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यूनान में बेलआउट पैकेज पर जनमत संग्रह आज

यूनान और यूरोपीय जोन की अर्थव्यवस्था के लिहाज से महत्वपूर्ण जनमत संग्रह रविवार को होना है जिसमें यूनानी नागरिक यह तय करेंगे कि कठोर शर्तों के साथ मिलने वाला पश्चिमी देशों का बेलआउट पैकेज उन्हें...

यूनान में बेलआउट पैकेज पर जनमत संग्रह आज
एजेंसीSun, 05 Jul 2015 12:54 AM
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यूनान और यूरोपीय जोन की अर्थव्यवस्था के लिहाज से महत्वपूर्ण जनमत संग्रह रविवार को होना है जिसमें यूनानी नागरिक यह तय करेंगे कि कठोर शर्तों के साथ मिलने वाला पश्चिमी देशों का बेलआउट पैकेज उन्हें स्वीकार्य है या नहीं।

यदि यूनान की जनता बेलआउट पैकेज को नकार देती है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा पश्चिमी देश भी अपनी शर्तों में नरमी नहीं बरतने पर अड़े रहते हैं तो संभव है कि यूनान को यूरो मुद्रा और यूरो जोन से बाहर जाना पड़े जिसका असर पूरी यूरोपीय अर्थव्यवस्था पर दिखेगा।

यूनान के वित्त मंत्री यानिस वैरॉफकिस ने आज कहा कि इससे यूरोप को एक हजार अरब यूरो का नुकसान होगा। हालाँकि, यूरो जोन के देशो का कहना है कि इससे उन पर कोई खास असर नहीं होगा क्योंकि यह उनकी संयुक्त अर्थव्यवस्था का मात्र दो प्रतिशत है।

यूरोपीय अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल होने से भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी क्योंकि भारत के निर्यात का लगभग पाँचवाँ हिस्सा यूरोप को जाता है और आयात का छठा हिस्सा यूरोप से आता है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2013-14 में देश के 31440.53 करोड़ डॉलर के निर्यात में यूरोप का हिस्सा 5832.61 करोड़ डॉलर (18.55 प्रतिशत) तथा 45019.98 करोड़ डॉलर के आयात में यूरोप से आयात 7101.03 करोड़ डॉलर (15.77 प्रतिशत) रहा था।

यूनान पर इस समय आईएमएफ के अलावा यूरो जोन के देशों का 130 अरब यूरो का कर्ज है। आईएमएफ का कहना है कि उसे तत्काल 50 अरब यूरो के राहत कार्यक्रम की जरूरत है। आईएमएफ तथा पश्चिमी देशों में उसे 240 अरब यूरो का पैकेज देने का प्रस्ताव किया था जिसे यूनान ने खारिज कर दिया था। इसी प्रस्ताव को लेकर रविवार को जनमत संग्रह होना है और दिलचस्प बात यह है कि इस प्रस्ताव की अवधि 30 जून को ही समाप्त हो चुकी है। यानि अब जनमत संग्रह उस पैकेज को लेकर है जो वास्तव में अस्तित्व में है ही नहीं।

दरअसल 30 जून तक यूनान को आईएमएफ के कर्ज का 1.55 अरब यूरो चुकाना था। लेकिन, सरकार का कहना है कि उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह ऋण अदायगी कर सके। यूनान की सरकार और यूरोपीय देशों तथा आईएमएफ का भी मानना है कि यूनान संभवत: कभी अपना पूरा ऋण नहीं चुका सकेगा और कुछ ऋण माफ किये जाने की जरूरत है, लेकिन न तो आईएमएफ और न ही कोई यूरोपीय देश ऋण माफ करने के लिए तैयार है। यूनान को नया बेलआउट पैकेज नहीं मिल पाने की मुख्य वजह भी यही है।

एलेक्सिस सिप्रास की चरम वामपंथी सरकार का कहना है कि नया बेलआउट पैकेज देते समय ऋण का पुनर्गठन किया जाये ताकि यूनान पर बोझ कुछ कम हो सके जबकि पश्चिमी देश इसके लिए तैयार नहीं हैं। सरकार अपने रुख पर अड़ी हुई है और लोगों को यह बताने की कोशिश कर रही है कि स्थिति उतनी भी खराब नहीं है जितना यूरोपीय देश प्रचार कर रहे हैं। सिप्रास स्वयं कह चुके हैं कि लोगों का बैंकों में पड़ा पैसा पूरी तरह सुरक्षित है।

वित्त मंत्री यानिस वरॉफकिस ने भी कहा 'यह जितना ग्रीस पर असर डालेगा उतना ही यूरोप भी प्रभावित होगा, यह मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ।' उन्होंने कहा 'वे यूनान के साथ जो कर रहे हैं उसे आतंकवाद कहते हैं। उन्होंने हमें बैंक बंद करने के लिए क्यों मजबूर किया; हमारी जनता को डराने के लिए? और जब आतंक फैलाने की बात आती है तो इसे आतंकवाद कहते हैं।'

वहीं यूनान को सबसे ज्यादा ऋण देने वाले देश जर्मनी के वित्त मंत्री वूल्फगैंग शूबल ने सुझाव दिया है कि यूनान को कुछ दिनों के लिए अस्थायी तौर पर यूरो मुद्रा से अलग रखा जा सकता है। हालाँकि, उन्होंने जोर देकर कहा ''यूनान यूरो जोन का सदस्य है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वह यूरो मुद्रा के साथ रहना चाहता है या अस्थायी तौर पर इससे अलग, इसका फैसला सिर्फ यूनान की जनता को करना है। और यह स्पष्ट है कि हम जनता को मझधार में नहीं छोड़ सकते।'

जनमत संग्रह से पहले कराये गये सर्वेक्षणों के अनुसार, 41.7 प्रतिशत लोग बेलआउट पैकेज चाहते हैं जबकि 41.1 प्रतिशत लोग बेलआउट पैकेज नहीं चाहते हैं। सर्वेक्षण एजेंसियों का कहना है कि यह काफी कम अंतर है और इसे 'हाँ' या 'नहीं' किसी के पक्ष में नहीं मानना चाहिये। उनका कहना है कि नतीजे काफी करीबी होंगे।

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