फोटो गैलरी

Hindi Newsगेहूं की बौनी प्रजाति ने भारतीय कृषि की दिशा बदली

गेहूं की बौनी प्रजाति ने भारतीय कृषि की दिशा बदली

भारत में गेहूं की बौनी प्रजाति ने काफी क्रांति की है। इसने कृषि की दिशा बदलकर रख दी। वर्ष 2014-15 के दौरान इससे 90 मिलियन टन उपज हुई। इसका विकास 1970 में मैक्सिको के नार्मन बोलार्ग ने किया था।बीएचयू...

गेहूं की बौनी प्रजाति ने भारतीय कृषि की दिशा बदली
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 23 Oct 2016 06:51 PM
ऐप पर पढ़ें

भारत में गेहूं की बौनी प्रजाति ने काफी क्रांति की है। इसने कृषि की दिशा बदलकर रख दी। वर्ष 2014-15 के दौरान इससे 90 मिलियन टन उपज हुई। इसका विकास 1970 में मैक्सिको के नार्मन बोलार्ग ने किया था।

बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान में रविवार को हार्वेस्ट प्लस परियोजना के तहत आयोजित कार्यक्रम में जेनेटिक्स ऐंड प्लांट ब्रीडिंग विभाग के प्रो. वीके मिश्र ने कहा कि देश में धान की बौनी किस्म भी है और इससे किसानों को काफी लाभ मिल रहा है। हालांकि अधिक उपज वाली धान और गेहूं की फसलों का क्षेत्रफल बढ़ने के कारण दलहन, तिलहन व मोटे अनाज के लिए क्षेत्र लगातार कम होता गया। धान और गेहूं के भरपूर उत्पादन के चलते देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूती तो मिली पर किसानों के भोजन में अन्य फसलों के अभाव के कारण पोषक तत्वों की कमी हो गयी। इससे कार्यक्षमता घटी और बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास भी बाधित हुआ।

प्रो. मिश्र ने बताया कि संयुक्त राष्ट्रसंघ एवं अंतरराष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 20 करोड़ लोगों में विटामिन ए, जिंक एवं लौह तत्व की काफी कमी है। प्रत्येक चार में से एक बच्चे की लम्बाई औसत से बहुत कम है। इन्हें गर्भावस्था के दौरान ये पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। भारत में इस विकृति से प्रभावितों की संख्या मध्यप्रदेश में 60 फीसदी, झारखंड में 56.5 तथा बिहार में 55.9 फीसदी है। कार्यक्रम की अध्यक्षता चंदौली के घाटमपुर के किसान नरेंद्र कुमार ने की। प्रगतिशील महिला किसान हौसिला सिंह, प्रो. रमेशचंद्र, प्रो. जीसी मिश्र, प्रो. एसके सिंह, प्रो. सीपी श्रीवास्तव, अवधेश सिंह, लल्लन दुबे, सोनू पाठक, अजय सिंह, भागवत सिंह, मथुरा प्रसाद यादव ने भी विचार रखे। आईआईटी बीएचयू से पढ़े छात्र सोनवीर सिंह ने तकनीकी के जरिये किसानों की मदद करने की बात कही। हरवंश सिंह पिड़खिर ने आभार जताया।

खून की कमी से बाल मृत्युदर बढ़ रही

पोषक तत्वों की कमी के कारण पांच साल तक के बच्चों में खून कम हो जाता है, जिससे असमय उनकी मृत्यु हो जाती है। प्रो. मिश्र ने बताया कि एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व झारखंड में ऐसे बच्चों की संख्या काफी अधिक है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें