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फिर से जीतें भरोसा

पिछले चार महीनों से तराई में जारी विरोध प्रदर्शनों के कारण प्रदर्शनकरियों में अब थकान पैदा होने लगी है। हालांकि, उनमें केंद्र के प्रति नाराजगी के संकेत भी मिलते हैं, क्योंकि सुरक्षा बलों के साथ झड़प...

फिर से जीतें भरोसा
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 08 Feb 2016 08:58 PM
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पिछले चार महीनों से तराई में जारी विरोध प्रदर्शनों के कारण प्रदर्शनकरियों में अब थकान पैदा होने लगी है। हालांकि, उनमें केंद्र के प्रति नाराजगी के संकेत भी मिलते हैं, क्योंकि सुरक्षा बलों के साथ झड़प में इस पूरे प्रदर्शन के दौरान करीब 40 लोग मारे गए, मगर अब ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि उनके लिए रोजमर्रा की जिंदगी गुजारना काफी मुश्किल हो रहा है।

मैदानी (तराई) इलाके की अर्थव्यवस्था इससे बुरी तरह प्रभावित हुई है। यही वजह है कि प्रदर्शनों में शामिल होने वालों की तादाद काफी कम होती गई। और अब जब इनकी संख्या काफी घट गई है, तो बीरगंज व उसके आसपास के इलाकों के कारोबारियों व स्थानीय लोगों ने नेपाल-भारत सीमा पर खड़े किए गए अवरोधों को बलपूर्वक हटा दिया है। पिछले चार महीनों में ऐसा पहली बार हुआ है। बीरगंज में सीमा का खुलना मधेस आंदोलन में एक अहम मोड़ है।

मधेसी मोर्चा के लिए यह एक बड़ा धक्का है। हालांकि इस गठबंधन ने विरोध प्रदर्शन को जारी रखने का फैसला किया है, लेकिन इसे लेकर कुछ भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि आखिर यह होगा तो कैसे? आंदोलन के नेता मानते हैं कि हिंसक विरोधों ने स्थानीय आबादी को उनके खिलाफ कर दिया है और उनके लिए अब लोगों को प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए मनाना काफी मुश्किल होगा। यह भी मुमकिन है कि सरकार इसे अपनी जीत के रूप में ले और मधेसी मांगों के बारे में अब आगे बातचीत करने से इनकार कर दे।

खासकर, इस बात की पूरी आशंका है कि सरकार मधेसी आंदोलन की मुख्य मांग- यानी एक राजनीतिक कमेटी से राज्यों के सीमा-निर्धारण की समीक्षा कराए जाने के अनुरोध को अब नामंजूर कर दे। पर यह एक भूल होगी। हम मानते हैं कि विरोध प्रदर्शनों का आकार छोटा हुआ है, लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि लोगों में काठमांडू में बैठी सरकार के प्रति गुस्सा भी कम हो गया है।... बीरगंज बॉर्डर के खुलने को अपनी जीत मानने की बजाय सरकार को तराई के संदर्भ में एक सुविचारित नीति अपनानी चाहिए। और यह नीति तराई के लोगों के भरोसे की बहाली पर केंद्रित होनी चाहिए।
द काठमांडू पोस्ट, नेपाल

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