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इस जीत के लिए अमित शाह ने दिन-रात एक कर दिए

व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के लिए काफी अहम समझे जा रहे यूपी के चुनावों में जीत के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दिन-रात एक कर दिए थे। परिणाम बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री...

इस जीत के लिए अमित शाह ने दिन-रात एक कर दिए
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 12 Mar 2017 04:14 PM
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व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के लिए काफी अहम समझे जा रहे यूपी के चुनावों में जीत के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दिन-रात एक कर दिए थे। परिणाम बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता यदि इस प्रचंड जनादेश का सबसे बड़ा कारण बनी है तो इस छवि को घर-घर तक पहुंचाने और उसके सहारे अतिरिक्त लाभ जुटाने की शाह की रणनीति को जबरदस्त कामयाबी मिली है।

प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी के फैसले के बाद भाजपा ने उत्तर प्रदेश के चुनावों में इसके असर को आंकने के लिए नवंबर के आखिरी और दिसंबर के पहले सप्ताह में सर्वे कराया था। जिस दिन एक्जिट पोल के रुझान आ रहे थे, एक बड़े नेता ने आपसी बातचीत में यह खुलासा किया कि तब भाजपा को 48 फीसदी समर्थन मिल रहा था। यह साल 2014 के लोकसभा चुनावों में उसे मिले मत से चार फीसदी अधिक था।

शाह मान रहे थे कि चुनाव आते-आते हो सकता है इस समर्थन में कुछ कमी आए। इस समर्थन में गिरावट का मतलब बहुमत के आंकड़े में कमी भी हो सकता था और शाह यह जोखिम नहीं ले सकते थे। दिसंबर के उस पहले हफ्ते से मार्च के इस पहले सप्ताह तक शाह ने शायद ही फुर्सत की सांस ली होगी।

चरण दर चरण रणनीति पर अमल अमित शाह के नजदीकी मानते हैं कि पहले और दूसरे चरण के चुनाव में जाट समुदाय की नाराजगी से पार्टी चिंतित जरूर थी। इसकी गंभीरता को ध्यान में रखकर शाह ने खुद मोर्चा संभाला। जाट बिरादरी के प्रमुख लोगों के साथ बैठक कर उन्होंने अपने स्वभाव के विपरीत लगभग आग्रह के अंदाज में भाजपा को समर्थन देने की अपील उनसे की।

परिणाम बता रहे हैं कि उनकी यह रणनीति कामयाब रही। इसी तरह पहले और दूसरे चरण के चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को हवा देने से पार्टी ने परहेज किया। पार्टी को डर था कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इस तरह के ध्रुवीकरण का उसे नुकसान हो सकता है।

ध्रुवीकरण को जोरशोर से हवा देने की कोशिशें दूसरे चरण के बाद शुरू हुईं, जब प्रधानमंत्री ने कब्रिस्तान और श्मशान का जिक्र किया तथा शाह ने कसाब की परिभाषा बताई। दूसरे चरण के बाद ही रणनीतिक तौर पर उन्होंने यह बयान दिया कि भाजपा का मुख्य मुकाबला बसपा से है। जबकि बाकी के जिन चरणों में चुनाव होने जा रहा था वहां समाजवादी पार्टी अपेक्षतया ज्यादा मजबूत थी। इसका मुख्य मकसद मुस्लिम मतों को एकजुट न होने देना था।

पूर्वांचल इलाके में बसपा और सपा दोनों ही मजबूती से लड़ रही थीं। पीएम मोदी की इन इलाकों में सभाएं बढ़ाकर शाह ने बंटवारे से होने वाला फायदा भाजपा को मिलना सुनिश्चित किया। उन्होंने खुद दो रोड शो किए, जिनमें से एक गोरखपुर में और दूसरा इलाहाबाद में था।

दिन में तीन से पांच बार अपडेट
एक सूत्र ने बताया कि चुनावी सभा के लिए हेलीकॉप्टर पर चढ़ने से पहले और उतरने के बाद कंट्रोल रूम को फोन कर ताजा अपडेट लेना और उसके हिसाब से निर्देश देना अमित शाह का रूटीन काम था। इस चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने कोई 150 सभाएं कीं। शाह का मिशन उत्तर प्रदेश एक साल पहले शुरू हो गया था। पहली बार अपने परंपरागत वोट बैंक की नाराजगी का जोखिम उठाते हुए गैर-जाटव दलित और अति पिछड़ों को भरपूर महत्व दिया। भाजपा में यह पहली बार हुआ जब उसके 70 उम्मीदवार गैर-जाटव दलित वर्ग से थे।

एक साल से सजा रहे थे मैदान
मैदान में उतरने से पहले अमित शाह की ओर से की गई तैयारी और भी आश्चर्यचकित करने वाली है। असली रण शुरू होने के पहले भाजपा अपनी परिवर्तन यात्रा के दौरान 233 छोटी-बड़ी सभाओं जरिये राज्य के हर विधानसभा क्षेत्र से संपर्क कर चुकी थी। जातीय और समुदाय के आधार पर हर वर्ग को जोड़ने के लिए उसने 200 से अधिक पिछड़ा वर्ग सम्मेलन, डेढ़ दर्जन दलित स्वाभिमान सम्मेलन, 14 व्यापारी सम्मेलन और 100 के करीब युवा सम्मेलन किए। इन सबके पीछे शाह की करीब 90 हजार कार्यकर्ताओं की पैदल सेना थी जिसे बाकायदा प्रशिक्षण दिया गया था।

पहली बार पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ बनाया
पहली बार शाह ने 2015 में पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ बनाकर पाल व गडरिया समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व सांसद एस.पी.एस. बघेल को अध्यक्ष बनाया। प्रदेश अध्यक्ष पद पर वरिष्ठ नेताओं की दावेदारी को नजरअंदाज कर केशव मौर्य की नियुक्ति भी पिछड़ा वर्ग को संदेश देने की रणनीति में शामिल थी। राज्य में जाटव के बाद पासी समुदाय दलित वर्ग में सबसे बड़ा समुदाय है। बसपा से इस वर्ग के नेता आर.के. चौधरी को भाजपा में लाने से लेकर अपना दल की अनुप्रिया पटेल का केंद्रीय मंत्रिमंडल में महत्व बढ़ाना और राजभर समुदाय के ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन तक शाह ने ऐसा कोई दांव नहीं छोड़ा जिसमें उन्हें एक सीट का भी फायदा होने की उम्मीद दिखी।

सोशल मीडिया का भी सहारा
शाह ने अकेले लखनऊ में 38 बार मीडिया को संबोधित किया। टाउन हॉल सभा के जरिए खुद शाह करीब 74 हजार युवाओं से रुबरू हुए और उन्हें जीत का मंत्र दिया। पार्टी के पुराने लोगों को याद नहीं कि कभी किसी राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बीच चुनाव में मंडल कार्यकर्ताओं से सीधे बात कर उन्हें निर्देश दिए हों। प्रधानमंत्री मोदी की छवि और मोदी सरकार के काम का प्रचार करने तथा विरोधियों की बखिया उधेड़ने के लिए पार्टी ने सोशल मीडिया का भी जमकर सहारा लिया। दस हजार से अधिक व्हाट्सएप ग्रुप पर 15 लाख लोगों से संपर्क, ट्विटर पर 40 हजार और फेसबुक पर 40 लाख फॉलोअर ने शाह का काम आसान किया।

 

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