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अदीबों की भूमिका का वक्त

लेखकों व कवियों के एक प्रतिनिधिमंडल से बात करते हुए राष्ट्रपति मम्नून हुसैन ने एक बार फिर उम्मीद जताई कि पाकिस्तान का बुद्धिजीवी वर्ग देश से आतंकवाद के खात्मे की दिशा में माहौल बनाने का काम करेगा।...

अदीबों की भूमिका का वक्त
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 13 Mar 2017 12:13 AM
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लेखकों व कवियों के एक प्रतिनिधिमंडल से बात करते हुए राष्ट्रपति मम्नून हुसैन ने एक बार फिर उम्मीद जताई कि पाकिस्तान का बुद्धिजीवी वर्ग देश से आतंकवाद के खात्मे की दिशा में माहौल बनाने का काम करेगा। उनका मानना है कि यही वह वर्ग है, जो समाज में सहिष्णुता का माहौल बनाने के साथ आतंकवाद के खात्मे में सहयोगी भूमिका निभा सकता है। ऐसे वक्त में, जब हमारी फौजें आतंकवादियों की पनाहगाहों में घुसकर उनसेमजबूती से लोहा ले रही हैं, यह बहुत सकारात्मक होगा कि समाज के उन तबकों की भूमिका को रेखांकित किया जाए, जो अपने-अपने तरीके से इस युद्ध में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। 

लेखकों-कवियों की तो इसमें बहुत बड़ी भूमिका है। देश को पीछे ले जाने और अंधेरे में धकेलने वाली ताकतों की साजिशों का खुलासा करने में उनकी बड़ी भूमिका हो सकती है। दरअसल पाकिस्तान की धरती ने तमाम ऐसे क्रांतिकारी कवि, लेखक और विचारक दिए हैं, जिनकी लेखनी से निकली रचनाओं ने समाज में उत्पीड़न के खिलाफ माहौल बनाकर आजादी की भावना का संचार किया। अल्लामा इकबाल, जोश मलिहाबादी जैसी महान शख्सियतों से पे्ररणा लेकर हमारे रचनाकारों को समय और समाज पर सतर्क नजर रखते हुए आज भी ऐसी रचनाएं देने की जरूरत है, जो समाज में सहिष्णुता की भावना प्रबल करने के साथ ही लोगों में नई उम्मीदों का संचार करने में सहायक बनें। 

यह अत्यंत सुखद है कि वर्तमान सरकार ने समाज को बदलने की दिशा में शिक्षा और साहित्य-संस्कृति के महत्व को समझा है। इसमें प्रधानमंत्री के विशेष सचिव इरफान सिद्दीकी की पहलकदमी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। वर्ष 2017 को जर्ब-ए-कलाम के तौर पर मनाए जाने को देश की उदारवादी छवि बनाने के प्रयासों की इसी कड़ी में देखा जाना चाहिए। हकीकत की जमीन पर बात करें, तो इसमें कोई शक नहीं कि यह हमारा बौद्धिक जगत ही है, जिसकी छोटी सी पहल और प्रयास युवाओं में नए सोच का संचार तो करेगी ही, आतंकवाद को मिल रहे खाद-पानी की आपूर्ति को भी रोकने में मददगार साबित होगी।
    पाकिस्तान ऑब्जर्वर

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