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वही पुरानी बहस

हिन्दुस्तान के सियासी व जहीन लोगों की दुनिया में इन दिनों एक खास मसले पर जोरदार बहस छिड़ी हुई है। यह मसला है मर्कजी हुकूमत का ‘समान नागरिक संहिता’ को लेकर उमड़ा ताजा प्रेम। हालांकि, जब से...

वही पुरानी बहस
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 20 Oct 2016 10:37 PM
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हिन्दुस्तान के सियासी व जहीन लोगों की दुनिया में इन दिनों एक खास मसले पर जोरदार बहस छिड़ी हुई है। यह मसला है मर्कजी हुकूमत का ‘समान नागरिक संहिता’ को लेकर उमड़ा ताजा प्रेम। हालांकि, जब से यह मुल्क आजाद हुआ है, इस मुद्दे के ऊपर रह-रहकर आवाजें उठती रही हैं। फिलहाल यह मुद्दा हिन्दुस्तान की आला अदालत में ‘तीन तलाक’ के मसले पर मोदी हुकूमत के हलफनामे के साथ गरम हुआ है, जिसमें उसने इसकी मुखालफत की है। पर दशकों पहले, 23 नवंबर, 1948 को आजाद हिन्दुस्तान की संविधान सभा के मेंबरान ने एक पूरा दिन विवादित आर्टिकल 44 के संशोधन प्रस्तावों पर बहस में खर्च किया था।

यह आर्टिकल तमाम नागरिकों के लिए ‘समान नागरिक संहिता’ की बात करता है। मगर इस आर्टिकल को बगैर किसी बदलाव के मान लिया गया, क्योंकि संविधान बनाने वालों में एक अहम किरदार बी आर अंबेडकर ने असेंबली के फिक्रमंद मेंबरों को यह यकीन दिलाया था कि ज्यादा हिंदू आबादी वाले हिन्दुस्तान में इस आर्टिकल का कभी बेजा इस्तेमाल नहीं होगा और न ही रवायतों व विरासत के मामले में एक ही कायदा सबको मानने के लिए जोर डाला जाएगा। ऐसे में, यह ताजा बहस फिर से याद दिलाती है कि कई नस्लों, जातियों, मजहबों वाले मुल्क में किसी एक तरीके को लादना कितना मुश्किल है- अलबत्ता, यह बहुलता दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरियत की मूल ताकत भी है।

इसलिए अगर इस बहस का आखिरी मकसद बराबरी और औरत व मर्द जात के बीच पसरी किसी नाइंंसाफी को दूर करना है, जैसा कि दावा है, तो हर हिन्दुस्तानी बिरादरी को अपने ‘पर्सनल लॉ’ पर जरूर गौर करना चाहिए और यह साबित करना चाहिए कि वह तरक्कीपसंद है और उसमें समाज की वक्ती मांग के मुताबिक खुद को ढालने की सलाहीयत भी है। हर वह रवायत, जो भेदभाव का एहसास कराती हो, उसे बिरादरी के भीतर ही दूर कर लेना चाहिए, बजाय इसके कि मुल्क को जबर्दस्ती इसे करना पड़े। इस मामले में शायद सबसे बेहतर राह हिन्दुस्तान का संविधान ही दिखाता है, जो इसे एक खुदमुख्तार, समाजवादी, सेकुलर और जम्हूरी रिपब्लिक बनाता है। गल्फ न्यूज, संयुक्त अरब अमीरात 

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