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मोदी लहर की असली अग्निपरीक्षा आज

बिहार में तीसरे चरण के प्रचार का महा अभियान थम चुका है। नेताओं को जितना सुनाना था सुना चुके हैं, अब जनता की बारी है। गुरुवार को जिन सात सीटों (भागलपुर, बांका, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज और...

मोदी लहर की असली अग्निपरीक्षा आज
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 24 Apr 2014 08:53 AM
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बिहार में तीसरे चरण के प्रचार का महा अभियान थम चुका है। नेताओं को जितना सुनाना था सुना चुके हैं, अब जनता की बारी है। गुरुवार को जिन सात सीटों (भागलपुर, बांका, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज और सुपौल) पर वोट पड़ेंगे उनमें नरेंद्र मोदी की लहर का डीएनए परीक्षण होना है क्योंकि इनमें पांच सीटें भाजपा की हैं। बिहार का यह वो इलाका है जहां मुसलिम मतों की बहुलता है और शायद यही कारण है कि प्रचार के आखिर में बड़े-बड़े नेता नियंत्रण खो बैठे। पूरे चुनाव को तेजी से दो ध्रुवों में बांटने का प्रयास हो रहा है। और शायद यही कारण है कि जदयू के चुनाव अभियान में जान फूंकने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मधेपुरा में डेरा डाले बैठे हैं और सभाओं में अपने काम का मेहनताना मांग रहे।

मुझे याद है कि 2004 का आम चुनाव। बिहार में सड़कों की अंत्येष्टि का वो महाकाल था। हाई-वे किनारे तत्कालीन राजद सरकार की तरफ से स्थायी बोर्ड टंगवा दिए गए थे कि यह सड़क भारत सरकार की है। गरज कि कोई सत्ता से सवाल न करे कि अमुक जगह पर कभी एक सड़क हुआ करती थी। हम भागलपुर से नवगछिया पहुंच भी जाते थे, तो वहां से पूर्णिया तक की 90 किमी की यात्रा चार घंटे में पूरी होती थी और इसे सिर्फ कष्टप्रद बताना उस संकट को कमतर आंकना होगा। एनएच-31 की शक्ल सूरत और पहचान बदल गई है, वाहन 100 किमी की गति से फर्राटा भर रहे हैं। सोमवार को कटिहार, पूर्णिया और अररिया के दौरे में इस एनएच पर कोढ़ा के पास लाल-हरी नियोन बत्तियों वाले टोल प्लाजा पर टैक्स की वसूली होती दिखी। अरे कम से कम चुनाव तक तो रुक जाते, लेकिन नहीं। क्या इसी एनएच की मजदूरी मांगी जा रही है? अररिया के ठेकेदार अरशद आलम कहते हैं कि इसबार नीचे (पटना) कोई नहीं देख रहा, चुनाव दिल्ली के लिए दो राष्ट्रीय गठबंधनों राजग और संप्रग के बीच है। विकास के नाम पर वोट पड़ते तो नीतीश को पूरे 40 प्रतिशत वोट पड़ते, 90 फीसदी ग्रामीण क्षेत्र वाले अररिया में 20-22 घंटे बिजली आ रही है, जदयू को कोई हरा नहीं सकता था लेकिन काश ऐसा होता। वैसे नीतीश की रैलियां अच्छी रहीं, खासतौर से सोमवार को फारबिसगंज में हुई रैली की तुलना की जा रही है। स्थानीय लोग मानते हैं कि सीमांचल को सीधे नार्थ-ईस्ट से जोड़ने वाली फोरलेन (एनएच -57) नीतीश सरकार की देन है लेकिन जब श्रेय देने की बात आती है तो अरशद मियां तर्क देते हैं कि इसकी स्वीकृति यूपीए-1 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद ने दी थी। 41 प्रतिशत मुसलिम मतदाताओं वाली अररिया सीट से राजद के तस्लीमुद्दीन, भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह और जदयू के विजय मंडल के किस्मत का फैसला होना है। प्रदीप कुमार की ठेकेदार परस्त छवि को लेकर भाजपा के वार रूम में चिंता है लेकिन पार्टी इस समय मोदी लहर पर सवार है। चुनाव किस तरफ मोड़ा जा रहा इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अपने ताजा बयान में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया है। किशनगंज और अररिया दो ऐसी सीटें हैं जहां सर्वाधिक मुसलिम वोट हैं और उनमें एक बड़ी संख्या बांग्लादेशी शरणार्थियों की है जिन्हें आरएसएस की जुबान में घुसपैठिया नाम दिया गया है।

