आगरा विकास प्राधिकरण की जमीन पर गेहूं घोटाला
सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट इनर रिंग रोड के आसपास काफी गड़बड़झाला हुआ है। रिंग रोड के सहारे टाउनशिप के नाम पर जो जमीन अधिग्रहण हुआ, पहले तो अफसरों ने उसमें खेल किया। उसके बाद भी ये सिलसिला थमा नहीं...
सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट इनर रिंग रोड के आसपास काफी गड़बड़झाला हुआ है। रिंग रोड के सहारे टाउनशिप के नाम पर जो जमीन अधिग्रहण हुआ, पहले तो अफसरों ने उसमें खेल किया। उसके बाद भी ये सिलसिला थमा नहीं है।
किसानों को पैसा देने के बाद जो जमीन सरकारी हो गई उस पर पांच सालों से सैकड़ों कुंटल गेहूं पैदा होता रहा है। सवाल यह है कि सरकारी जमीन पर आखिर यह खेती कौन कर रहा है।
बसपा शासन में इनर रिंग रोड और टाउनशिप के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया था। टाउनशिप के नाम पर वर्ष 2011 में ली गई जमीन करीब 89 हेक्टेअर है। यानि करीब 400 बीघा। इस जमीन के अधिग्रहण में पहले कई अफसरों ने अपने रिश्तेदारों व करीबियों के नाम से जमीन खरीदीं।
फिर ज्यादा मुआवजा पाने के लिए भी गड़बड़ी की गई। खैर, उसके बाद जमीन एडीए की हो गई, लेकिन गड़बड़ी फिर भी न रुकी। आपके अखबार ‘हिन्दुस्तान’ ने हाल ही में रिंग रोड से सटी इस जमीन पर करोड़ों रुपये के मिट्टी घोटाले का खुलासा किया था।
मिट्टी के साथ ही यहां गेहूं घोटाला भी हुआ। बीते पांच सालों से लोग इस सरकारी जमीन पर धड़ल्ले से खेती कर रहे हैं। यह हाल तब है जबकि एडीए और तहसील का स्टाफ बीते तीन-चार साल से इसी इलाके में लगातार सक्रिय है।
आधे-आधे में बनी बात
सरकारी जमीन पर खेती यूं ही नहीं हुई। इसमें मिलीभगत का खेल है। सरकारी लोगों को आंखें मूंदने की कीमत दी गई है। क्षेत्रीय लोगों में चर्चा है कि हर साल खेती से होने वाली कमाई आधी-आधी बांटी गई। दो दिन पूर्व जब एडीए सचिव अवध नरायन मौके पर पहुंचे थे तो वे भी एडीए की जमीन पर मिट्टी और खेती का खेल देख चौंक उठे थे। उन्होंने इस संबंध में एडीए के अमीन से पूछताछ भी की लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
तमाम गरीबों का भरता पेट
सरकारी जमीन पर पैदा हुए गेहूं का बंदरबाट हो गया। हर साल इस जमीन पर करीब साढ़े छह हजार टन गेहूं पैदा हुआ। इतने गेहूं से तमाम गरीबों का पेट भर सकता था। इस खेल में न सरकार को कुछ मिला और न किसी गरीब को।
क्या बोले अफसर
एसडीएम सदर एमपी सिंह ने बताया कि इनर रिंग रोड के पास अधिग्रहीत जमीन पर सालों से लगातार खेती होने की बात वाकई चौंकाने वाली है। एडीए की ओर से कभी भी इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की गई, नहीं तो फसल जब्त कर ली जाती। ये जांच का विषय है