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वंचना की पीड़ा

केशव रेड्डी आधुनिक तेलुगू साहित्य के प्रतिनिधि लेखक हैं। अपने लघु उपन्यासों के लिए वह विशेष रूप से जाने जाते हैं, जिनमें प्राय: दलित-अभावग्रस्त जीवन की पीड़ा अभिव्यक्त हुई है। प्रस्तुत उपन्यास भी ऐसा...

वंचना की पीड़ा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 30 Jul 2016 11:38 PM
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केशव रेड्डी आधुनिक तेलुगू साहित्य के प्रतिनिधि लेखक हैं। अपने लघु उपन्यासों के लिए वह विशेष रूप से जाने जाते हैं, जिनमें प्राय: दलित-अभावग्रस्त जीवन की पीड़ा अभिव्यक्त हुई है। प्रस्तुत उपन्यास भी ऐसा ही है। इसमें आंध्र क्षेत्र के यानादी समुदाय की कठिन जीवन स्थितियों का चित्रण हुआ है। यानादी बंजारों जैसी घुमंतू जाति है। उन्हें अंग्रेजी शासन में अपराधी घोषित कर दिया गया था। रेड्डी ने इन्हीं यानादियों के जीवन संघर्ष को बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक के कालखंड की पृष्ठभूमि में चित्रित किया है। उपन्यास बतलाता है कि वह जाति अपराधी नहीं है, जिसे जन्म से कलंकित कर दिया गया है, बल्कि वह तंत्र वास्तविक अपराधी है, जो ऐसा करता है। इसका तेलुगू से अनुवाद जे.एल. रेड्डी और सुरेश द्विवेदी ने किया है। दागी तिकोन, केशव रेड्डी, परमेश्वरी प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 160 रुपये।

अपनी नजर से
वरिष्ठ लेखिका रमणिका गुप्ता की आत्मकथा है- आपहुदरी। उन्होंने स्वयं इसकी प्रस्तावना में बताया है कि इसमें उनके कई रूपों से पाठकों का सामना होगा। उनका यह कथन महत्वपूर्ण है- ‘नदी को न पत्थर बेध सकते हैं, न बोध। नदी तब तक खत्म नहीं हो सकती, जब तक उसका पानी का स्रोत खत्म नहीं हो जाता। और मैंने अपने भीतर की स्त्री के स्रोत को कभी खत्म नहीं होने दिया।’ रमणिका सियासत में भी सक्रिय रही हैं और साहित्य-सृजन में भी। विद्रोह उनके स्वभाव में रहा है। आपहुदरी में उनकी ये विशेषताएं सहज देखी जा सकती हैं। यह उनकी आत्मकथा की दूसरी कड़ी है। पहली कड़ी ‘हादसे’ पहले छप चुकी है। उन्हीं के शब्दों में आपहुदरी में उन्होंने अपने निजी जीवन और संघर्ष के सच को स्त्री दृष्टि की कसौटी पर प्रस्तुत करने की कोशिश की है। इसमें उनके बचपन से लेकर धनबाद पहुंचने तक की कथा है। एक अहम प्रश्न इसमें स्त्री की प्रेम करने की स्वतंत्रता और उसकी अपनी शुचिता का है। आपहुदरी, रमणिका गुप्ता, सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली, मूल्य- 795 रुपये।

आरक्षण का प्रश्न
जाति भारतीय समाज की विकट समस्या है। जाति आधारित व्यवस्था में भेदभाव के शिकार बने लोगों को आगे बढ़ाने के लिए संविधान के तहत अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई। आज आरक्षण के औचित्य को लेकर वाद-विवाद होते हैं। यह सवाल भी उठाया जाता है कि आरक्षण का आधार जाति की बजाय आर्थिक क्यों नहीं होना चाहिए? इन संदर्भों को ध्यान में रखते हुए रमेश चंदर ने अपनी पुस्तक में उन परिस्थितियों का जिक्र किया है, जिन्होंने हमारे संविधान निर्माताओं को आरक्षण व्यवस्था निर्मित करने को विवश किया। पुस्तक दिल्ली पर केंद्रित है, लेकिन यह भारतीय समाज के जाति आधारित ढांचे और उसकी समस्याओं को समझने के लिहाज से उपयोगी है। इसमें जाति और आरक्षण से संबंधित ऐतिहासिक जानकारी के अलावा इससे संबंधित कई तकनीकी पहलुओं का भी जिक्र है।
दिल्ली की अनुसूचित जातियां व आरक्षण व्यवस्था, रमेश चंदर, विद्या विकास एकेडमी, नई दिल्ली, मूल्य- 250 रुपये।

शिव कथा
हिंदू देव मंडल में शिव का अप्रतिम स्थान है। शास्त्र और लोक, दोनों में उनके बारे में अनगिनत कहानियां मिलती हैं, जिनमें कहीं तो वे सर्व संहारक हैं तो कहीं वे सौम्य कल्याणकारी। शिव महापुराण में उनकी अनेक कहानियां वर्णित हैं, जिनमें से कुछ कथाओं को चुन कर इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। इसमें शिव के अनेक अवतारों की चर्चा की गई है। शिव का एक रूप योगी का है, लेकिन उनका एक रूप गृहस्थ अथवा पारिवारिक का भी है। पुस्तक में उनके इन दोनों रूपों की व्याख्या की गई है तथा दुर्गा, शक्ति, सती, पार्वती तथा उनके पुत्रों गणेश तथा कार्तिकेय से उनके संबंधों का गूढ़ार्थ स्पष्ट किया गया है। लेखिका का मानना है कि जिन्हें भगवान कहा जाता है, वह परमपुरुष से अभिन्न है। वह व्यक्ति नहीं, बल्कि आद्य रूप ही होता है, लेकिन वह कोई भी रूप धारण कर सकता है। वे शिव को भी इसी दृष्टि से देखती हैं।
श्री शिव लीला, वनमाली, अंग्रेजी से अनुवाद- मदन सोनी, मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल, मूल्य- 195 रुपये।

 

 

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