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इलाहाबाद में खुद की कमाई से पति को एमबीए करा रहीं इसरावती

इलाहाबाद में बदलाव की बयार शुरू हो गई है। आजीविका मिशन के जरिए स्वयं सहायता समूह बनाने वाली महिलाओं ने खुद कमाई शुरू की है। खुद पढ़ रही हैं और अपने पतियों को भी ऊंचे दर्जे की पढ़ाई करानी शुरू कर दी है।...

इलाहाबाद में खुद की कमाई से पति को एमबीए करा रहीं इसरावती
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 13 Jul 2016 11:52 PM
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इलाहाबाद में बदलाव की बयार शुरू हो गई है। आजीविका मिशन के जरिए स्वयं सहायता समूह बनाने वाली महिलाओं ने खुद कमाई शुरू की है। खुद पढ़ रही हैं और अपने पतियों को भी ऊंचे दर्जे की पढ़ाई करानी शुरू कर दी है। खजुरी गांव की 20 साल की इसरावती ने खुद ग्रेजुएशन में दाखिला लिया है और पति को एमबीए में दाखिला दिलाया है। बदलाव के ऐसे उदाहरण जिले के कई गांवों में दिखाई पड़ रहे हैं।

राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं के लिए बेहतर स्थितियां पैदा करने के लिए यूपी और बिहार के राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने साझा कोशिश शुरू की है। दोनों के सहयोग से जिले के सबसे पिछड़े ब्लाक कोरांव में 554 स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं। इन समूहों से जुड़ते ही महिलाएं देहरी से निकलकर दुनिया में अपना परचम लहराने के हौसले से भर गई हैं।

क्या करते हैं ये समूह
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत ग्रामीण महिलाओं को गांव में ही छोटे-छोटे रोजगार की ट्रेनिंग और 15 हजार रुपए की सहायता देकर कामकाजी समूह बनाए गए हैं। जिले में अभी तक ऐसे 554 समूह बन चुके हैं जिससे साढ़े छह हजार परिवार जुड़े हैं। इस दिनों कोरांव व बहरिया ब्लाक के गांवों में बिहार में यह काम सीख चुकी महिलाओं की छह टीमें इलाहाबाद की महिलाओं को काम सिखाने में जुटी हैं।

क्या काम करती हैं महिलाएं
यह समूह धान पैदा करने, झाड़ू, गांव में सफाई के काम करते हैं। समूह से जुड़ी महिलाएं दूध उत्पादन, दूध से बने अन्य उत्पाद बेचने का काम करती हैं। कस्बों में भोजन बनाकर कर्मचारियों और विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध कराती हैं। ऐसे कामों के लिए उन्हें आजीविका मिशन धन उपलब्ध कराता है और वह रोजगार को बढ़ाने में लगी हैं।

बदलाव की वाहक हैं ये महिलाएं
खिवली कला की 35 साल की कुसुमकली। छठवीं पास हैं। कुसुमकली के पास 10 बिसवा जमीन है, उसमें श्रीविधि से धान का उत्पादन करने में जुटी हैं। इससे छह हजार रुपए महीने की कमाई है।

खजुरी की इसरावती। 20 साल की इसरावती ग्रेजुएशन की छात्रा है। स्वयं सहायता समूह का संचालन करती हैं और समूह से 40 हजार रुपए की मदद लेकर अपने पति दीपक कुमार को एमबीए करा रही हैं।

मैलहा की हसीन बानो समूह से 2500 रुपए लेकर गांव में चूड़ी बेचती हैं। समूह में साक्षर हुई। कास्मेटिक का काम शुरू किया। आज लगभग 1 लाख कीमत की दुकान हो गई है। सबसे पहले अपने यहां शौचालय बनवाया। हसीना बानो स्वयं सहायता समूह की मदद से गांव में स्वच्छता अभियान चलाने के लिए पिछले वर्ष सीएम द्वारा सम्मानित  की गई थीं।

कुछ और भी नाम हैं...
पोसवारा की राजलक्ष्मी समूह की मदद से किराने की दुकान चलाती हैं।
खिवली कला की सुशीला फार्म मशीनरी बैंक का संचालन करती हैं।
बसहरा की सुनीता सरोज देवी झाड़ू बनाकर 6000 रुपए महीने कमा रही हैं।
खीरी गांव की संगीता ने पति को दुकान खुलवाई है और खुद सिलाई करती हैं।
खजुरी की खुशबू बड़ौदा उप्र ग्रामीण बैंक के सामने होटल चला रही हैं।


 


 

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