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बंद करो बच्चों को खरीदना और बेचना

आरती कुमारी, ब्रांड अंबेस्डर, झारखंड हम बहुत गरीब थे। पापा ने चंद रुपयों के लिए मुझे बेच दिया। पर अब मैं उन दिनों को याद नहीं करना चाहती। मैं अपनी पढ़ाई के साथ गांव के बाकी बच्चों को भी स्कूल जाने...

बंद करो बच्चों को खरीदना और बेचना
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 31 Jan 2016 12:13 AM
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आरती कुमारी, ब्रांड अंबेस्डर, झारखंड

हम बहुत गरीब थे। पापा ने चंद रुपयों के लिए मुझे बेच दिया। पर अब मैं उन दिनों को याद नहीं करना चाहती। मैं अपनी पढ़ाई के साथ गांव के बाकी बच्चों को भी स्कूल जाने के लिए प्रेरित कर रही हूं। हर गरीब बच्चे को पढ़ने का मौका मिलना चाहिए।

झारखंड की रहने वाली नन्ही आरती को कभी मां का प्यार नहीं मिला। होश संभालते ही सौतेली मां के जुल्म सहने पड़े। छोटी-छोटी बात पर डांट पड़ती थी। ज्यादा गुस्सा आ जाए, तो मां पीटने लगती थीं। पिता ठेले पर खाने-पीने का सामान बेचा करते थे। दिन भर जो कमाते, शाम को शराब पर खर्च कर देते। गरीबी का कहर कुछ ऐसा बरपा कि भीख मांगने की नौबत आ पड़ी। हद तो तब हो गई, जब पापा ने चंद रुपयों के लिए उसे एक दलाल को बेच दिया। उस समय वह मुश्किल से आठ साल की रही होगी।

एक दिन आरती घर लौटी, तो पापा धीमी आवाज में मां से कुछ कह रहे थे। उसे पता चल गया कि पापा ने उसका सौदा कर दिया है। बिना कुछ कहे वह घर से निकल पड़ी। रास्ते में दलाल ने देख लिया। वह पापा को पैसे दे चुका था, लिहाजा उससे जबरन साथ चलने की जिद करने लगा। आरती किसी तरह हाथ छुड़ाकर भागी। घर जाने की हिम्मत नहीं हुई। रात सड़क पर गुजारी। अगली सुबह घर पहुंची, तो पापा ने खूब पीटा। मगर वह नहीं झुकी। बिना डरे साफ कह दिया- मैं किसी के संग नहीं जाऊंगी। पर अब घर पर रहना मुश्किल हो गया था। दलाल आए दिन घर पर आ धमकता और उसे जबरन अपने संग ले जाने की कोशिश करता। आरती बताती हैं- पापा ने मुझे बेच दिया है, यह जानकर बहुत रोना आया। लेकिन यह सिर्फ मेरे साथ नहीं हुआ। कई बच्चियों के साथ ऐसा होता रहा है। 

कुछ दिन यूं ही बीत गए। अब दलाल पापा पर रुपये लौटाने के लिए दबाव बनाने लगा। पर वह पैसा लौटाते कैसे? रुपये तो शराब पर खर्च हो चुके थे। एक दिन तंग आकर आरती गांव के रेलवे स्टेशन पहुंची और सामने खड़ी ट्रेन में बैठ गई। उसे नहीं पता था कि कहां जाना है, क्या करना है? पर अब वह घर और घरवालों से बहुत दूर जाना चाहती थी। सफर लंबा था। वह घंटों ट्रेन के दरवाजे के पास फर्श पर बैठी रही। उसके पास न कोई सामान था और न पैसे। कई जगह ट्रेन रुकी। हर स्टेशन पर यात्री उतरते-चढ़ते रहे, पर वह अपनी जगह से नहीं हिली। अगली सुबह ट्रेन पश्चिम बंगाल के हावड़ा स्टेशन पर रुकी। सारे यात्री उतर गए। पूरी ट्रेन खाली हो गई। जब आरती को समझ में आया कि ट्रेन आगे नहीं जाएगी, तो वह भी उतरकर प्लेटफॉर्म पर आ गई।

हावड़ा स्टेशन बहुत बड़ा था। इससे पहले उसने कभी इतनी भीड़ नहीं देखी थी और न ही इतना लंबा-चौड़ा प्लेटफॉर्म देखा था। समझ में नहीं आ रहा था कि बाहर का रास्ता किस तरफ है। काफी थक चुकी थी वह। भूख भी लगी थी। तमाम चीजें बिक रही थीं, पर खरीदने के लिए आरती के पास पैसे नहीं थे। कुछ देर इधर-उधर भटकने के बाद प्लेटफॉर्म की बेंच पर बैठ गई। तभी एक अनजान आदमी उसके पास आया और पूछताछ करने लगा। शायद वह समझ गया था कि यह बच्ची कहीं से भागकर आई है या भटक गई है। उसने आरती को कुछ खाने को दिया और फिर अपने संग बाहर ले जाने लगा। इस बीच कुछ यात्रियों की नजर उस पर पड़ गई और उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी।

थोड़ी ही देर में साफ हो गया कि वह अनजान आदमी बच्चों को बेचने वाला दलाल था। पूछताछ के बाद आरती को एक शेल्टर होम भेज दिया गया। यहां आकर मानो आरती को नया जीवन मिल गया। वहां उसे भरपेट खाना मिलता था। साफ कपड़े और कई सारे नए दोस्त भी मिले। सबसे बड़ी बात यह थी कि यहां उसके साथ कोई मारपीट नहीं करता था। शेल्टर होम में वह पांच साल तक रही। इस दौरान पढ़ाई की और डांस भी सीखा। वहीं ये पांचवीं की परीक्षा पास की।

साल 2011 में आरती को झारखंड के किशोरी निकेतन में भेज दिया गया। काउंसलिंग के दौरान उन्होंने आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की। रांची के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में उनका दाखिला कराया गया। साल 2014 में गैर सरकारी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रन’ ने उन्हें अपना ब्रांड अंबेस्डर बनाया। पिछले साल आरती ने दसवीं की परीक्षा पास की। किशोरी निकेतन के कार्यकर्ता अरविंद मिश्रा बताते हैं- आरती बहुत ही समझदार बच्ची है। उसके अंदर नई चीजों को सीखने की अद्भुत क्षमता है। खासकर बच्चों की समस्याओं को लेकर वह बहुत संजीदा है।

इन दिनों आरती रांची के गांवों में लोगों को बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरुक करने में जुटी है। वह लोगों को बताती है कि बच्चों को बेचना और खरीदना अपराध है। वह डांस और नाटक के जरिए लोगों तक अपना संदेश पहुंचाती है। आरती कहती है- घर-घर जाकर लोगों से बात करती हूं, उन्हें समझाती हूं कि अपने बच्चों को स्कूल भेजो, ताकि उन्हें वह सब न सहना पडे़, जो मुझे सहना पड़ा। पढ़ाई पूरी करने के बाद भी मैं इस अभियान में जुटी रहूंगी। गरीब बच्चों को बेहतर जिंदगी दिलाना अब मेरा मकसद है।

स्कूल में आरती की छवि एक बहादुर और दिलेर छात्रा की है। एक ऐसी लड़की, जिसे अन्याय बर्दाश्त नहीं है। सहपाठी आरती को अपना रोल मॉडल मानते हैं। आरती कहती हैं- मेरा बीता हुआ कल अच्छा नहीं था। अब मैं उन दिनों को याद भी नहीं करना चाहती हूं। मैं जानती हूं कि मेरा कल बेहतर होगा।
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

 


 

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