें थीं। कृष्णा बताती हैं, मैं सुबह चार बजे उठकर सबसे पहले भैंसों को चारा देती थी। परिवार के सभी लोग मिलकर यह काम करते थे। उसके बाद स्कूल जाती थी। 10वीं पास करते ही रिश्ते आने लगे।

गांववालों का सुझाव था कि बेटी बड़ी हो गई है, इसकी तुरंत शादी करवा दो। हालांकि पापा चाहते थे कि बेटी कम से 12वीं पास कर ले। शहर के इंटर कॉलेज में दाखिला करवा दिया। क्लास में वह सबसे लंबी थीं। लिहाजा खेल टीचर ने उन्हें रेस के लिए चुना। इसके बाद उन्हें डिस्कस थ्रो (चक्का फेंक) एथलीट के लिए अभ्यास कराया गया। कृष्णा बताती हैं, 12वीं क्लास में मेरे अच्छे अंक आए। खेल टीचर ने मुझे राष्ट्रीय स्तर की ट्र्रेंनग कैंप में भेजा। ट्र्रेंनग के बाद मेरा उत्साह बढ़ गया। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं खिलाड़ी बनूंगी।

इससे पहले कि खेल करियर शुरू हो पाता, परिवार ने उनका रिश्ता पक्का कर दिया। कृष्णा निराश हो गईं। लगा कि अब वह कभी नहीं खेल पाएंगी। वर्ष 2000 में राजस्थान के वीरेंद्र सिंह से शादी हो गई। दिलचस्प बात यह रही कि उनके पति खुद खिलाड़ी रह चुके थे। उनका परिवार खुले विचारों का था। शादी के बाद उन्होंने कृष्णा को पढ़ाई और खेल, दोनों जारी रखने को कहा। वीरेंद्र्र ंसह खुद कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके थे। लिहाजा वह पत्नी की प्रतिभा पहचान गए। उन्हें यकीन था कि कृष्णा को अच्छी ट्र्रेंनग मिले, तो वह रिकॉर्ड बना सकती हैं। शादी के अगले साल ही वह एक बेटे की मां बन गईं। जिम्मेदारियां बढ़ गईं। इसके बावजूद उन्होंने पढ़ाई और  खेल बंद नहीं किया। कृष्णा बताती हैं, मेरे ससुराल के लोग बहुत अच्छे हैं। पति ने बहुत सहयोग किया। ट्र्रेंनग के लिए कई बार मुझे शहर और देश से बाहर जाना पड़ा। इस दौरान पति और परिवार ने मेरे बेटे की देखरेख की।

अब वीरेंद्र सिंह उनके पति भी थे और कोच भी। इस बीच कृष्णा ने जयपुर के कनोडिया गल्र्स कॉलेज से सामाजिक विज्ञान में बीए किया। खेल ट्र्रेंनग जारी रही। वर्ष 2006 में दोहा एशियन गेम्स में हिस्सा लेने का मौका मिला। इसमें कांस्य पदक जीता। कृष्णा बताती हैं,  मैं रोजाना आठ घंटे अभ्यास करती थी। वीरेंद्र जी ही मेरे कोच थे। वह प्रैक्टिस और डाइट को लेकर काफी सख्त थे। मुझसे ज्यादा उन्हें यकीन था कि मैं एक दिन पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन करूंगी। वर्ष 2008 में र्बींजग ओलंपिक में हिस्सा लिया, पर निराशा हाथ लगी। मगर उन्होंने हार नहीं मानी। वह दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी में जुट गईं। 11 अक्तूबर, 2010 को उन्होंने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। कृष्णा ने 52 साल बाद देश को यह गौरव दिलाया। कृष्णा कहती हैं, कॉमनवेल्थ के लिए बहुत कड़ी मेहनत की। मैदान में गोल्ड मेडल के साथ तिरंगा फहराने का अनुभव अद्भुत था। इसी साल उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वर्ष 2011 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड दिया गया।

वर्ष 2013 में उन्होंने कांग्रेस में शामिल होकर राजनीतिक पारी शुरू की। इस बीच उन्होंने राजस्थान के गांवों में लोगों को बेटियों के प्रति जागरूक करने का अभियान शुरू किया। यहां उनकी छवि एक मददगार और साहसी महिला की है। पिछले सप्ताह का एक वाकया है। कृष्णा चुरू जिले के राजगढ़ इलाके में अपनी कार से कहीं जा रही थीं। उन्होंने रेलवे क्रासिंग के पास तीन लड़कियों को भागते हुए देखा। वे काफी सहमी-सी दिख रही थीं। उन्होंने तुरंत अपनी कार रोकी और लड़कियों से पूछा- क्या बात है? तुम लोग इतनी परेशान क्यों हो? तभी बाइक सवार तीन लड़के वहां से भागने लगे।

लड़कियों ने उन्हें बताया कि ये लड़के काफी देर से उन्हें परेशान कर रहे हैं। वह दिन का वक्त था। आसपास खड़े लोग काफी देर से लड़कों की हरकतें देख रहे थे। पर किन्हीं की हिम्मत नहीं थी कि वे उन्हें रोकें। लड़कियां डर से कांप रही थीं। कृष्णा को मामला समझने में देर नहीं लगी। उन्होंने लड़कों को ललकारा। दो लड़के तो रेलवे क्रासिंग पार कर भाग गए। पर तीसरे बाइक सवार मनचले को उन्होंने सड़क पर दौड़ाकर दबोच लिया। वहां खड़े लोग उनका साहस देखकर दंग रह गए।

कृष्णा कहती हैं, मैं अकेली महिला सड़क पर लड़कों के पीछे भाग रही थी। मौके पर मौजूद तमाम पुरुष यह सब देखते रहे। कम से कम महिलाओं को तो मेरा साथ देना चाहिए था। आज पूरे राजस्थान में इस घटना की चर्चा हो रही है। कृष्णा कहती हैं, लड़कियों को जागरूक होना पड़ेगा। हिम्मत दिखानी होगी। अगर औरतें एकजुट हो जाएं, तो किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वह बेटियों को परेशान कर सके। 
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी
 

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