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पीछे मुड़कर न देखता तो पदक पक्का था: मिल्खा सिंह

'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर 87 साल के मिल्खा सिंह का जोश और जज्बा आज भी रोम ओलपिंक में हिस्सा लेने जैसा है। वे कहते हैं कि जीवन में मैंने एक गलती की कि लक्ष्य सामने था और पीछे मुड़कर देख लिया।...

पीछे मुड़कर न देखता तो पदक पक्का था: मिल्खा सिंह
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 06 Nov 2015 08:30 PM
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'फ्लाइंग सिख' के नाम से मशहूर 87 साल के मिल्खा सिंह का जोश और जज्बा आज भी रोम ओलपिंक में हिस्सा लेने जैसा है। वे कहते हैं कि जीवन में मैंने एक गलती की कि लक्ष्य सामने था और पीछे मुड़कर देख लिया। लेकिन, नई पीढ़ी को यह सबक लेना होगा कि जब लक्ष्य आगे हो तो मुड़कर कभी मत देखना। वे रोम ओलंपिक में पदक जीतने के बेहद करीब थे, लेकिन आखिरी समय में पीछे मुड़कर देखने की एक छोटी सी चूक से वह मौका गवां बैठे।

शुक्रवार को शेमफोर्ड स्कूल के वार्षिकोत्सव में पहुंचे मिल्खा सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वे साल 1957 के बाद अब जाकर दून पहुंचे हैं। यहां बच्चों को दौड़ते देखा तो बचपन के दिन याद आ गए। उन्होंने कहा कि आजकल तो लोग सिर्फ मुझे सुनना चाहते हैं, लेकिन मुझे भाषण देने की बजाय बच्चों को दौड़ते देखना अच्छा लगता है। मिल्खा ने अफसोस जताते हुए कहा एथलेटिक्स को छोड़ भारत ने कई खेलों में ओलंपिक मेडल जीता है। लेकिन सभी खेलों की जननी 'एथलेटिक्स' में आज तक कोई पदक नहीं मिला। कहा कि, यह बड़े अफसोस की बात है कि मिल्खा, पीटी ऊषा, अंजू बॉबी जार्ज जैसे नाम पदक जीतने से चूक गए। लेकिन क्या भारत की 120 करोड़ की आबादी में पिछले 60 सालों में कोई दूसरा मिल्खा पैदा नहीं हुआ? भारत में टैलेंट की कमी नहीं है, लेकिन पता नहीं क्यों प्रतिभाएं सामने नहीं आ पातीं। हमारे समय में तो हम नंगे पैर दौड़ पड़ते थे, लेकिन आज तो सुविधाएं भी भरपूर हैं। तो क्या ऐसी स्थिति में हम ओलंपिक पदक की उम्मीद करना क्यों छोड़ दें?

खिलाड़ी और कोच पर निर्भर है रिजल्ट
मिल्खा कहते हैं कि चैंपियनशिप में पदक जीतने के लिए तीन भूमिकाएं अहम होती हैं। पहले तो खुद खिलाड़ी का वर्कआउट, दूसरा प्रशिक्षक और अंत में फेडरेशन। खिलाड़ी अगर मेहनती है तो उसके लिए बेहतर प्रशिक्षण बहुत जरूरी है। जब यह दोनों चीजें सही हैं तो फेडरेशन को चाहिए कि खिलाड़ी को सभी सुविधाएं प्रदान की जाएं और बिना किसी मतभेद के टैलेंट को दबाने की कोशिश न करें। हर टैलेंटेड खिलाड़ी का सही नियम से चयन हो। वे कहते हैं कि, एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की यह जिम्मेदारी बनती है कि कॉन्ट्रेक्ट पर कोच रखे जाएं और उनसे काम लिया जाए। प्रशिक्षकों को सख्त निर्देश दिया जाएं कि हमें पदक चाहिए फिर चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े।

मेरा रिकॉर्ड टूटा नहीं, तुड़वाया गया था
रोम ओलंपिक की 400 मीटर दौड़ को मिल्खा ने 45 सेकेंड में पूरा किया था, जो उनका बेस्ट रिकॉर्ड था। यह रिकॉर्ड काफी लंबे समय तक रहा। रिकॉर्ड टूटने की बात पर उन्होंने कहा कि मेरा रिकॉर्ड आज भी कोई नहीं तोड़ सकता, लेकिन मेरा रिकॉर्ड फेडरेशन के ही लोगों ने तुड़वा दिया था, जो मुझे बाद में पता चला। मैं आज भी यह बात कहता हूं कि यदि कोई मेरा रिकॉर्ड टाइमिंग तोड़ता है तो मैं उस धावक को पांच लाख रुपये दूंगा। यदि मर भी गया तो अपने बेटे को यह जिम्मेदारी सौंपकर जाऊंगा।

खिलाड़ी की क्षमता को पहचानना जरूरी
मिल्खा कहते हैं कि आज के समय ऐसी-ऐसी सुविधाएं हैं कि आप बच्चे का ब्लड सैंपल लेकर उसके ब्लड सेल्स पता कर सकते हैं। व्हाइट ब्लड टिशू जिसमें ज्यादा होंगे, वो अच्छा स्प्रिंटर बन सकता है, जबकि जिस व्यक्ति में रेड टिशू ज्यादा होते हैं वो व्यक्ति वॉक के लिए बेहतर रहता है। लेकिन यह चीजें पहचानना जरूरी है। बिना अपनी क्षमताओं को पहचाने कोई भी व्यक्ति किसी भी इवेंट में भाग लेता है। ऐसे में अगर पदक की उम्मीद की जाए तो यह बेवकूफी होगी।

..तो मनीष को दे देंगे इनाम
मिल्खा को जब बताया गया कि उत्तराखंड के मनीष रावत ने रियो ओलंपिक्स की 20किमी और 50किमी वॉक के लिए क्वालिफाई किया है तो उन्होंने चौंकते हुए कहा कि उत्तराखंड के सपूत ने यदि इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है तो ये काबिलेतारीफ है। उन्होंने विशेष रूप से मनीष को शुभकामनाएं दीं और कहा कि मेरी उसे सलाह है कि वह लगन और खूब मेहनत करे। यदि ओलंपिक में पदक जीतता है तो मैं मनीष को जरूर अपनी ओर से इनाम दूंगा।
 

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