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पापा की बहुत फिक्र रहती थी

झारखंड के जमशेदपुर जिले में एक गांव है, नारवा। रानी इसी गांव में पली-बढ़ीं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं वह। परिवार के पास खेती नहीं थी, लिहाजा पापा कोयले की खदान में मजदूरी करने लगे। मुश्किल से...

पापा की बहुत फिक्र रहती थी
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 30 Jul 2016 11:44 PM
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झारखंड के जमशेदपुर जिले में एक गांव है, नारवा। रानी इसी गांव में पली-बढ़ीं। चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं वह। परिवार के पास खेती नहीं थी, लिहाजा पापा कोयले की खदान में मजदूरी करने लगे। मुश्किल से परिवार का गुजारा हो पाता था। मां पद्मिनी मैट्रिक पास थीं। उन्होंने रानी को पढ़ाने का फैसला किया। पास के सरकारी स्कूल में उनका दाखिला हो गया। रानी का स्कूल जाना बड़ी बात थी, क्योंकि उन दिनों गांव की एक भी लड़की स्कूल नहीं जाती थी।

रानी स्कूल जाने लगीं। कुछ दिनों के बाद छोटी बहन ज्योति का भी उसी स्कूल में दाखिला हो गया। मां ने तय कर लिया था कि चाहे जितनी मुश्किलें आएं, वह अपने चारों बच्चों को पढ़ाएंगी। गांव की बाकी महिलाओं को पद्मिनी की यह जिद समझ में नहीं आती थी। वे अक्सर पूछती थीं, आखिर बेटियों की पढ़ाई पर पैसा खर्च करने की क्या जरूरत है? गांव वाले चाहते थे कि बाकी लड़कियों की तरह मांझी परिवार की बेटियां भी खेती-किसानी में लगें। पर मां ने ऐसा नहीं होने दिया। रानी अब आठ साल की हो चुकी थीं। बच्चों की पढ़ाई के लिए पापा दिन-रात मेहनत कर रहे थे। अक्सर ओवरटाइम करना पड़ता था। रानी जानती थीं कि पापा को खदान के अंदर जाकर काम करना पड़ता है। इस काम में बहुत जोखिम है। आए दिन खदान में हादसे के किस्से सुनने को मिलते थे। उन्हें पापा की बड़ी फिक्र रहती थी। हमेशा डर लगा रहता था, कहीं उन्हें कुछ हो न जाए। रानी ने मन में तय कर लिया था कि बड़ी होकर नौकरी करूंगी और पापा को खदान में काम करने से रोक दूंगी। पद्मिनी बताती हैं, रानी शुरू से ही बहुत समझदार है। वह पापा की लाड़ली है। वह चाहती थी कि पापा खदान में काम करने की बजाय कोई और काम करें, जहां उनकी जान को खतरा न हो।

रानी अब कक्षा नौ में पहुंच चुकी थीं। पढ़ाई के अलावा फुटबॉल में भी उनकी दिलचस्पी  थी। वह और उनकी छोटी बहन ज्योति अक्सर स्कूल के मैदान में फुटबॉल खेला करती थीं। एक दिन कुछ खेल अधिकारियों की टीम उनके स्कूल पहुंची। टीम के लोग रानी की कक्षा में भी गए। उनके साथ तीरंदाजी के राष्ट्रीय कोच धर्मेंद्र तिवारी भी थे। उन्होंने बच्चों से पूछा, आप में से कौन तीरंदाजी सीखना चाहेगा? हम आपको तीर चलाना सिखाएंगे। बच्चों को कुछ समझ में नहीं आया। भला स्कूल में तीरंदाजी क्यों सिखाई जा रही है? इससे क्या फायदा होगा? क्लास में सन्नाटा छा गया। किसी बच्चे ने जवाब नहीं दिया। तभी रानी ने हाथ उठाकर कहा, सर, मैं सीखूंगी तीर चलाना। यह सुनकर कोच बहुत खुश हुए। रानी बताती हैं, तब मैं तीरंदाजी के बारे में कुछ नहीं जानती थी। पता नहीं क्यों, मेरे मन में आया कि शायद इसे सीखने से मुझे कुछ काम मिल जाएगा और मैं पैसे कमाने लगूंगी। और फिर पापा को खतरनाक नौकरी करने से रोक पाऊंगी।

घर आकर बताया, मां, मैं तीरंदाजी सीखूंगी। मां ने सोचा कि स्कूल वाले सिखा रहे हैं, तो इसमें कुछ अच्छा ही होगा। ट्रेनिंग शुरू हुई। ट्रेनिंग का सारा खर्च खेल एकेडमी ने उठाया। अब उनका ज्यादातर वक्त घर के बाहर बीतता था। सुबह-शाम ट्रेनिंग और बाकी समय में पढ़ाई। जल्द ही पूरे गांव में खबर फैल गई कि दिकू मांझी की बेटी तीर-कमान चलाना सीख रही है। पहले जो लोग बेटियों की पढ़ाई को लेकर आपत्ति करते थे, अब वे कहने लगे कि बेटी को पढ़ाना तो ठीक है, पर खेल-कूद में समय बर्बाद करने से क्या फायदा? पद्मिनी कहती हैं, गांव की महिलाओं को लगता था कि खेल-कूद से लड़कियां बिगड़ सकती हैं। उन्हें रानी का तीरंदाजी सीखना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, पर मैंने कभी किसी की परवाह नहीं की। मैं हमेशा चाहती थी कि मेरे बच्चे कुछ बड़ा काम करें। रानी ने मेरा सपना पूरा किया है। 

ट्रेनिंग के दौरान रानी ने खूब मेहनत की। शोहरत बढ़ने लगी। उन्होंने कभी अपने ऊपर हार-जीत का दबाव हावी नहीं होने दिया। वह बिंदास खेलीं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ढेर सारे मेडल जीते। 2015 में डेनमार्क में आयोजित विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में रजत पदक जीता। फिर उन्हें खेल कोटे से रेलवे में नौकरी मिल गई। पापा की तरक्की हो गई। खदान में मजदूरी का काम छोड़कर वह एक यूरेनियम फैक्टरी  में काम करने लगे। छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई का खर्च रानी उठाने लगीं। पद्मिनी कहती हैं, रानी मेरी बेटी नहीं, बेटा है। सच कहूं, तो वह बेटे से बढ़कर है। उसे हम सबकी फिक्र रहती है। वह अपने छोटे भाई-बहनों को पढ़ाना चाहती है। मुझे गर्व है कि मैं रानी की मां हूं।
खेल में व्यस्त होने के बावजूद रानी ने पढ़ाई नहीं छोड़ी। इस समय वह इग्नू से बीए की पढ़ाई कर रही हैं। छोटी बहन ज्योति बताती है, दीदी बहुत मेहनती हैं। वह सुबह से शाम तक प्रैक्टिस करती थीं बिना थके, बिना रुके। मैंने उन्हें कभी किसी चीज के लिए शिकायत करते नहीं देखा। उनके अंदर गजब का जुनून और धैर्य है।

हाल में उन्हें रियो ओलंपिक के लिए चुना गया। उनके करियर की यह सबसे बड़ी कामयाबी है। पद्मिनी कहती हैं, ओलंपिक के लिए चुना जाना बहुत बड़ी बात है। रानी ने बहुत मेहनत की है। वह ओलंपिक में मेडल जरूर जीतेगी।
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

 

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