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काशीनाथ सिंह ने भी लौटाया साहित्य अकादमी सम्मान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में रहनेवाले प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. काशीनाथ सिंह ने भी केंद्र सरकार के रवैये से क्षुब्ध होकर साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर दी है। उन्हें...

काशीनाथ सिंह ने भी लौटाया साहित्य अकादमी सम्मान
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 16 Oct 2015 09:42 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में रहनेवाले प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. काशीनाथ सिंह ने भी केंद्र सरकार के रवैये से क्षुब्ध होकर साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर दी है। उन्हें उनके उपन्यास 'रेहन पर रग्घू' के लिए यह प्रतिष्ठित अवार्ड 2011 में दिया गया था।

प्रो. सिंह ने बृज एन्क्लेव कॉलोनी स्थित अपने आवास पर शुक्रवार को कहा कि आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ गयी है। इसी का परिणाम रहा कि कलबुर्गी, पनसारे और दाभोलकर जैसे साहित्यकारों की हत्या कर दी गयी। असहिष्णुता की स्थिति यह है कि दादरी जैसे कांड हो रहे हैं। इसपर सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि प्रधानमंत्री ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे हैं।

उन्होंने कहा कि हाल की इन घटनाओं ने जनपक्षधर लेखकों को आहत कर दिया है। ऊपर से केंद्र के वरिष्ठ मंत्री साहित्यकारों के प्रति असम्मान जताने वाले बयान दे रहे हैं। इन्हीं सब बातों से आहत होकर मैंने सम्मान लौटाने का फैसला किया है।

प्रो. सिंह ने बताया कि यह फैसला काफी कठिन था। मैंने दो-तीन दिन तक इसपर विचार किया। जब मंत्रियों की बयानबाजी साहित्यकारों के विरुद्ध आने लगी तो मैंने फैसला कर लिया। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी एक स्वायत्त संस्था है और उसकी संरचना में एक सीमित लोकतंत्र अंतर्निहित है। यह भी खतरे में है। अकादमी को खुलकर भारतीय लोकतंत्र के संवैधानिक मूल्यों और लेखकों की स्वतंत्रता का पक्ष लेना चाहिए।

इस सवाल पर कि आपने प्रदेश सरकार या इसके तहत आने वाले पुरस्कार क्यों नहीं लौटाये, प्रो. सिंह ने कहा कि प्रदेश सरकार कम से कम बात तो सुनती है। यहां अभिव्यक्ति पर किसी तरह का कोई पहरा नहीं है। सरकार कुछ करे या न करे पर साहित्यकार अपनी बात खुलकर कह तो सकते हैं।

प्रो. सिंह ने कहा कि पिछले तीन दशक से सांप्रदायिक और फासीवादी शक्तियां भारतीय समाज और लोकतंत्र को अपने नियंत्रण में लेकर उसे अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं के अनुरूप गढ़ने में लगी हैं। यह पूछने पर कि क्या वे साहित्यकार ही पुरस्कार लौटा रहे हैं, जो किसी विशेष दल या विचारधारा से जुड़े हैं? प्रो. काशीनाथ सिंह ने कहा कि साहित्यकार किसी विचारधारा से जुड़ा हो सकता है, लेकिन साहित्य किसी दल या विचारधारा का नहीं होता। यह जनपक्षधर होता है। साहित्यकार लिखते समय जनता और समाज के प्रति जवाबदेह होता है।

साहित्य अकादमी के अलावा प्रो. सिंह को शरद जोशी सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, कथा सम्मान, राजभाषा सम्मान और भारत भारती अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

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