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सभी को है मुजफ्फरनगर मॉड्यूल का आसरा

सितंबर 2013 का दंगा मुजफ्फरनगर के इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज है। सबसे ज्यादा लंबे समय तक चलने वाले इस दंगे ने मुजफ्फरनगर के साथ-साथ पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को बदलकर...

सभी को है मुजफ्फरनगर मॉड्यूल का आसरा
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 18 Jan 2017 12:20 PM
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सितंबर 2013 का दंगा मुजफ्फरनगर के इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज है। सबसे ज्यादा लंबे समय तक चलने वाले इस दंगे ने मुजफ्फरनगर के साथ-साथ पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को बदलकर रख दिया।

स्थिति यह रही कि 2012 में मुजफ्फरनगर में एक भी विधानसभा सीट नहीं जीतने वाली भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर के साथ-साथ कैराना, सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ और गढ़ बागपत में भी जीत का परचम लहराया। कहने की जरूरत नहीं कि दंगे ने जाट और मुस्लिम बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोटों का ध्रुवीकरण करा दिया था। राजनीतिक विश्लेषक इसे मुजफ्फरनगर मॉड्यूल का नाम देते हैं।

सभी राजनीतिक दलों को लग रहा है कि 2014 के बाद अब होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर माड्यूल असर दिखाएगा। यही वजह है कि भाजपा ने दंगे के आरोपी और मौजूदा विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा को फिर प्रत्याशी बनाया है। 

वहीं बसपा सबसे पहले उम्मीदवारों की सूची जारी करके और मुस्लिमों को अधिक संख्या में टिकट देकर सोशल इंजीनियरिंग के सहारे भाजपा को चुनौती देने के लिए कमर कस चुकी है। पश्चिमी यूपी की सीटों पर बसपा ने दो दर्जन के करीब मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। सपा में रार के बीच अखिलेश यादव की तरफ से जारी सूची में भी 26 नाम मुसलिमों के थे। कुल मिलाकर सपा-बसपा दोनों ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेला है।

जात पात छोड़ सब मुद्दे गौण

चुनाव से पहले सारे राजनीतिक दल विकास के बड़े-बड़े दावे करते हैं पर गन्ना किसान या किसान उनके लिए वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं। खेती के लिए पानी, बीच, खाद-बिजली सब मुद्दे अचानक गौण हो जाते हैं या किए जाते हैं ताकि बात हो तो सिर्फ जात-पांत की। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर में संजीव बालियान की चार लाख से अधिक मतों से जीत को मुजफ्फरनगर मॉड्यूल से ही जोड़कर देखा जाता है। वहीं दंगे से पहले शामली जिले की कैराना विधानसभा सीट से हुकुम सिंह जीते थे जो 2014 में वहां से सांसद बने। सुरेश राणा 2012 के चुनाव में थानाभवन से जीते थे। 

कैराना का मुद्दा बनाया 

कैराना से पलायन का मुद्दा उठाकर हुकुम सिंह भी मुजफ्फरनगर माड्यूल को ही धार देते रहे हैं। भाजपा ने दंगे के समय हिंसा के आरोप में रासुका में निरुद्ध किए गए विक्रम सैनी को खतौली से, दंगों में नामजद हुए उमेश मलिक को बुढ़ाना से उम्मीदवार बताया है। मुजफ्फरनगर शहर सीट से भाजपा उम्मीदवार कपिल देव भी पंचायत में भाग लेने के नामजद आरोपी है। शामली जिले की थानाभवन सीट से सुरेश राणा को उम्मीदवार बनाया गया है जो रासुका में निरुद्ध हुए थे। मेरठ जिले की सरधना विधानसभआ से इसी कड़ी का अगला नाम संगीत सोम है।

बसपा भी पीछे नहीं 

बसपा ने भी दंगे के आरोपियों पर ही भरोसा किया है। दंगे के समय खालापार में हुई मुस्लिमों की रैली में नामजद रहे विधायक नूरसलीम राना को चरथावल से बसपा से प्रत्याशी बनाया है। सांसद कादिर राना की पत्नी सैयदा राना को भी बुढ़ाना से टिकट मिली है। राना दंगे के समय रैली में अपने भाषणा को लेकर चर्चित हुए और उनके खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया था। नवाजिश आलम को बसपा से मीरापुर का टिकट मिला है। अब देखना है कि बदले राजनीतिक हालात में प्रत्याशी चयन को लेकर सपा और उनके गठबंधन के सहयोगियों की रणनीति क्या रहती है।

पहले चरण की सभी सीटों पर पड़ेगा असर 

पिछले कुछ महीनों के दौरान मुजफ्फरनगर दंगों के अलावा कैराना, बिसाहड़ा, लव जेहाद जैसे मुद्दे छाए हुए हैं। पहले चरण में 11 फरवरी को 15 जिलों की 73 सीटों पर मतदान होना है। इसमें मुजफ्फरनगर मॉड्यूल का खासा असर पड़ने की संभावना है। 

किसके खाते में कितनी सीटें 

सपा 24
बसपा 24
कांग्रेस + 14
भाजपा 11

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