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लंबे सफर के शुरुआती पड़ाव

वादे बेशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खाते में जाते हों, लेकिन उनके पूरा होने या न होने की जिम्मेदारी से भाजपा सांसद बच नहीं सकते। तो आइए क्यों न हिन्दी पट्टी के राज्यों के चुनिंदा सांसदों से ही...

लंबे सफर के शुरुआती पड़ाव
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 14 May 2015 12:42 AM
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वादे बेशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खाते में जाते हों, लेकिन उनके पूरा होने या न होने की जिम्मेदारी से भाजपा सांसद बच नहीं सकते। तो आइए क्यों न हिन्दी पट्टी के राज्यों के चुनिंदा सांसदों से ही सुनें कि आखिर एक साल में कहां तक पहुंचा है वादों का सफर। हिन्दुस्तान के लिए रामनारायण श्रीवास्तव ने जब कुछ सांसदों से बातचीत की तो कमोबेश उन सबका यही कहना था कि अभी तो एक साल हुआ है। काम हो रहा है। आगाज अच्छा है तो जाहिर है कि अंजाम भी अच्छा ही होगा। लेकिन कांग्रेस नुमाइंदों का कहना है कि काम कुछ नहीं हुआ। यानी पड़ाव दर पड़ाव लंबे रास्ते का सफर जारी है।


एक साल में सर्वांगीण विकास 

योगी आदित्यनाथ, सांसद, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
मोदी सरकार का एक वर्ष का कार्यकाल उल्लेखनीय व विकासपरक है। दुनिया में भारत की साख और धाक दोनों बढ़ी है। आर्थिक मजबूती मिली। महंगाई काबू में आई। सामाजिक सुरक्षा की अहम योजनाएं लागू की गईं। यह समग्र विकास की दिशा में चलने वाली सरकार है। सकारात्मक परिणाम जल्द दिखेंगे।
क्षेत्र में उपलब्धियां
- स्वास्थ्य के क्षेत्र में एम्स मिला है
- बीआरडी मेडिकल कॉलेज के उन्नयन के लिए 150 करोड़ रुपये मंजूर
- शारीरिक व मानसिक पुनर्वास केंद्र को मंजूरी मिली
- गोरखपुर में नए बाईपास के लिए 300 करोड़ रुपये

बंद हुई बिचौलियों की दुकानें

कीर्ति आजाद, सांसद, दरभंगा (बिहार)
प्रधानमंत्री मोदी ने एक साल में किसानों, गरीबों व आम आदमी की जो चिंता की है, उसे बिहार की जनता भी देख रही है। चुनाव से पहले किए गए हर वादे पर अमल किया जा रहा है। बिचौलियों की दुकानें बंद हो गई हैं। सरकार का जनता से सीधा संवाद है। पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत राजीव गांधी ने गरीबों तक एक रुपये में 15 पैसा पहुंचने की बात भर की थी। मोदी सरकार ने गरीबों व आम आदमी तक पूरा पैसा सीधे पहुंचाया है।

क्षेत्र में कामकाज
- दरभंगा तक केंद्र की विकास योजनाएं पहुंची हैं।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना का ग्रामीण क्षेत्रों में असर है।
- केंद्र की कई योजनाएं राज्य सरकार के जरिये चलती हैं। राज्य की सुस्ती की वजह से तेजी से काम नहीं हो रहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साठ साल से स्थापित सत्ता की संस्कृति को पूरी तरह बदल दिया है। हालांकि इससे कुछ लोगों को दिक्कतें होंगी, लेकिन यह बदलाव देश व जनता के हित में है। इसका परिणाम सार्थक होगा।
प्रह्लाद पटेल, सांसद, दमोह (मध्य प्रदेश)

यह गरीबों की सरकार

मीनाक्षी लेखी, सांसद, नई दिल्ली
सही मायनों में यह गरीबों की सरकार है। जिन्हें समाज भी छोड़ देता है, सरकार ने उनकी सुध ली है। आम जन के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं। इसके दूरगामी परिणाम जल्दी ही सामने आएंगे।

