अफगान-पाक संबंध
अफगान राष्ट्रपति अशरफ घनी पाकिस्तान के सबसे कड़े आलोचक बन गए हैं, इतने कड़े कि उन्होंने भारतीयों को भी पीछे छोड़ दिया है, यहां तक कि अपने देश के हितों की अनदेखी करने की हद तक। अमृतसर में हुए एशिया...
अफगान राष्ट्रपति अशरफ घनी पाकिस्तान के सबसे कड़े आलोचक बन गए हैं, इतने कड़े कि उन्होंने भारतीयों को भी पीछे छोड़ दिया है, यहां तक कि अपने देश के हितों की अनदेखी करने की हद तक। अमृतसर में हुए एशिया सम्मेलन में मुद्दा सुरक्षा खतरों के प्रति आपसी सहयोग का था, वहां घनी की बातें इतनी आक्रामक थीं कि जैसे काबुल पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते तोड़ने जा रहा हो। दो साल पहले जब घनी सत्ता में आए थे, तब उन्होंने इस्लामाबाद और रावलपिंडी के प्रति बेबाक रवैया अपनाते हुए पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। पाकिस्तान के राजनीतिक व सैनिक नेतृत्व ने इसका गर्मजोशी से स्वागत किया था, लेकिन उन्हें लगा कि दोनों मुल्कों के रिश्तों में सुधार काफी धीमी गति से हो रहा है और वह सब्र खो बैठे।
अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान के मन में कई वाजिब चिंताएं हैं। घनी और उनकी नेशनल यूनिटी सरकार पाकिस्तान के प्रति आक्रामक होने के चक्कर में जान-बूझकर भारत के नजदीक हो रही है। दोनों देशों के सुरक्षा संस्थानों में आई नजदीकी बलूचिस्तान में खड़ी हो रही समस्या का एक बड़ा कारण है। इस समय जब उत्तरी वजीरिस्तान और फाटा इलाके में पाकिस्तान का आतंकवाद विरोधी अभियान अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है, एक नई और मुश्किल समस्या उन अफगान आंतकवादियों को लेकर खड़ी हो गई है, जो मूल रूप से पाकिस्तान विरोधी हैं।
खासकर पूर्वी क्षेत्र में यह समस्या बहुत बड़ी है। अफगानिस्तान व पाकिस्तान की एक-दूसरे से जो शिकायते हैं, उसने दोनों देशों के रिश्तों को बहुत ही खराब स्थिति में पहुंचा दिया है। ऐसे बहुत से कारण हैं, जिनके चलते दोनों देशों को अपने रिश्तों को सुधारना होगा और सहयोग करना ही होगा, घनी अभी भले ही एकतरफा ढंग से बातें कर रहे हों, पर वह भी इसे अच्छी तरह जानते हैं। सहयोग के तीन मुख्य क्षेत्र हैं, जिन पर दोनों देशों को ध्यान देना ही होगा। पहला, सीमा पार से आने वाला आतंकवाद, जिस पर अमृतसर के सम्मेलन में संयुक्त बयान भी जारी हुआ है। दूसरा अफगान तालिबान से राजनीतिक समझौता। और तीसरा है आपसी व्यापार व कारोबार का विस्तार।
डॉन, पाकिस्तान