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हर दुख का एक दिन अंत होता है

यूपी के एक छोटे से गांव की रहने वालीं रूपा ने होश संभालते ही अपनी मां को खो दिया। पिता ने दूसरी शादी कर ली। सौतेली मां को परिवार में उनकी मौजूदगी शुरू से रास नहीं आई। बात-बात पर वह भड़क जाती थीं।...

हर दुख का एक दिन अंत होता है
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 19 Mar 2017 12:24 AM
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यूपी के एक छोटे से गांव की रहने वालीं रूपा ने होश संभालते ही अपनी मां को खो दिया। पिता ने दूसरी शादी कर ली। सौतेली मां को परिवार में उनकी मौजूदगी शुरू से रास नहीं आई। बात-बात पर वह भड़क जाती थीं। अक्सर बेरहमी से उन्हें पीट देतीं। सबसे दुख की बात यह थी कि बेटी के संग ज्यादती देखकर भी पिता चुप रह जाते थे। नन्ही रूपा खौफ में जीने लगीं। हर समय डर लगा रहता कि मां को गुस्सा न आ जाए।

अब वह समझ चुकी थीं कि मां उन्हें पसंद नहीं करतीं। बात अगस्त 2008 की है। तब रूपा 15 साल की थीं। उस रात एक खौफनाक वाकया हुआ। वह चारपाई पर अकेले सो रही थीं। गहरी नींद में थीं। अचानक चेहरे पर जलन महसूस हुई, वह झटके से उठीं और चीखने लगीं। उन्होंने मां को कमरे से बाहर भागते हुए देखा। शरीर पर जलन बढ़ती जा रही थी। वह पानी से मुंह को ठंडा करना चाहती थीं। मगर घर में कहीं उन्हें पानी नहीं मिला। छह घंटे तक तड़पती रहीं।

मां से पूछती रहीं कि क्या किया है आपने मेरे साथ? रूपा बताती हैं कि मां ने मेरे चेहरे पर तेजाब उडे़ल दिया था। उन्होंने जान-बूझकर मेरे सामने से पानी भी हटा दिया था, ताकि मैं अपना चेहरा न धो सकूं। मैं चीखती, तड़पती रही, मगर कोई नहीं आया मुझे बचाने। इस बीच किसी तरह यह खबर उनके चाचा तक पहुंची। जब तक वह उनके घर पहुंच पाते, छह घंटे बीत चुके थे।

चाचा तुरंत रूपा को पड़ोस के एक अस्पताल में ले गए। मगर वहां पर एसिड हमले से पीड़ित मरीज के इलाज के लिए खास सुविधाएं नहीं थीं। डॉक्टर ने रूपा को फौरन दिल्ली ले जाने की सलाह दी। चाचा उन्हें लेकर दिल्ली के एक बडे़ सरकारी अस्पताल में पहुंचे, जहां पर उनका इलाज शुरू हुआ। मगर तब तक उनकी हालत काफी खराब हो चुकी थी। करीब तीन महीने तक रूपा उस अस्पताल में भर्ती रहीं। सरकारी अस्पताल में इलाज तो मुफ्त में हो रहा था, लेकिन दवा आदि का खर्च बहुत ज्यादा था।

छोटी-मोटी कमाई पर गुजर-बसर करने वाले चाचा को काफी कर्ज लेना पड़ा। तीन महीने के बाद जब अस्पताल से डिस्चार्ज होने का वक्त आया, तो रूपा ने कहा कि घर वापस जाने से बेहतर है कि वह अपनी जान दे दें। इसके बाद चाचा उन्हें फरीदाबाद स्थित अपने घर ले गए। डॉक्टर ने बताया कि उनके घाव तो ठीक हो गए हैं, पर पूरी तरह ठीक होने में लंबा समय लगेगा। रूपा बताती हैं, मैं महीनों अपने कमरे से बाहर नहीं निकली। मुझे लगा कि बाहर की दुनिया अब मेरी नहीं है। मैं नहीं चाहती थी कि लोग मेरा चेहरा देखकर डर जाएं। दुख की बात तो यह थी कि हमले के बाद पिता ने उन्हें सहारा देने की बजाय मां का साथ दिया। रूपा इस बात से इतनी आहत हुईं कि उन्होंने पिता से भी रिश्ता खत्म कर लिया। तय किया कि न्याय की लड़ाई वह अकेली लड़ेंगी।

चाचा के घर आने के बाद उनकी जिंदगी एक कमरे तक सिमट गई थी। जो कोई उन्हें देखता, चौंक जाता। बार-बार उन पर किए गए हमले का जिक्र होता। कुछ लोग दया दिखाते, तो कुछ घृणा से मुंह फेर लेते। करीब पांच साल तक वह घर से बाहर नहीं निकलीं। हंसना और लोगों से बातें करना तक बंद हो गया। रूपा बताती हैं, कई बार मेरी सर्जरी की गई। जान तो बच गई, पर जीने की मेरी इच्छा खत्म हो गई। मजबूरी में जब काम की तलाश में बाहर निकली, तो लोगों ने मेरे चेहरे की वजह से काम देने से मना कर दिया। वर्ष 2013 में रूपा स्टॉप एसिड अटैक संगठन के संपर्क में आईं। इसके बाद उनका जीवन बदलने लगा। यहां आकर ऐसी तमाम लड़कियों से उनकी मुलाकात हुई, जो उन्हीं की तरह एसिड हमले का शिकार बनी थीं। तब उन्हें एहसास हुआ कि जिंदगी अभी खत्म नहीं हुई है।

रूपा बताती हैं, तेजाब हमले के खिलाफ अभियान से जुड़ने के बाद मुझे लगा कि हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। वहां मैं अपनी जैसी लड़कियों के संग बातें करने लगी। हम डांस करते थे, गाना गाते थे। बस यूं ही मैंने दोबारा जीना सीख लिया। रूपा कहती हैं, ऐसा कोई दुख नहीं है, जिसे हराया न जा सके। पहले मैं अपना चेहरा ढककर बाहर निकती थी। कभी नहीं सोचा था कि दुनिया मुझे मेरे इस चेहरे के साथ स्वीकार कर पाएगी।
संगठन में आने के बाद उन्होंने सिलाई सीखी। वह तरह-तरह के डिजाइन के कपडे़ सिलने लगीं। साथी लड़कियां कहने लगीं कि रूपा, तुम तो कमाल की डिजाइनर हो। इस तारीफ ने उनके हौसले बुलंद कर दिए। उन्होंने बुटीक खोलने का फैसला किया। वर्ष 2014 में पहली बार उनके द्वारा डिजाइन किए कपडे़ फैशन शो में पेश किए गए। खूब तारीफ हुई उनकी। कई बडे़ फैशन स्टोर से ऑर्डर मिले। उन्होंने रैंप पर कैटवॉक भी किया। रूपा कहती हैं, पहली बार कैमरे के सामने आई, तो बहुत शर्म आ रही थी। मैंने चेहरा झुका लिया, पर फोटोग्राफर ने हौसला बढ़ाते हुए कहा, सामने देखिए, आप बहुत खूबसूरत हो। इसके बाद मैं बिना डरे रैंप पर आगे बढ़ गई।
आज रूपा तेजाब हमले से पीड़ित तमाम महिलाओं को न केवल प्रेरित करती हैं, बल्कि न्याय पाने की लड़ाई में भी उनकी मदद करती हैं। इस महिला दिवस पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें नारी शक्ति अवॉर्ड से सम्मानित किया। 
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी
 

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