कठघरे में हुकूमत
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत जलील अब्बास जिलानी ने न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादकीय विभाग को संभवत: करारा जबाव लिखा होगा कि आखिर कैसे उसने पाकिस्तान पर अपने कर्तव्य को पूरा न करने का आरोप लगाया।...
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत जलील अब्बास जिलानी ने न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादकीय विभाग को संभवत: करारा जबाव लिखा होगा कि आखिर कैसे उसने पाकिस्तान पर अपने कर्तव्य को पूरा न करने का आरोप लगाया। मगर क्वेटा के नजदीक मुल्ला मंसूर की मौत ने तर्कसंगत आलोचना का मौका जरूर दिया है। ओसामा बिन लादेन और मुल्ला उमर के बाद मुल्ला मंसूर तालिबान का तीसरा ऐसा प्रमुख कमांडर है, जिसे पाकिस्तानी जमीं पर मार गिराया गया है, और महत्वपूर्ण यह है कि उसे भी हमारे किसी कमांडर ने नहीं मारा है।
बेशक हम आतंकियों से जमकर लोहा ले रहे हैं, मगर ये कुछ ऐसे आंकड़े हैं, जो हमें आतंकियों का समर्थक बताते हैं, खासकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर। हमारी जमीं पर अमेरिकी ड्रोन हमले में इस तालिबानी नेता की मौत तमाम तरह के सवाल पैदा करती है। सबसे प्रमुख तो यही कि अफगान तालिबान का भविष्य अब क्या होगा? मुल्ला उमर की मौत के बाद तालिबान कई गुटों में बंट गया था, जिन पर काबू पाने में मुल्ला मंसूर सफल रहा।
लिहाजा संभव है कि अब मंसूर की मौत के बाद मुखिया बनने के लिए वही फिर से जंग और वही बंटवारा देखने को मिले। अफगान हुकूमत के लिए यह अच्छी खबर है, क्योंकि मुल्ला मंसूर सबसे अधिक आक्रामक था और अफगानी फौज पर भारी पड़ रहा था। साथ ही, कई गुटों में बंटा तालिबान भी अपेक्षाकृत कमजोर खतरा होगा। मगर अभी कोई यह नहीं कह सकता कि यह आतंकी गुट किस दिशा में आगे बढ़ेगा? बेशक बंटा गुट संगठित गुट से अपेक्षाकृत कमजोर होता है, मगर जमात-उल-अहरार मामले में हमने देखा है कि कैसे छोटे गुट अपेक्षाकृत अधिक आक्रामक हो जाते हैं।
यही अनिश्चितता शांति प्रक्रिया में भी दिख रही है। बहरहाल, कुछ कठिन सवाल हमारी हुकूमत और सेना से भी पूछे जाने चाहिए। आखिर दुर्दांत आतंकी हमारी जमीं पर ही सुरक्षित महसूस क्यों करते हैं? पाकिस्तान में मौजूद तालिबान की सूचना आईएसआई से बेहतर सीआईए और एनडीएस जैसी विदेशी एजेंसियों के पास कैसे होती है? एक घटना को हम अपवाद मान सकते हैं, मगर तीन-तीन घटनाएं तो एक पैटर्न की ओर इशारा कर रही हैं।
द नेशन, पाकिस्तान