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आत्मशोधन के पैरोकार हैं मुक्तिबोध : ज्ञानेन्द्रपति

बीएचयू के कला संकाय और साहित्यिक पत्रिका 'परिचय' की ओर से शताब्दी वर्ष श्रृंखला के तहत बुधवार को 'मेरे हिस्से के मुक्तिबोध' विषयक गोष्ठी हुई। संकाय के एनी बेसेंट सभागार में इस अवसर पर 'परिचय' के नए...

आत्मशोधन के पैरोकार हैं मुक्तिबोध : ज्ञानेन्द्रपति
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 22 Mar 2017 08:50 PM
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बीएचयू के कला संकाय और साहित्यिक पत्रिका 'परिचय' की ओर से शताब्दी वर्ष श्रृंखला के तहत बुधवार को 'मेरे हिस्से के मुक्तिबोध' विषयक गोष्ठी हुई। संकाय के एनी बेसेंट सभागार में इस अवसर पर 'परिचय' के नए अंक का लोकार्पण हुआ।

मुख्य अतिथि कवि ज्ञानेन्द्रपति ने पोस्ट ट्रुथ की चर्चा करते हुए मुक्तिबोध को सत्योत्तर की जगह सत्यान्वेषण के समय का कवि करार दिया। बताया कि मुक्तिबोध की वैचारिक संरचना का आधार कार्ल मार्क्स और सिगमंड फ्रायड का वैचारिक चिंतन है। मुक्तिबोध आत्मशोधन के रास्ते आत्मोन्नयन की क्रिया तक पहुंचने वाले कवि हैं।

अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ आलोचक प्रो. कुमार पंकज ने मुक्तिबोध की काव्य पंक्ति ''मुक्ति अकेले में अकेले की नहीं होती, मुक्ति अकेले में अकेले नहीं मिलती" का उल्लेख करते हुए उन्हें समग्र मानवीय चिंतन के कवि के रूप में चिन्हित किया। स्वागत करते हुए कवि प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने "मेरे हिस्से के मुक्तिबोध" विषय को स्पष्ट करते हुए कहा कि हरेक पाठक अपनी चेतना के आधार पर रचनाकार की रचनात्मकता में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करता है। मुक्तिबोध आनंद की परम्परा नहीं, बल्कि आघात की परम्परा के कवि हैं। युवा कवि डॉ. रामाज्ञा शशिधर ने कहा कि एक कवि होने के नाते कई बार लगता है कि मुक्तिबोध के आत्मसंघर्ष और प्रतिबद्धता के सामने हम अपने बोलने की नैतिकता ही खो चुके हैं क्योंकि मुक्तिबोध पर बोलना उनकी प्रतिबद्धता के साथ खड़ा होना भी है। संचालन शोध छात्र शिव कुमार यादव एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अमर बहादुर सिंह ने किया।

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