चुनाव से पहले अलग ही नजारा दिखता है यूपी के इस शहर का
आजादी के फौरन बाद और उसके आगे कई चुनावों तक मतदान वाले दिन उत्सव सा माहौल रहा करता था। पहले चुनाव में तो तमाम लोग अगरबत्ती और रोली लेकर मतदान करने गए थे। उनके लिए वोट देना मानों पूजा करने जैसा था।...
आजादी के फौरन बाद और उसके आगे कई चुनावों तक मतदान वाले दिन उत्सव सा माहौल रहा करता था। पहले चुनाव में तो तमाम लोग अगरबत्ती और रोली लेकर मतदान करने गए थे। उनके लिए वोट देना मानों पूजा करने जैसा था। महिलाएं भी वोट देने आती थीं।
महिलाओं को प्रेरित भी खूब किया जाता था। बाकायदा गिनती होती थी कि किस गांव या सूबे से कितनी महिलाओं ने मतदान किया। इलाके के पढ़े लिखे युवा यह जिम्मेदारी उठाते। जो महिलाएं मतदान के लिए नहीं आतीं उनको आगे के लिए जागरूक किया जाता।
प्रत्याशी भी ज्यादा हल्ला-गुल्ला नहीं करते थे। सादगी से आते, प्रचार करते और चले जाते। खुद पंडित नेहरू टे्रन से इलाहाबाद आए थे। अपने क्षेत्र के साथ साथ पूरे शहर का चक्कर उन्होंने लगाया।
बाद के चुनावों की बात करें तो भी प्रत्याशियों की सादगी देखते बनती थी। मंत्री स्तर के प्रत्याशी भी चाय के ढाबों पर बैठ बतकही करते नजर आते। मनमुटाव भी तब इतना तगड़ा नहीं हुआ करता था। सभी दलों के प्रत्याशी साथ साथ लाई चना खाते, बतियाते और हंसते बोलते घर चले जाते।