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कच्चा दूध पीया तो टीबी से लेकर गर्भपात का खतरा

दूध या दूध से बने पदार्थ भले ही स्वास्थ्य वर्धक व पौष्टिक की श्रेणी में आते हो पर यह कच्चा हुआ तो जानलेवा हो जाएगा। कच्चा दूध, कच्चा पनीर, अपाश्चयुरीकृत क्रीम, मलाई खाने से आपको टीबी, ब्रूसेल्लोसिस,...

कच्चा दूध पीया तो टीबी से लेकर गर्भपात का खतरा
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 06 Jul 2016 01:46 PM
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दूध या दूध से बने पदार्थ भले ही स्वास्थ्य वर्धक व पौष्टिक की श्रेणी में आते हो पर यह कच्चा हुआ तो जानलेवा हो जाएगा। कच्चा दूध, कच्चा पनीर, अपाश्चयुरीकृत क्रीम, मलाई खाने से आपको टीबी, ब्रूसेल्लोसिस, क्यू फीवर और लिस्टिरियोसिस जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। जूनोसिस बीमारियों से बचाव को लेकर आईवीआरआई ने विश्व जूनोसिस दिवस पर हेल्थ एडवाइजरी जारी की है।

वैज्ञानिकों की माने तो कच्चा दूध से तैयार कुल्फी, पेस्ट्री, केक, आइसक्रीम, क्रीम रोल, मिठाई भी उतनी ही खतरनाक है जितना कच्चा दूध। इससे मनुष्यों में न केवल संक्रमण के कारण उल्टी, दस्त व बुखार होता है बल्कि वह जूनोसिस बीमारियों की चपेट में आ सकता है। संक्रमित गाय-भैंस का कच्चा दूध पीने से मनुष्यों को बुसेल्लोसिस या टीबी तक हो सकती है। गर्भवती महिलाओं के लिए तो गर्भपात का भी खतरा है। 

क्या है जूनोसिस बीमारियां
रोगी पशुओं व मनुष्यों से स्वस्थ पशुओं व मनुष्यों में फैलने वाले संचारी रोगों को अंग्रेजी में जूनोसिस कहते हैं। इसे पशु-जनित व पशुजन्य रोग भी कहते हैं। संक्रामक रोग बीमार पशु-पक्षियों व मनुष्यों के सीधे या अप्रत्यक्ष सम्पर्क में आने, स्रावों से प्रदूषित जल व आहार लेने, इनसे प्रदूषित वायु में सांस लेने से, रोगी पशुओं द्वारा खरोंचे अथवा काटे जाने पर, संक्रमित कीट पतंगों के काटने से, पशु-पक्षियों के अनुचित प्रजनन व प्रबंधन, गन्दे घरों व बाडों में मक्खियों, चूहों, काकरोच, व छिपकली से मनुष्यों व पशुओं में फैलते है। 

यह है जूनोसिस बीमारियां
वायरस से फैलने वाली बीमारियों में रेबीज, बर्ड फ्लू, स्वाइनफ्लू, जापानी मस्तिष्क ज्वर, क्रिमियन कोंगो रक्तस्रावी ज्वर, क्यासानूर फोरेस्ट रोग है। जीवाणुओं से एन्थ्रेक्स, लेप्टोस्पाइरोसिस, ब्रुसेल्लोसिस या ब्रुसेल्ला संक्रमण, टीबी, क्यू फीवर, साल्मोनिल्ला, कैम्पाइलोबैक्टर लिस्टीरिया, लैप्टोस्पाइरोसिस, लीशमैनियासिस, ईकोलाई तथा परजीवी द्वारा फैलने वाले टीनियेसिस, इकाइनोकोक्कोसिस, टाक्सोप्लाज्मोसिस, टाक्सोकैरा, व अमीबियेसिस हैं। 

हर साल छह जुलाई को मनाया जाता है दिवस
बरेली। विश्व जूनोसिस दिवस हर साल 6 जुलाई को प्रसिद्व फ्रांसीसी रसायनज्ञ और वैज्ञानिक लुई पाष्चर द्वारा पहला सफल रैबीज टीकाकरण करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। उनके द्वारा पहले सफल रैबीज टीके की खोज के बाद जूनोसिस बीमारियों के खतरे से आगाह करते हुए मनाया जाता है।

पशुओं की सेवा में लापरवाही से हो जाएंगे बीमार
आईवीआरआई के पशुजन स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एसवीएस मलिक कहते हैं कि पशुओं के ज्यादा संपर्क में रहने वाले जूनोसिस बीमारियों की चपेट में सबसे ज्यादा आते हैं। किसान व पशुपालक पशुओं के हमेशा संपर्क में रहते हैं। चारे-पानी व दाने की व्यवस्था, नहलाने तथा बाड़े की साफ-सफाई, गर्भावस्था में मादा पशुओं व जन्म के समय नवजात पशुओं की देखभाल करते समय, उनके साथ एक ही छत के नीचे रहने व सोते समय। ऐसे समयों पर इस बात की अधिक संभावना बनी रहती है। साफ सफाई और उबले तक पाश्युरीकृत दूध या उससे बने उत्पादों का सेवन करने से ही जूनोसिस बीमारियों से बचा जा सकता है।

जूनोसिस बीमारियों की स्थिति
मनुष्यों के कुल रोग           1415
पशुओं से होने वाले रोग        868
कुल उभरते संक्रामक रोग       175
उभरते हुए पशु जनित रोग       132

बैक्टिरिया फैलाते हैं सबसे ज्यादा जूनोसिस बीमारियां
जूनोसिस बीमारियां फैलाने में सबसे ज्यादा भूमिका बैक्टिरिया की है। 538 तरह के बैक्टीरिया, 307 फफूंद, 287 कृमि, 217 वायरस, और 66 प्रकार के प्रोटोजोआ पशु जनित बीमारियां इंसानों में होती है।
 

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