क्षेत्र की उपलब्धियां
- पीडब्लूडी के अंडर प्लान के साथ सीपीडब्लूडी की योजनाएं चल रही हैं
- सांसद निधि से मोबाइल अस्पताल के लिए ढाई करोड़ रुपये जारी कराए, अभी क्रियान्वयन बाकी
- राहगीरी शुरू करने के साथ आरडब्लूए के साथ भी काम पर जोर
- आदर्श ग्राम योजना के तहत भी तेजी से काम हो रहा है

अंतिम छोर तक पहुंची सरकार

डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, सांसद, हरिद्वार (उत्तराखंड)
यह पहली सरकार है, जो अंतिम छोर तक पहुंची है। गरीबों और किसानों के लिए काम हुआ है। गरीबों के खाते भी हैं और उनमें पैसा भी है। दुनिया में भारत का स्थान बढ़ा है। मेड इन जापान और मेड इन चाइना की कतार में अब मेड इन इंडिया भी खड़ा होगा। आमूल-चूल विकास के लिए एक साथ मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया की शुरुआत हो रही है।

हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में उपलब्धियां
- जीवनरेखा गंगा नदी के लिए मिशन नमामि गंगे शुरू हुआ
- वन संरक्षण के कारण विकास में आने वाली बाधाएं दूर कीं
- प्रधानमंत्री जन धन योजना, बीमा व पेंशन योजनाओं पर अमल हुआ


बेदाग रही सरकार

रवींद्र कुमार पांडेय, सांसद, गिरिडीह (झारखंड)
पहली बार गरीबों में विश्वास पैदा हुआ है। सरकार पर भ्रष्टाचार का दाग नहीं है। सांसदों के निजी काम भले ही न हों, पर जनता का कोई काम नहीं रुकता। मोदी सरकार की योजनाओं से झारखंड विकास की राह पर बढ़ने लगा है। झारखंड में अब आदिवासी-गैर आदिवासी नहीं, विकास की चर्चा होती है।

गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में कामकाज
- प्रधानमंत्री जन धन योजना के लिए लगातार सक्रियता दिखाई।
- अब प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा बीमा योजना और अटल पेंशन योजना पर करेंगे काम

विपक्ष की राय / सिर्फ बातें, काम कुछ नहीं

हर मोर्चे पर मोदी सरकार फेल
मोदी सरकार हर मोर्चे पर फेल रही है। ग्रामीण क्षेत्रों की अनदेखी की गई है। मोदी विदेश में जाकर देश के लोगों की आलोचना करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। साफ है कि वह आत्ममुग्धता के शिकार हैं। वह खुद को देश और देशवासियों से बड़ा मानने लगे हैं। भूमि अधिग्रहण विधेयक देश के किसानों पर थोपने की कोशिश की जा रही है। पुरानी योजनाओं को अपना बता कर उनकी रीपैकेजिंग में करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। विदेशों में अपनी वाहवाही कराने के लिए एनआरई उद्योगपतियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। चाहे न्यूयॉर्क हो या सिडनी उनके जरिये भीड़ जुटाई जाती है। चीन यात्रा के ठीक पहले वहां के एक अखबार ने उनकी आलोचना की। क्या यही छवि बनाना लोकप्रियता की निशानी है। इस सरकार की कलई एक साल में ही खुल गई है।
पी एल पुनिया, राज्यसभा सांसद (कांग्रेस)