2004 में तस्लीमुद्दीन किशनगंज से सांसद चुने गए थे और केंद्रीय मंत्री भी रहे। गुजरात दंगे के नाम पर ही उन्होंने शाहनवाज हुसैन को हराया था। पूर्णिया और किशनगंज के लोगों को शायद याद हो तब रंगदारी के कारण एनएच-31 बनाने वाली कंपनी काम छोड़कर भाग गई थी और पुलिस एफआईआर लिखने तक को तैयार नहीं थी, सुरक्षा की बात तो दूर। आज वही एनएच बिहार से उत्तर पूर्वी राज्यों का गेट-वे बना हुआ है लेकिन किशनगंज में जदयू की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। अख्तरूल ईमान ने बीच राह में नीतीश को धोखा दे दिया। अब राजनीति में ईमान की तलाश की जा रही है। उस ईमान की, जिसने टिकट की चाह में राजद से बगावत की थी। ताजा सीन यह कि किशनगंज में राहुल आए, सीमावर्ती सीट पर सोनिया आईं लेकिन भाजपा से छोटा-बड़ा कोई नेता डां. दिलीप जायसवाल का प्रचार करने नहीं गया। ईमान का साइड इफैक्ट पूर्णिया और कटिहार तक है। वैसे पूर्णिया की गिनती कुछ उन सीटों में की जा रही थी जहां जदयू बढ़त के साथ मुकाबले में था। भाजपा प्रत्याशी उदय सिंह की घेरेबंदी की पूरी योजना काम कर रही थी। इसी के तहत भाजपा से संतोष कुशवाहा तोड़े गए थे। राजपूतों को साधने के लिए लेसी सिंह को रेणु कुशवाहा वाली लाल बत्ती थमा दी गई। बागी हो रहीं विधायक बीमा भारती को मनाने के लिए मुख्यमंत्री के मंच पर बुलाया गया। सूत्रों की मानें तो गया जेल में बंद उनके पति अवधेश मंडल को राहत देने का रास्ता भी तलाशा जा रहा क्योंकि गंगोता वोट भी निर्णायक संख्या में हैं।

विधायक रेणु कुशवाहा ने एक बयान में कहा है कि जदयू नेतृत्व अपने पुराने लोगों को भूल रहा है। रेणु के बयान को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता। टिकट बंटवारे में उन नेताओं को ज्यादा तरजीह दी गई जो अपने पुराने दल में उपेक्षित होने के बाद ऐन वक्त पर जदयू में दौड़े आए। ऐसे उम्मीदवारों में पूर्णिया से संतोष कुशवाहा (बायसी से भाजपा विधायक), कटिहार से रामप्रकाश महतो (राजद नेता व पूर्व मंत्री), अररिया से विजय मंडल (लोजपा नेता, पहले यहां से जाकिर हुसैन का नाम चला था वह भी लोजपा के थे), सुपौल से दिलैश्वर कामैत (जदयू से निर्दलीय हो गए थे), भागलपुर से अबु कैसर (राजद नेता), किशनगंज से अख्तरूल ईमान (कोचाधामन से राजद विधायक) प्रमुख हैं। ऐसा नहीं कि इन सीटों पर जदयू के पास अच्छे नाम नहीं थे सिर्फ दल को विस्तार देने में नेतृत्व ने अपने लोगों को नाराज कर दिया। यूं ही नहीं भागलपुर में कहा जा रहा कि जदयू के दो-दो विधायकों में गंगोता वोट तलाशा जा रहा है।

लालू प्रसाद के पास कहने या बताने के लिए कुछ नहीं, लेकिन एमवाई समीकरण की ताकत जानते हैं। तीन महीने से वह एक ही टेप बजा रहे हैं कि लालकृष्ण आडवाणी का रथ रोका था, फिर मोदी को भी रोकूंगा। शायद वो जानते हैं कि किशनगंज के 78, कटिहार के 43, अररिया के 41, पूर्णिया के 37 और भागलपुर के 18 प्रतिशत मुसलिम मतदाता क्या सुनना पसंद करते हैं। और यही कारण है कि मुख्यमंत्री के मंच तक से आखिरी में जदयू नेता संयम खो बैठे। चुनाव में भी आईएसआई की भूमिका तलाश रहे भाजपा नेता गिरिराज सिंह नरेंद्र मोदी को वोट न देने वालों को पाकिस्तान भेजने की बात कह रहे तो इसलिए कि भागलपुर सीट पर शाहनवाज हुसैन तिकोने कड़े मुकाबले में फंसे दिख रहे हैं।

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