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यूपी में राजनीतिक पार्टियों की रणनीति में दिख रही है बिहार की छाप

उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में दल और हालात बिहार से अलग जरूर हैं, लेकिन लड़ाई में बिहार का अनुभव साफ दिखाई दे रहा है। बिहार की हार से सबक लेकर भाजपा ने अगर अपनी रणनीति में बदलाव किया है तो बिहार...

यूपी में राजनीतिक पार्टियों की रणनीति में दिख रही है बिहार की छाप
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 07 Feb 2017 11:20 AM
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उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में दल और हालात बिहार से अलग जरूर हैं, लेकिन लड़ाई में बिहार का अनुभव साफ दिखाई दे रहा है। बिहार की हार से सबक लेकर भाजपा ने अगर अपनी रणनीति में बदलाव किया है तो बिहार में महागठबंधन की जीत से अपनी प्रासंगिकता साबित कर चुके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भाजपा को घेरने के लिए बिहार की तर्ज पर ही व्यूह रचना कर रहे हैं। 

सपा-कांग्रेस के बीच गठबंधन से लेकर राहुल गांधी और अखिलेश यादव की संयुक्त रैलियां व रोड शो इस रणनीति का हिस्सा हैं। कुछ बदलाव हैं तो वह यह कि बिहार में महागठबंधन के नेताओं सोनिया गांधी, नीतीश कुमार व लालू यादव ने केवल एक संयुक्त रैली में हिस्सा लिया था और यूपी में राहुल गांधी व अखिलेश यादव लगातार संयुक्त रैली व रोड शो कर रहे हैं। 

भाजपा का भरोसा : भाजपा ने बिहार में किसी को भी नेता प्रोजेक्ट नहीं किया। यूपी में भी उसने चेहरा आगे करने से परहेज किया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर ही वोट मांग रही है। लेकिन प्रदेश नेतृत्व को बिहार की तुलना में अधिक महत्व मिल रहा है। मोदी व शाह के साथ राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, आदित्यनाथ, उमा भारती व केशव मौर्य भी पार्टी के पोस्टर पर हैं। अति पिछड़ा व दलित वर्ग का समर्थन लेने के लिए भाजपा ने बिहार में अपने सहयोगी दलों पर ज्यादा भरोसा किया।

यूपी में उसका सबसे ज्यादा जोर अति पिछड़ा वर्ग पर ही है। बिहार में भाजपा का अधिक जोर विकास के साथ सभी सामाजिक समीकरणों को साधने पर था। मुस्लिम समुदाय को साथ लेने की भी कोशिश भाजपा ने की। विकास के लिए लोगों ने नीतीश कुमार पर ज्यादा भरोसा किया और सामाजिक समीकरण आरक्षण पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान से ध्वस्त हो गए। 

यूपी में पार्टी पूरी तरह सामाजिक समीकरणों के भरोसे है। एक भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाया और पीएम भी अपने भाषणों को पाकिस्तान के बहाने सांप्रदायिक बनाते दिख रहे हैं।

प्रशांत किशोर का चक्रव्यूह

यूपी में बिहार की तरह महागठबंधन नहीं बना, लेकिन प्रशांत किशोर और सपा-कांग्रेस के रणनीतिकार बिहार की तर्ज पर इस गठबंधन को बेहतर विकल्प साबित करने में जुट गए हैं। यूपी के लड़के (अखिलेश यादव और राहुल गांधी) बनाम बाहरी (नरेंद्र मोदी और अमित शाह) बिहार की तर्ज पर ही तैयार किया गया नारा है। 

चुनाव से पहले तक समाजवादी पार्टी और कांग्रेस एक दूसरे को कोस रहे थे। ठीक उसी तरह जैसे बिहार में लालू यादव और नीतीश कुमार भी चुनाव से पहले एक दूसरे पर लगातार आरोप लगा रहे थे। कार्यकर्ताओं व आम मतदाता के मन से उस छवि को हटाने के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अधिक से अधिक रैली व रोड शो की योजना बनाई गई है। 

रैली व रोड शो में दोनों अपने हाव भाव व भाषणों से संदेश दे रहे हैं कि दोस्ती पुरानी है और आगे भी रहेगी। ठीक बिहार की तर्ज पर ही प्रधानमंत्री के सवालों पर हाथ के हाथ के उसी दिन जवाब भी अखिेलश व राहुल की ओर से दिए जा रहे हैं। इसके लिए व्यापक स्तर पर रणनीति बनाई जा रही है।

बिहार में विधानसभा चुनाव के दौरान तीसरा खेमा भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल (जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और रामविलास पासवान) ही बने हुए थे। उत्तर प्रदेश में तीसरी ताकत के तौर पर बहुजन समाज पार्टी मौजूद है। बसपा ने सोशल मीडिया में प्रचार की अपनी रणनीति में बदलाव किया है, लेकिन तीनों ताकतों में अभी भी वह अकेली पार्टी है जो अपनी जांची परखी परंपरागत तरीके की रणनीति पर काम कर रही है।

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