गरीब-किसान-मजदूर विरोधी सरकार
एनडीए सरकार पूरी तरह विफल रही है। एक साल में कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया। मोदी सरकार की सारी योजनाएं यूपीए सरकार की योजनाओं के बदले हुए नाम के रूप में सामने आई हैं। छह माह में यह यू-टर्न सरकार थी। साल भर में सूट-बूट की सरकार बन गई। सारे निर्णय पूंजीपतियों के हित में लिए गए हैं। यह सरकार गरीबों की नहीं है। यह किसान-मजदूर विरोधी सरकार है। सरकार की संवैधानिक व्यवस्थाओं-संसदीय प्रणालियों में आस्था नहीं है। किसानों के मुआवजे में सिर्फ नियम परिवर्तन की घोषणाएं हुई हैं। साल भर में पेश 50 विधेयकों में से सिर्फ आठ स्थायी समिति को भेजे गए हैं। विश्व मंच पर मोदी की उपलब्धि सिर्फ फोटो खिंचाना रही। 56 इंच के सीने पर पाकिस्तान ने 56 बार संघर्ष विराम तोड़ा।
अजय माकन, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष

इंतजार जारी है...

उत्तर प्रदेश

कृषि
कुदरत की मार से बेहाल किसानों के लिए खाद सस्ती होने की जगह 40 रुपये तक महंगी हो गई।

औद्योगिक निवेश
कुल 11631 पंजीकृत कारखानें। लेकिन नये उद्योग लगाने की सहूलियतें नहीं।

बेरोजगारी
29. 4 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे। पर रोजगार की कोई योजना नहीं।

2000 मेगावाट और रोशनी के लिए चाहिए। पर कैसे? न आश्वासन न भरोसा। 5867 करोड़ रुपये की जरूरत।

बिहार

स्वास्थ्य सेवा
10.5 करोड़ की आबादी। मेडिकल कॉलेज होने चाहिए 21, पर हैं मात्र 11, वह भी खस्ताहाल।

अनाज
वंचितों को अनाज नसीब नहीं। 50 लाख के लिए अनाज मांगा, पर वह भी नहीं मिला।

राष्ट्रीय राजमार्ग
4,321 किलोमीटर की लंबाई वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 35। अधिकांश जर्जर। कोई सुनवाई नहीं।

2009 से विभाजन से हुई क्षतिपूर्ति के लिए यहां की जा रही है विशेष राज्य की मांग। पर मिले कोरे आश्वासन।

झारखंड

राजधानी का चयन नहीं
राज्य में नई राजधानी बननी है, पर वह भी नहीं बन सका। विकास योजनाओं के लिए जमीन नहीं।

परिवहन व्यवस्था
न के बराबर है रेल नेटवर्क। दस साल पीछे चल रहा है इसका काम तो सड़कों का हाल भी बेहाल।

आर्थिक पिछड़ापन
खनिज संपदा यहां प्रचुर। इसके बावजूद केंद्र की बेरुखी से नहीं हो पा रहा विकास कार्य।

400 मेगावॉट बिजली और रोशनी के लिए चाहिए। प्रचुर कोयला यहां, पर चिराग तले अंधेरा। पर कोई कोशिश नहीं।

उत्तराखंड

जमरानी बांध
1975 में केंद्र ने दी थी मंजूरी। 40 साल बाद भी केंद्र ने काम शुरू करने का नहीं लिया फैसला।

ग्रीन बोनस
हर साल ग्रीन बोनस के लिए राज्य ने 2014 में मांगे दो हजार करोड़, पर अब तक नहीं हुआ फैसला

रुकी योजनाएं
गंगा पर कई योजनाओं को 2009 में रोक दिया। इससे हो रहा हर साल 1650 करोड़ का नुकसान।

400 गांव विस्थापन के कगार पर भूकंप और भूस्खलन से। पुनर्वास को  मांगे 14 हजार करोड़, पर मिले सिर्फ आश्वासन।

दिल्ली

प्रदूषण
खराब सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की मार ध्वनि व जल प्रदूषण पर भी पड़ा, वह भी बढ़े।

आवास
सरकारी एजेंसियां आबादी के हिसाब से लोगों को सिर पर छत मुहैया कराने में भी रही नाकाम।

पेयजल
दिल्ली का जलस्तर लगातार गिर रहा है। हरियाणा और यूपी बुझाती है प्यास। विवाद से बढ़ी मुश्किलें।

1200 से अधिक बसें खरीदी जानी थी। अब तक है इसका इंतजार और पुरानी भी हो गईं खटारा।

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